सरकार से वसूली के लिए कदम उठाने की लगाई जा रही है गुहार
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। सरकार की महत्वाकांक्षी मुख्यमंत्री ग्रामीण आवास योजना बैंकों के लिए मुसीबत बन गई है। इसकी वजह है इस योजना के तहत दिए जाने वाले कर्ज की राशि हितग्राही लौटा ही नहीं रहे हैं। इसकी वजह से बैंकों का करीब 15 अरब डूबत खाते में जा चुका है। इस मामले को बैंक प्रदेश सरकार के सामने भी लगातार उठा रहा है। ऐसा नहीं है कि यह पहली बार हुआ है, बल्कि यह राशि हर साल बढ़ती ही जा रही है। एनपीए के साथ ही हर साल डिफाल्टरों का यह आंकड़ा बढऩे से तमाम बैंकों के प्रबंधन की चिंताएं बढ़ती ही जा रही है। बीते पांच साल के आकंड़े तो यही कह रहे हैं। दरअसल सरकार द्वारा प्रदेश के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए पक्का घर उपलब्ध कराने के लिए मुख्यमंत्री ग्रामीण आवास योजना 25 जून, 2015 को शुरू की गई थी। अब यही योजना सरकार के लिए गले की फांस बनती जा रही है। योजना का लाभ लेने वाले लाभार्थी बैंक की किस्तें ही जमा नहीं कर रहे हैं। इससे वर्ष 2024 में योजना का नॉन परफार्मिंग असेट (एनपीए) बढक़र करीब 54 प्रतिशत पहुंच गया है। इसको लेकर अब बैंकों के प्रतिनिधियों ने मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव से बैंकों का बकाया वसूलने का कदम उठाने की मांग की है। मुख्यमंत्री ने मामले में बैकों से ही प्रस्ताव मांगा है। मुख्यमंत्री ग्रामीण आवास योजना में वर्ष 2024 में एनपीए 1535 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। यह योजना के तहत बैंकों की तरफ से आवास बनाने के लिए जारी राशि का करीब 54 प्रतिशत पहुंच गया है। इस मुद्दे को हाल ही में राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति (एसएलबीसी) ने मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के सामने रखा। समिति की तरफ से बताया गया कि 3 लाख 9 हजार 831 लाभार्थी मुख्यमंत्री ग्रामीण आवास योजना के तहत लिए गए ऋण की किश्तों को जमा नहीं कर रहे हैं। इनकी लगातार तीन से ज्यादा किश्तें पेंडिंग हो चुकी हैं। इसके बाद करीब 1535 करोड़ रुपये एनपीए में चला गया है। इस पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने संबंधित बैंकों को ही बकाया राशि के समाधान के लिए प्रस्ताव देने को कहा है।
सरकार के एमओयू से बंधे बैंक
योजना के तहत लाभार्थियों को कम ब्याज पर पक्का मकान बनाने के लिए बैंकों की तरफ से ऋण उपलब्ध कराया जाता है। इसके लिए सरकार और बैंकों के बीच एमओयू हुआ है। बैंकों की तरफ से प्रयास करने के बावजूद बकायेदार अपनी किश्तें नहीं चुका रहे हैं। इन खातों का एकमुश्त समाधान योजना के माध्यम से भी बैंक निपटान नहीं कर पा रहे हैं। इसका कारण एमओयू की शर्तें बैंकों को रोक रही हैं।