- ढाई लाख है शिकायतें, कर्मचारी मात्र ढाई सौ
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश ऐसा राज्य बन चुका है जहां पर आए दिन साइबर ठग अपना कमाल दिखाते हुए लोगों को ठग रहे हैं। इसकी वजह से कई लोगों की तो पूरी जिंदगी भर की कमाई तक चली गई है। इसके बाद भी प्रदेश में साइबर ठगों पर प्रभावी कार्रवाई होती नहीं दिख रही है। इसकी वजह है अमले की कमी होना।
अगर सरकारी आंकड़ों को सही माने तो इस साल जुलाई तक लोगों से धोखाधड़ी कर 235 करोड़ रुपये की ठगी की जा चुकी है। अहम बात यह है कि ठगी करने वाले बदमाश किसी को नहीं छोड़ रहे हैं, फिर चाहे आईएएस, आईपीएस अफसर हों या फिर नेता। वे इतने बैखोफ हैं कि उन्हें पुलिस कार्रवाई तक का डर नही रह गया है।
यही वजह है कि अब तक साल के सात माह में ही पुलिस तक वित्तीय साइबर अपराध की 37 हजार शिकायतें आ चुकी हैं। यह तो आंकड़ा वह है जिनकी शिकायतें पुलिस तक पहुंची हैं, जबकि करीब इतने ही मामले ऐसे संभावित हं, जो पुलिस तक पहुंचे ही नही हैं। इसके बाद भी सरकार ऐसे मामलों में गंभीरता नहीं दिखा रही है। हालात यह कि प्रदेश में कुल ढाई लाख साइबर अपराध की शिकायतें लंबित हैं, जिन पर कार्रवाई करने का जिम्मा महज ढाई सौ कर्मचारियों पर है।
डेढ़ साल से लंबित है नए थानों का मामला
प्रदेश के हर जिले में एक साइबर थाना और प्रदेश के हर थाने में साइबर सेल बनाने का प्रस्ताव लगभग डेढ़ वर्ष से लंबित है। बजट की कमी के चलते इसे स्वीकृति नहीं मिल पा रही है। इसके अतिरिक्त साइबर की शिकायतों के त्वरित निराकरण के लिए प्रदेश में पर्याप्त अमला भी नहीं है। स्थिति यह है कि वर्ष 2018 में 290 अधिकारी कर्मचारियों का अमला सरकार ने स्वीकृत किया था। तब शिकायतों की संख्या पांच हजार से कम रहती थी। शिकायतों की संख्या लगातार बढ़ते हुए अब प्रतिवर्ष ढाई लाख से अधिक पहुंच गई है, पर नए पद स्वीकृत करने की जगह पुराने में ही लगभग 70 पद रिक्त हैं। विशेषज्ञों की भी पर्याप्त टीम पुलिस के पास नहीं है। दक्ष लोगों की अलग से भर्ती करने की जगह पहले से कार्यरत पुलिसकर्मियों को अलंग-अलग श्रेणी का प्रशिक्षण देकर साइबर का काम लिया जा रहा है। कुछ पुलिसकर्मियों को छह माह का प्रशिक्षण दिया गया है। सुरक्षा का विषय होने के कारण निजी साइबर एक्सपर्ट की सेवाएं भी पुलिस नहीं ले पा रही है।
प्रदेश में एकमात्र साइबर थाना भोपाल में
प्रदेश में एकमात्र साइबर थाना भोपाल में है। प्रदेश भर की शिकायतों पर कार्रवाई का बोझ इसी एकमात्र थाने पर होता है। कम अमले और काम अधिक होने की वजह से समय पर जांच तक नहीं हो पाती है।
इस तरह की समस्याएं
– शिकायतों का विश्लेषण नहीं हो पाता कि वित्तीय साइबर अपराध में किस-किस तरह की ठगी के. कितने मामले हैं।
– बल कम होने से इंटरनेट प्रोवाइडर, मोबाइल फोन कंपनियां, बैंक आदि से समन्वय में भी अधिक
समय लगता है।
– ठगों को पकडऩे दूसरे राज्यों में टीम भेजना कठिन होता है।
– इन सब कारणों से पीडि़तों से ठगी गई राशि में से लगभग 12 प्रतिशत की ही वसूली हो पा रही है।