मध्यप्रदेश का उद्यानिकी विभाग मिर्ची को नहीं मानता मसाला

उद्यानिकी विभाग

विभाग की भर्राशाही के कारण मिर्ची उत्पादकों को नहीं मिल रहा योजना का लाभ

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। किसानों की आय दोगुना करने और खेती को लाभ का धंधा बनाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने मसाला क्षेत्र विस्तार योजना शुरू की है। जिसका उद्देश्य है कि योजना में शामिल मिर्च अजमोदा, अजवायन, मेथी, धनिया, लहसून, हल्दी, जीरा, सौंफ, दिल और निगेला आदि की खेती कर किसान अधिक मुनाफा कमा सके। लेकिन मप्र के उद्यानिकी विभाग मिर्च को मसाला नहीं मानता है। ऐसे में मिर्ची उत्पादक किसान समझ नहीं रहे कि मिर्ची को फल में गिने या सब्जी माना जाए। वह भी तब, जब आईसीएआर (नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन सीड्स स्पाईसेस) और सेंट्रल स्पाइस बोर्ड के अनुसार मध्यप्रदेश में मसाला फसल उत्पादन में सर्वाधिक 30 प्रतिशत की हिस्सेदारी मिर्ची की है।
दरअसल जब भी कोई किसान एमआईडीएच योजना (मिशन फॉर इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ हार्टीकल्चर) के तहत उद्यानिकी के एमपीएफएसटीएस पोर्टल पर सब्सिडी के लिए रजिस्ट्रेशन करना चाहता है, तो मिर्ची मिलती ही नहीं है, जबकि बीते सालों तक मसाला सूची में मिर्ची थी।  दूसरी ओर विभाग का तर्क है कि मसाले में मिर्ची नहीं आती। इस कारण मिर्ची उत्पादक किसानों को प्रति हेक्टेयर 20 हजार रुपए का सीधा नुकसान हो रहा है। दरअसल केंद्र और राज्य सरकार मिलाकर प्रति हेक्टेयर 50 हजार रुपए का प्रोजेक्ट बनाते हैं, जिसमें किसान 30 हजार और सरकार 20 हजार रुपए का अंश प्रोत्साहन राशि के तौर पर है। इसमें बीज और उपकरण की खरीदी शामिल है।
सिर्फ इनको माना मसाला
उद्यानिकी की वेबसाइट के अनुसार अजमोद, अजवाइन, कलौंजी, जीरा, धनिया, काली मिर्च, मेथी, विलायती सौंफ, सोआ, सौंफ, स्याह जीरा ही मसाला में आते है। हालांकि उत्पादन मिर्ची उत्पादन से आधा भी नही होता। खरगोन, खंडवा, धार, रतलाम, बड़वानी, मंदसौर, नीमच के लाल मिर्च पाउडर की निर्यात में जबर्दस्त मांग है। इसकी सीहोर, अशोकनगर, छिंदवाड़ा, छतरपुर, होशंगाबाद, राजगढ़ में भी खेती शुरू हो गई है। प्रभारी एमआईडीएच योजना उद्यानिकी शानू मरकाम का कहना है कि आईसीएआर (नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन सीड्स स्पाईसेस) के अनुसार मध्यप्रदेश के संदर्भ मे स्पाइसेस सीड्स में मिर्ची को शामिल किया गया है। स्पाइस बोर्ड भी इसे मसाला मानता है। एमआईडीएच योजना के तहत मसालों का टारगेट दिया गया है, लेकिन सूची में मिर्ची नही है। यह तो ऊपर से ही तय होता है, हम कुछ नहीं कर सकते। वैसे नासिक के रिसर्च सेंटर से बात की गई थी, जिसके बाद ही स्पाईसेस सीड में मिर्ची नहीं आने से मसाला सूची से बाहर कर दिया गया है।  अपर सचिव भारत सरकार एवं प्रभारी एमआईडीएच हरित शाक्य का कहना है कि सेंट्रल से तो सभी राज्यों को अनुदान राशि मुहैया करवाई जाती है, लेकिन मसालों की सूची बनाना स्टेट मैटर है। हमारी तरफ से कोई मनाही नही की गई। स्पाइस बोर्ड की मसाला सूची में तो मिर्ची है। अब मध्यप्रदेश में क्यों मसालों की सूची से मिर्ची को हटा दिया गया है तो स्टेट ही बता सकेगा।  उद्यानिकी विभाग के अपर संचालक कमल सिंह किराड़ का कहना है कि सेंट्रल की गाइड लाइन के अनुसार राज्य की मसाला सूची बनी है, जिसमें मिर्ची सीड्स मसाला के बजाय फ्रूट में आने से राज्य की मसाला सूची से बाहर किया गया है। इसके निर्धारण की प्रक्रिया होती है, जोकि आईसीएआर और अन्य केंद्रीय संस्थानों की रिसर्च को आधार बनाकर मसाला सूची बनती है। अभी तो मप्र में मिर्ची मसाला नही है, बल्कि फ्रूट है।
52 मसालों में से मिर्ची तीसरे नंबर पर
केंद्रीय संस्थान स्पाइस बोर्ड की सूची में 52 मसालों में से मिर्ची तीसरे नंबर पर है। स्पाइस बोर्ड की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार देश में रकबा 694313 हेक्टेयर और मप्र में 118295 हेक्टेयर रकबा होकर 303069 मीट्रिक टन उत्पादन है। यह मप्र में मसालों में 30 प्रतिशत हिस्सा है। सालाना 6,01,500 मीट्रिक टन मिर्ची निर्यात हो रही है। किसानों के लिए राज्य के उद्यानिकी विभाग ने एमपीएफएसटीएस पोर्टल बनाया है, जिस पर रजिस्ट्रेशन के लिए हेल्पलाइन नंबर 0755- 4059242 दिया गया है। हालांकि जब इस पर कॉल करके पूछा गया कि, मसाला योजना में मिर्ची का रजिस्ट्रेशन नहीं कर पा रहे हैं? इस पर जवाब मिला कि हमें जो उद्यानिकी संचालनालय से मेल मिलता है, वहीं पोर्टल पर चलाते हैं। संचालनालय से पता कर लें कि मिर्ची क्यों मसाला सूची में नही है।

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