मकवाना को ‘ईमानदारी’ पड़ रही है भारी…

  • गौरव चौहान
मकवाना

मप्र के अगले डीजीपी की दौड़ में शामिल 1988 बैच के आईपीएस अधिकारी कैलाश मकवाना की राह में उनकी ईमानदारी भारी पड़ गई है।  लोकायुक्त के  डीजी रहते हुए उन्होंने दागी अफसरों के खिलाफ जो अभियान चलाया था, उसका खामियाजा उन्हें अब भुगतना पड़ रहा है। सूत्रों का कहना है कि जब मकवाना लोकायुक्त महानिदेशक थे उस समय की सीआर लोकायुक्त द्वारा लिखी गई थी। मकवाना को सीआर में 6 अंक दिए गए हैं। सामान्य 9 या 10 अंक की सीआर ही श्रेष्ठ मानी जाती है। 6 अंक मिलने को सीआर खराब होना माना जाता है। इसके खिलाफ मकवाना ने राज्य शासन को अभ्यावेदन प्रस्तुत किया था, जिस पर संज्ञान लिया गया है।
गौरतलब हैं कि कैलाश मकवाना को उनकी ईमानदार छवि के चलते लोकायुक्त का डीजी बनाया गया था। 2 जून 2022 को पदभार संभालने के साथ ही मकवाना ने लोकायुक्त पुलिस की धीमी कार्यप्रणाली को गति में लाना शुरू कर दिया था। पुरानी शिकायतें, पुराने अपराध पर कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे।  जिससे पुराने केसों का बड़ी संख्या में निपटारा होने लगा था।  मकवाना के तेवर से प्रदेश के बड़े साहबों में खौफ का माहौल था। कई बड़े अधिकारियों की मकवाना ने गर्दन पकड़ ली थी। इसके बाद सरकार में बेचैनी बढ़ गई थी। एक खेमे ने मकवाना के खिलाफ लॉबिंग शुरू कर दी थी। दरअसल मकवाना ने तत्कालीन सीएम के ड्रीम प्रोजेक्ट महाकाल लोक में भ्रष्टाचार की जांच शुरू कर दी थी। साथ ही लंबे समय से पड़ी शिकायतों की पुरानी फाइलों को खोलना शुरू कर दिया था। हालांकि इस बीच कुछ काम करने में अड़चनें भी सामने आईं, जिनको दूर करने सुझाव मकवाना की तरफ से लोकायुक्त को दिए गए थे। सूत्रों के अनुसार उन सुझाव पर कुछ नहीं हुआ, लेकिन उनको हटाने की पटकथा लिखना शुरू हो गया और उन्हें छह माह बाद ही हटा दिया गया। सूत्रों का कहना है की मकवाना की यही ईमानदारी अब उन पर भारी पड़ने लगी है।
बड़े-बड़ों की फाइलें खोल दी
सूत्रों के अनुसार मकवाना ने लंबे समय से लोकायुक्त में धूल खा रही शिकायतों को निकालकर उनका प्रारंभिक परीक्षण शुरू कर दिया था। इन शिकायतों में कई बड़े पदों पर बैठे अधिकारियों के विभागीय गड़बड़ी और अनुपातहीन संपत्ति होने के प्रमाण मिले। इन पर डीजी की अनुशंसा के बावजूद लोकायुक्त से जांच की अनुमति लेने भेजने पर कोई जवाब नहीं मिलता था। फाइल ही वापस नहीं आती थी। इसी को लेकर लोकायुक्त और डीजी मकवाना के बीच दूरियां बढ़ गईं। सूत्रों के अनुसार मकवाना ने लोकायुक्त पुलिस को शिकायत मिलने के बावजूद जांच के अधिकार नहीं होने पर सवाल उठाए। जिससे बड़े-बड़े अधिकारी जांच के घेरे में आते। यही कारण है कि ईमानदार छवि के आईपीएस कैलाश मकवाना को सरकार 6 महीने भी नहीं झेल पाई। वहीं, डीजी मकवाना उज्जैन में महाकाल कॉरिडोर निर्माण में गड़बड़ी, आयुष्मान योजना में निजी अस्पतालों में करोड़ों रुपये के भुगतान, पोषण आहार जैसे मामलों की जांच करना चाह रहे थे। हालांकि सूत्रों का कहना है कि ऐसे कई बड़े मामलों की  शिकायतें लोकायुक्त में पड़ी हुई हैं। जिनको खोलना मकवाना को भारी पड़ा। लोकायुक्त की अभी की कार्यप्रणाली के अनुसार रिश्वत लेने की शिकायत मिलने पर लोकायुक्त पुलिस वेरीफाई करने के बाद ट्रैप कर आरोपी को पकड़ लेती है, लेकिन सरकारी बड़े पदों पर बैठे और अनुपातहीन संपत्ति की शिकायत के लिए लोकायुक्त पुलिस को जांच के अधिकार ही नहीं हैं। इस संबंध में लंबे समय से कई शिकायतें लोकायुक्त में धूल खा रही थीं। दरअसल ऐसे मामलों में कुछ साल से नियम बना दिया गया कि इसकी लोकायुक्त पुलिस सीधे जांच नहीं करेगी। इसके लिए लोकायुक्त से अनुमति लेना जरूरी होगी। नियम अनुसार एसपी शिकायतें डीजी को भेजेंगे और डीजी उनको लोकायुक्त को भेजेंगे। जिनके अनुमति मिलने के बाद ही पुलिस जांच कर सकेगी।
लोकायुक्त ने खराब की सीआर
सूत्रों का कहना है कि लोकायुक्त डीजी रहते कैलाश मकवाना ने जिस तरह की सख्ती दिखाई थी उसकी का परिणाम है कि लोकायुक्त ने उनकी सीआर खराब कर दी है। राज्य शासन ने मकवाना को वर्ष 2022 में लोकायुक्त महानिदेशक बनाया था। उस समय की सीआर लोकायुक्त द्वारा लिखी गई थी। जीएडी सूत्रों के अनुसार मकवान को सीआर में 6 अंक दिए गए हैं। सामान्य 9 या 10 अंक की सीआर ही श्रेष्ठ मानी जाती है। 6 अंक मिलने को सीआर खराब होना माना जाता है। इसके खिलाफ मकवाना ने राज्य शासन को अभ्यावेदन प्रस्तुत किया था, जिस पर संज्ञान लिया गया है। लोकायुक्त कार्यालय से जवाब मिलने के बाद सीआर सुधार के लिए अभ्यावेदन मुख्यमंत्री के पास भेजा जाएगा। कैलाश मकवाना मप्र पुलिस के ईमानदार अधिकारियों में गिने जाते हैं। प्रदेश के अगले डीजीपी के लिए भी उनका नाम दौड़ में शामिल हैं। मकवाना के 6 महीने कार्यकाल में कई आईएएस, आईपीएस समेत अन्य अधिकारियों के खिलाफ जांच खुल गई थीं। अक्टूबर 2022 में एक हफ्ते में ही आईएएस, आईपीएस समेत 17 के खिलाफ प्रकरण दर्ज किए गए थे। उज्जैन के महाकाल लोक मामले में भी 3 आईएएस अफसरों के खिलाफ शिकायत दर्ज हुई थी। साथ ही सालों से लोकायुक्त में धूल खा रहीं भ्रष्टाचार की गंभीर शिकायतें भी खुलने लगी थीं। कैलाश मकवाना की सख्ती से प्रदेश के भ्रष्ट कॉकस में हड़कंप मच गया था। हालांकि 6 महीने के भीतर की शिवराज सरकार को मकवाना को लोकायुक्त डीजी से हटाना पड़ा था।

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