- खेल सामग्री और प्रशिक्षकों का भी बना हुआ है अभाव
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। एक तरफ सरकार का फोकस खेलों पर है जिससे की प्रदेश के युवा खेलों में दक्ष होकर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अधिकाधिक पदक ला सकें, तो दूसरी ओर उन्हें स्कूलों में खेलों से महरुम होना पड़ रहा है। इसकी वजह है स्कूलों में खेल मैदान से लेकर प्रशिक्षकों और खेल सामग्री तक का अभाव होना। स्कूलों में प्राइमरी स्तर पर पढ़ाई के साथ खेल और एक्सरसाइज की गतिविधियां न होने की वजह से बच्चों का मानसिक और शारीरिक रुप से भी पूरी तरह से विकास नहीं हो पा रहा है। यह हाल प्रदेश में तब है, जबकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में खेलों को अनिवार्य माना गया है। खेलों के लिए अलग से कक्षा लगाने के निर्देश हैं। इसके बाद भी इन निर्देशों का पालन दूर दराज के स्कूलों में तो ठीक भोपाल में ही नहीं हो रहा है। हालत यह है कि स्कूलों में खेल सामग्री तक नही है। अगर भोपाल की ही बात की जाए तो ऐसे कई स्कूल हैं, जिनमें खेल मैदान ही नहीं हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 816 स्कूलों में से केवल आठ में मैदान हैं। वहीं साढे तीन लाख बच्चों पर 13 खेल प्रशिक्षक। राजधानी के सीएम राइज में भी ऐसे ही बाल बने हुए हैं। 300 करोड़ रुपए खर्च कर बन रहे सीएम राइज स्कूल में भी मैदान नहीं। हद तो यह है कि जिन स्कूलों के पास खेल मैदान हैं , लेकिन वे भी देखरेख के अभाव में बड़ी-बड़ी घास और मलवे के ढेरों के रुप में बदल गए हैं। यही वजह है कि प्रदेश में अच्छे खिलाड़ी नहीं बन पाते हैं। खेलों में दक्ष्ता हासिल करने के लिए जरुरी होता है कि बच्चों को छोटे से ही खेल सुविधाएं देकर प्रशिक्षित किया।
यह खेल शामिल है स्कूली स्तर पर
स्कूलों में स्किपिंग रोप, कबड्डी, खो-खो, फुटबॉल, हॉकी, टेबल टेनिस, बैडमिंटन, ताइक्वांडो, कराटे, जूडो, कुश्ती, बास्केटबॉल, वॉलीबॉल, एथलेटिक्स सहित 13 खेलों को शामिल किया गया है। स्कूल स्तर पर खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन अगस्त से होता है। यह प्रतियोगिताएं दिसंबर तक चलेंगी। जारी खेल कैलेंडर में केंद्र सरकार ने खेलो इंडिया, ओलंपिक, एशियाड और कॉमनवेल्थ के खेलों को शामिल किया है।
भोपाल के स्कूल आंकड़ों में
स्कूल शिक्षा विभाग के आंकड़ों के मुताबिक जिले में 816 स्कूल हैं। इनमें से 457 प्राइमरी स्कूल हैं। इसी तरह से मिडिल तक के स्कूलों की संख्या 239 है और हाईस्कूल स्तर तक के 49 स्कूल हैं। इनमें से अधिकांश में खल प्रशिक्षक ही नही हैं। पद रिक्त पड़े हुए हैं , लेकिन विभाग बेफ्रिक होकर उनकी भर्ती तक करने को नजर नहीं आ रहा है। खिलाड़ी तैयार होने की पहली सीढ़ी स्कूल है। सुविधाओं की कमी से बच्चों को खेलने का मौका ही नहीं मिलता, तो खिलाड़ी कैसे बनेगा।
स्कूलों के हाल खेल मैदान वाले
शासकीय नवीन कन्या स्कूल के खेल मैदान एक बड़े हिस्से में घास उग आई है। इसकी वजह से वहां पर खेल होना संभव नही है। ऐसे में स्कूल पास के ओल्ड कैम्पियन किक्रेट मैदान के भरोसे रहता है। इसी तरह से सरोजनी नायडू स्कूल में खेल मैदान है, लेकिन वहां पर कभी – कभार ही खेलों का कोई आयोजन हो जाए तो बड़ी बात है। सीएम राइज गोविंदपुरा स्कूल के मैदान में मलबे का ढेर है। स्कूल भवन का निर्माण चल रहा है।
हाल बेहाल
खिलाडि़ायों को आगे लाने और उन्हें बेहतर मौका देने के लिए सरकार खेलो इंडिया नाम से प्रतियोगिता का आयोजन कराती है, जिसमें हर स्कूल के अच्छे खिलाडिय़ों को आगे खेलने का मौका मिलता है, लेकिन खेल सामग्री और खेल प्रशिक्षकों के अभाव में कई स्कूलों में तो कागजों तक ही आयोजन यीमित रहा है। भोपाल जिले के 816 स्कूलों में महज 13 प्रशिक्षण है। इनमें भी कुछ अतिथि है।