- अब तक दूसरी पार्टियों से 4 लाख को सदस्यता दिलाने का दावा
- विनोद उपाध्याय
2023 में विधानसभा चुनाव के दौरान या उससे पहले भाजपा छोडक़र दूसरी पार्टी में शामिल होने वाले भाजपाई अब घर वापसी की राह देख रहे हैं। लेकिन पार्टी में ही उनको लेकर नेता एकमत नहीं हैं। बताया जा रहा है कि पार्टी की प्रतिष्ठा को देखते हुए उन नेताओं की घर वापसी को हरी झंडी नहीं दी जा रही है, जिन्होंने दूसरी पार्टी का दामन थामने के बाद भाजपा को जमकर कोसा था। वहीं दूसरी तरफ लोकसभा चुनाव के इस दौर में अन्य पार्टियों के नेताओं को भाजपा में धड़ाधड़ प्रवेश दिया जा रहा है। दावों के अनुसार अभी तक दूसरी पार्टी से करीब 4 लाख नेताओं और कार्यकर्ताओं को भाजपा में प्रवेश दिलाया जा चुका है।
गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव के समय टिकट न मिलने की संभावना को देखते हुए कई भाजपा नेताओं ने कांग्रेस या अन्य पार्टियों का दामन थाम लिया। कुछ ने चुनाव लड़ा और हार गए। अब जब प्रदेश में भाजपा दिन पर दिन और मजबूत हो रही है इसको देखते हुए दूसरी पार्टी में गए भाजपाई घर वापसी चाहते हैं। दरअसल, प्रदेश में लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस एवं अन्य दलों से भाजपा में शामिल होने वाले नेता और कार्यकर्ताओं की भीड़ लगी है। आगे भी यह सिलसिला जारी रहने वाला है। इस बीच भाजपा में उन भाजपा मूल के नेताओं की वापसी नहीं हो पा रही है, जो नाराज होकर पार्टी छोड़ गए थे। इनमें से ज्यादातर ने बगावत कर विधानसभा चुनाव लड़ा था। अब वेे भाजपा में लौटने की पेशकश कर चुके हैं, लेकिन मप्र भाजपा नेतृत्व इन नेताओं की घर वापसी पर एकमत नहीं हो पा रहा है। जिसकी वजह यह बताई जा रही है कि प्रतिष्ठा आड़े आ रही है।
वापस आते-आते रह गए जोशी
प्रदेश में कई मूल भाजपाई नेता ऐसे हैं, जो दूसरी पार्टी में तो चले गए लेकिन, अब घर वापसी चाहते हैं। ऐसे ही नेताओं में भाजपा के स्तंभ पुरुष एवं पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के बेटे दीपक जोशी हैं, जो घर वापसी करना चाहते हैं, लेकिन ऐन वक्त पर उनकी वापसी टल गई।
पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से व्यक्तिगत नाराजगी के चलते भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए। पिछला चुनाव खातेगांव सीट से कांग्रेस से लड़ा और हारे। पिछले महीने भाजपा में वापसी लगभग तय हो गई। लेकिन ऐनवक्त पर बड़े नेता के दखल से रुक गई। बाद में जोशी ने कहा कि उनके सामने नेता से माफी मांगने की शर्त रखी गई, लेकिन वे पार्टी से माफी मांगने को तैयार हैं। वहीं दतिया के अवधेश नायक भाजपा संगठन के वरिष्ठ पदाधिकारी रहे हैं। संगठन में कई दायित्व निभाए। अच्छी छवि रही है। विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए भाजपा छोड़ी। दतिया से कांग्रेस ने टिकट दिया, लेकिन बाद में टिकट बदल दिया अब नायक की वापसी नहीं हो पा रही है। भाजपा की न्यू ज्वॉइनिंग टोली के संयोजक नरोत्तम मिश्रा दतिया से हैं। हालांकि खुद मिश्रा चुनाव हार गए थे। सागर के सुधीर यादव ने सागर की बंडा सीट से भाजपा से टिकट मांगा था। जब टिकट नहीं मिला तो आप आदमी के टिकट पर चुनाव लड़े और हारे। अब भाजपा में वापसी नहीं हो पाई है। बुंदेलखंड में इनकी अपने समाज एवं ओबीसी में अच्छी पकड़ है। इनके पिता लक्ष्मीनारायण यादव सागर से भाजपा के सांसद रहे हैं। इनकी वापसी पर बड़े नेताओं में सहमति नहीं बन पाई।
पूर्व प्रदेशाध्यक्ष के बेटे की वापसी भी अटकी
भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व प्रदेशाध्यक्ष नंदकुमार चौहान के बेटे हर्षवर्धन सिंह भी भाजपा छोड़ गए। पिता के निधन के बाद उपचुनाव में ये टिकट के दावेदार थे। लेकिन पार्टी ने ज्ञानेश्वर पाटिल को दिया। विधानसभा चुनाव में टिकट मांगा, लेकिन पूर्व मंत्री अर्चना चिटनीस को मिला। इन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा, लेकिन हारे। इनकी वापसी पर भी मप्र भाजपा नेतृत्व एकजुट नहीं हो पाया है। वहीं सतना के शिवा चतुर्वेदी सहकारी बैंक के अध्यक्ष रहे हैं। सतना से टिकट की मांग की। नहीं मिला तो बसपा से चुनाव लड़ा। यहां से भाजपा के गणेश सिंह विधानसभा चुनाव हार गए थे। भाजपा में शिवा की वापसी पर भी बड़े नेता का अड़ंगा है। वहीं भाजपा में दूसरे दलों से लाखों नेता एवं कार्यकर्ता भाजपा में आए है, लेकिन दतिया से कोई बड़ा कांग्रेसी भाजपा में नहीं आया। खास बात यह है कि न्यू ज्वाइनिंग टोली के संयोजक डॉ नरोत्तम मिश्रा भी दतिया से हैं। ऐसे में उनके क्षेत्र से कांग्रेसियों का भाजपा में शामिल नहीं होना भी चर्चा का विषय है।