प्रदेश में मांग की आधी बिजली का उत्पादन सौर ऊर्जा से

बिजली उत्पादन
  • उपलब्धि:  मध्यप्रदेश ऐसा राज्य बन चुका है, जहां तेजी से सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन बढ़ा है

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश ऐसा राज्य बन चुका है, जहां पर तेजी से सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन बढ़ रहा है। यही वजह है कि अब प्रदेश में जितनी एक दिन में बिजली की मांग होती है, उसकी पचास फीसदी बिजली सौर ऊर्जा से बनने लगी है।
प्रदेश सरकार इस क्षेत्र में तेजी से काम कर रही है। सरकार का लक्ष्य अगले पांच सालों में इस ऊर्जा से 20 हजार मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य है। अगर लक्ष्य की पूर्ति कर ली जाती है तो मप्र देश का ऐसा पहला राज्य बन जाएगा, जहां पर मांग से अधिक सौर बिजली का उत्पादन होगा। दरअसल अभी प्रदेश में अलग-अलग इलकों में स्थापित किए गए सोलर प्लांटों से 7 हजार मेगावॉट सोलर एनर्जी का उत्पादन हो रहा है। अभी प्रदेश के सबसे बड़े रीवा सोलर पार्क से मिलने वाली बिजली का 24 फीसदी अंश दिल्ली मेट्रो को दिया जा रहा है। यानी दिल्ली मेट्रो भी मप्र की सोलर एनर्जी से ही संचालित हो रही है।
प्रदेश में सोलर एनर्जी को लेकर अभियान चलाया जा रहा है। सरकार अपने स्तर पर सोलर प्लांट लगा रही है। इसके अलावा पीएम सूर्य घर योजना के तहत सब्सिडी देकर घरों-घर सोलर प्लांट लगाए जा रहे है। इससे सोलर एनर्जी का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। प्रदेश में साल 2012 तक सोलर एनर्जी का उत्पादन महज 500 मेगावॉट या, जो बढक़र अब 7 हजार मेगावॉट तक पहुंच गया है। सोलर एनर्जी का उत्पादन बढऩे से आने वाले दिनों में बिजली सस्ती भी हो जाएगी। बिजली कंपनियों को हर साल टैरिफ बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। अभी बिजली कंपनियां कोयले से मिलने वाली बिजली के भरोसे है। यह बिजली 5 से 6 रुपए यूनिट पड़ती है। वहीं सोलर एनर्जी 2 से 3 रुपए में एक यूनिट मिल जाती है। रीवा सोलर प्रोजेक्ट 1590 हेक्टेयर क्षेत्र में है। यह विश्व के सबसे बड़े सिंगल साइड सौर संयंत्रों में से एक है। परियोजना से उत्पादित ऊर्जा का 76 प्रतिशत अंश पावर मैनेजमेंट कम्पनी उपयोग कर रही है।
फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट पर भी हो रहा काम
ओंकारेश्वर में विश्व का सबसे बड़ा फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट विकसित किया जा रहा है। इसकी क्षमता 600 मेगावॉट है। पैनल से पानी की सतह को ढंकने से वाध्धीकरण द्वारा होने वाले जल की हानि को कम किया जा सकेगा। ओंकारेश्वर प्रोजेक्ट की प्रथम चरण में 200 मेगावॉट क्षमता स्थापित हो चुकी है। कुल 3900 करोड रुपए की लागत से संपूर्ण 600 मेगावॉट की क्षमता स्थापित होने पर यह 12 लाख टन कार्बन उत्सर्जन को कम करेगी। अकेले रीवा सोलर पार्क से हर साल 15.7 लाख टन कार्बन डाई आक्साइड उत्सर्जन रोका जा रहा है, जो 2 करोड़ 60 लाख पेड़ लगाने के बराबर है। रीवा सोलर प्रोजेक्ट को हावर्ड विवि और सिंगापुर मैनेजमेंट विश्विद्यालय में केस स्टडी के रूप में शामिल किया गया है। इतना ही नहीं, इस प्रोजेक्ट को वल्र्ड बैंक प्रेसीडेंट अवार्ड से भी सम्मानित किया गया है। इसे नवाचार के लिये प्रधानमंत्री पुरस्कार के लिए भी चयनित किया गया है। यह प्रोजेक्ट पारम्परिक कोयला आधारित बिजली से कम दरों पर सौर ऊर्जा प्राप्त करने वाली भारत की पहली परियोजना है।
चार नए सोलर पार्क पर काम जारी
आगर-शाजापुर-नीमच में 1500 मेगावॉट क्षमता का सोलर पार्क तैयार हो रहे है। इसमें आगर जिले की 550 मेगावॉट की क्षमता स्थापित की जा चुकी है। शाजापुर एवं नीमच जिले की 780 मेगावॉट क्षमता अक्टूबर 2024 तक पूर्ण हो जाएगी। मंदसौर में 250 मेगावॉट का सोलर पार्क तैयार किया गया है। इससे उत्पन्न होने वाली सोलर एनर्जी वितरण कंपनियों द्वारा खरीदी जा रही है।
प्रदेश में किसान भी बन रहे सोलर एनर्जी उत्पादक
प्रदेश में किसानों को भी ऊर्जा उत्पादक बनने का अवसर दिया जा रहा है। प्रधानमंत्री कुसुम-अ एवं कुसुम-स के माध्यम से अन्नदाता को ऊर्जादाता बनाने का कार्य किया जा रहा है। प्रदेश में पीएम सूर्य घर योजना में सभी शासकीय भवनों पर सोलर रूफटॉप की स्थापना का कार्य वर्ष 2025 के अंत तक पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। प्रधानमंत्री मोदी के वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट नवकरणीय ऊर्जा के लक्ष्य की पूर्ति के लिए भी प्रदेश में काम चल रहा है।

Related Articles