कैसे चलाएं खर्च, नहीं मिल रहा वेतन

  • नए तीनों मेडिकल कॉलेजों के कर्मचरियों के हाल बेहाल

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में सरकार ने बड़े जोर शोर से प्रचार करते हुए इस सत्र से तीन नए मेडिकल कॉलेज शुरु किए हैं, लेकिन उनके शुरु होते ही वे बदहाली का शिकार होना शुरु हो गए हैं। हालत यह है कि उनमें पदस्थ अधिकारियों व कर्मचरियों को वेतन तक नहीं मिल पा रहा है। यह हालत बीते चार माह से बने हुए हैं। ऐसे में वे मरीज का इलाज व सेवा करें या फिर घर खर्च चलाने के लिए पैसों की व्यवस्था, यह गंभीर सवाल बना हुआ है। इसके उलट जिम्मेदार अफसरों का कहना है कि सरकारी काम में समय लगता है। जिन मेडीकल कॉलेजों में इस तरह के हालात बने हुए हैं उनमें नीमच, मंदसौर और सिवनी के मेडीकल कॉलेज शामिल हैं। इनके शुरु करने के लिए चिकित्सकों एवं अन्य स्टाफ की भर्ती भी की गई थी। इनकी भर्ती मई माह में की गई थी। उनकी भर्ती हुए पूरे चार माह का समय हो चुका ह, लेकिन अभी तक उन्हें वेतन का एक पैसा भी नहीं मिल सका है। यहां काम करने वाले चिकित्सकों का कहना है कि सैलरी नहीं मिलने से उनका काम करना मुश्किल होता जा रहा है। वहीं जिम्मेदार अधिकारियों का कहना है कि सरकारी प्रक्रिया में समय लगता है कुछ दिन बाद सभी को वेतन का भुगतान कर दिया जाएगा।
अव्यवस्थाएं देख चिकित्सकों ने कहा अलविदा
मिली जानकारी के अनुसार सिवनी, नीमच, मंदसौर, सिंगरौली, श्योपुर और सतना के लिए फैकल्टी (प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर) के 445 पदों के लिए भर्ती की गई थी, लेकिन कई पोस्टों के पद अभी भी खाली हैं।  कई डॉक्टरों ने ज्वाइन किया लेकिन बाद में पद से इस्तीफा दे दिया। दरअसल व्यवस्थाएं नहीं होने की वजह से यहां नौकरी करने आने वाले स्टाफ को काम कर पाना मुश्किल हो रहा है। चिकित्सकों का कहना है कि उनके रहने के लिए व्यवस्था नहीं की गई है , उन्हें किराए के मकान पर रहना पड़ रहा है और सैलरी नहीं मिलने से उन्हें अपना खर्च चलाना और रूम का भाड़ा देना मुश्किल हो रहा है।
दो कॉलेजों के लिए भवन का इंतजार
गौरतलब है कि वर्ष 2018 में राजगढ़, सिंगरौली, नीमच, मंदसौर, सिवनी और श्योपुर में कालेज खोलने की अनुमति केंद्र सरकार ने दी थी। इसमें 60 प्रतिशत लागत केंद्र और 40 प्रतिशत राज्य सरकार वहन कर रही है। दरअसल शैक्षणिक सत्र 2024-25 से राजगढ़ छोड़ सभी कालेज में प्रवेश शुरू करने का लक्ष्य था, पर बाद में सिंगरौली और श्योपुर को भी छोड़ दिया गया। दरअसल, इन कालेजों के भवन निर्माण का काम पिछड़ा हुआ है। तीन कालेज शुरू किए गए हैं, लेकिन सुविधाओं के नाम पर अभी भी यहां जिला अस्पताल के बराबर भी व्यवस्था नहीं है।
नहीं सुधर रहा ढर्रा
प्रदेश में पहले से ही सरकारी अस्पतालों से लेकर मेडीकल कॉलेजों तक में चिकित्सकों की बेहद कमी बनी हुई है।  इसके बाद भी सरकारी ढर्रा नहीं सुधर पा रहा है। पहले तो चिकित्सक सरकारी नौकरी में आना नहीं चाहते हैं और जो आ जाते हैं वे सरकारी भर्राशाही का शिकार होकर नौकरी छोड़ देते हैं। इसके बाद भी सरकारी ढर्रा में सुधार नहीं किया जा रहा है।

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