आधी आबादी की फांस में जीत

महिला प्रत्याशियों
  • 10 फीसदी महिला प्रत्याशियों ने बढ़ाई नेताओं की चिंता

विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में भाजपा और कांग्रेस सत्ता की कुर्सी बहनों के भरोसे पाने का प्रयास कर रही है। प्रदेश में 2 करोड़ 60 लाख महिला वोटर्स हैं, जिनके भरोसे दोनों दल सत्ता में आना चाहते हैं। आधी आबादी के वोट की ताकत को देखते हुए इस बार 252 महिला प्रत्याशी चुनावी मैदान में है। इसके लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टी चिंतित भी हैं कि कहीं उनके वोट न कट जाएं। यानी कई सीटों पर प्रत्याशियों की जीत आधी आबादी के फांस में है। गौरतलब है कि भाजपा लाड़ली बहना और कांग्रेस नारी सम्मान योजना से लुभावने वादे कर रही है। केवल यही दोनों पार्टियां ही नहीं अन्य छोटे राजनैतिक दल भी इस बार महिला वोटर्स के जरिए ही सत्ता पाना चाह रहे हैं। जबकि उस अनुपात में टिकट देने में से पीछे रहे।
मप्र की 230 सीटों पर विधानसभा चुनाव लड़ रहे 2533 उम्मीदवारों में से सिर्फ 252 ही महिलाएं हैं। यह कुल प्रत्याशियों की संख्या का 10 प्रतिशत है। प्रदेश का चुनाव कई मुद्दों पर हो रहा है, लेकिन एक मुद्दा ऐसा है , जिसे गेम चेंजर माना जा रहा है।  प्रदेश में 2 करोड़ 60 लाख महिलाएं मतदाता हैं।  इन वोटरों को लुभाने के लिए भाजपा ने लाड़ली बहना तो कांग्रेस ने नारी सम्मान योजना के रूप में तुरुप का इक्का चला है। लेकिन ये तुरुप का इक्का कितना चलेगा, यह अभी बड़ा सवाल बना हुआ है। ये सवाल क्यों है, इसके पीछे की खास वजह है कि प्रदेश के चुनावी दंगल में 252 महिलाएं उम्मीदवार हैं। ये अब तक की महिला उम्मीदवारों की सबसे बड़ी संख्या है। इसके पीछे की एक बड़ी वजह ढाई करोड़ से ज्यादा महिला वोटर हैं ,जो किसी को भी सरताज बना सकती हैं। इनमें से कितनों को विधायकी मिलेगी ये अलग बात है लेकिन, ये बोट कटवा जरूर साबित हो सकती हैं।
महिलाओं की जीत का प्रतिशत कम
राजनीतिक दल महिला सशक्तिकरण पर मंच से चाहे जितनी बड़ी बातें करते रहें लेकिन,  हकीकत इससे इतर है। एक तो पार्टियां महिलाओं को कम टिकट देती हैं। उस पर आलम यह है की उनमें से भी जीतने वालों की संख्या बहुत कम है। इस बार 2533 उम्मीदवारों में 252 महिला प्रत्याशी हैं। इनमें से कितनी जीतेगी , यह तो 3 दिसंबर को ही पता चलेगा। लेकिन पूर्व के चुनावों को देखें तो महिलाओं की जीत का प्रतिशत बेहद कम रहा है। 2018 में 250 महिला प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा, जिसमें से 21 की ही जीत हुई। 2013 में 200 महिलाओं ने चुनाव लड़ा और 30 जीतीं। 2008 में 226 महिलाओं ने चुनाव लड़ा और 25 जीतीं। 2003 में 199 महिलाएं चुनाव मैदान में उतरी और 19 ने जीत हासिल की। 1998 में 181 महिलाओं ने चुनाव लड़ा और 26 की जीत हुई। 1993 में 153 महिलाएं चुनाव मैदान में उतरीं और सिर्फ 12 ही जीत पार्इं। पिछले पांच विधानसभा चुनाव में महिला विधायकों की संख्या पर गौर किया जाए तो, यह ज्ञात होता है कि, अब तक महिला विधायकों की अधिकतम संख्या 22 और न्यूनतम संख्या 18 रही है। साल 2018 में 2,899 कैंडिडेट्स ने 230 विधानसभा सीट के लिए चुनाव लड़ा था, जिनमें से मात्र 250 महिला उम्मीदवार थीं। इन 250 महिला उम्मीदवारों में से 17 महिला उम्मीदवार ही चुनाव जीत सकीं थीं। इन 17 विधायकों में से 9 भाजपा की विधायक थीं और 6 कांग्रेस की। उपचुनाव के बाद महिला विधायकों की संख्या में बढ़ोतरी हुई। अब प्रदेश में कुल 21 महिला विधायक हैं, जिनमें से 14 भाजपा, 6 कांग्रेस और 1 बसपा से है।
भाजपा-कांग्रेस के सामने बड़ा चैलेंज महिला
गौरतलब है की आधी आबादी को साधने के लिए भाजपा ने लाइली बहना और कांग्रेस ने नारी सम्मान योजना का दांव खेला है, लेकिन दोनों पार्टियों के सामने सबसे बड़ा महिला चैलेंज आ गया है। भाजपा का पूरा फोकस अब लाड़ली बहनों पर हो गया है। सीएम ने चुनाव से ऐन पहले ही इस वर्ग को साधने का पूरा इंतजाम कर लिया था। बच्चियों को नौकरी में 33 फीसदी आरक्षण, छात्राओं को स्कूटी और लाड़ली बहना को 1250 रुपए महीने और 450 में रसोई गैस का सिलेंडर देकर उनको अपने पाले में लाने के लिए लाल कालीन बिछा दिया। अब सीएम महिलाओं को ये भी कह रहे हैं कि यदि कमलनाथ आ गए तो लाइली बहना योजना को बंद कर देंगे। वहीं महिला वोट बैंक को साधने के लिए कांग्रेस ने भी मुकम्मल तैयार की। यहां तक कि अलग से वचन पत्र भी ला दिया। महिलाओं को 1500 रुपए महीने, पांच सौ रुपए में गैस सिलेंडर, बच्चियों के लिए बिटिया रानी योजना, पहली से बारहवीं तक फ्री पढ़ाई साथ में पांच सौ से 1500 रुपए महीने अलग से देने की योजना और इसके साथ उनकी सुरक्षा का जिम्मा। और ये सारी गारंटी ले रही हैं कांग्रेस को महासचिव प्रियंका गांधी। प्रियंका अपनी सभाओं में महिलाओं से सीधा कनेक्ट करने की कोशिश करती हैं। महिला आरक्षण बिल पास होने के बाद महिलाओं को राजनीति में जाने की संभावनाएं बढ़ गई है और ये भी नेतागिरी के रास्ते पर आगे बढ़ चली हैं।

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