-सियासी जमीन तलाशने में जुटे केजरीवाल, ओवैसी और चंद्रशेखर राव
गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। विधानसभा चुनाव में अब महज पांच माह का समय बचा है, ऐसे में अब भाजपा व कांग्रेस के सामने नई-नई चुनौतियां खड़ी हो रही हैं। इनमें सबसे बड़ी चुनौती वे क्षेत्रीय दल बन रहे हैं , जिनका अब तक प्रदेश में कोई वजूद ही नहीं था। इनमें आप , बीआरएस और एआईएमआईएम जैसे राजनैतिक दल शामिल है। इसके अलावा इस बार बसपा और सपा की नजर भी मप्र पर लगी हुई है। इसकी वजह है यह दोनों दल उप्र में सत्ता से दूर हैं। इन सभी दलों द्वारा अपने संगठनात्मक ढंाचे को खड़ा करने पर इन दिनों जोर दिया जा रहा है। इन दलों के चुनावी मैदान में उतरने से जहां दोनों प्रमुख दल भाजपा व कांग्रेस को नुकसान होगा , लेकिन इसमें सर्वाधिक नुकसान कांग्रेस को होना तय है। इसकी वजह है अब तक कांग्रेस को मिलने वाला एक मुश्त मुस्लिम समाज के मतों में विभाजन होना। फिलहाल अब तक आम आदमी पार्टी (आप), ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) द्वारा मप्र में चुनाव लड़ने का एलान किया जा चुका है, जबकि बसपा व सपा तो पहले से ही चुनावी तैयारियों में लगी हुई हैं। यह दोनों दल तो कई चुनाव से प्रदेश में अपनी किस्मत आजमाते आ रहे हैं। इसके बाद भी वे अपनी नीतियों व पार्टी की रीति की वजह से प्रदेश में तीसरी ताकत कभी नहीं बन सके हैं। इसी खाली जगह पर अब अन्य क्षेत्रीय दलों की नजर है। इसमें आप और एआईएमआईएम से भाजपा व कांग्रेस को अधिक खतरा है। इसकी वजह है इन दोनों को दलों द्वारा पहली बार में ही नगरीय निकाय चुनाव में अच्छी सफलता मिलना। आप का तो सिंगरौली में अपना महापौर तक जनता चुन चुकी और कई निकायों में उसके पार्षद भी निर्वाचित हो चुके हैं। सिंगरौली महापौर पद पर अपना कब्जा जमाने के साथ आम आदमी पार्टी द्वारा प्रदेश के 17 पार्षद पदों पर भी जीत हासिल की जा चुकी है। इसमें पांच प्रत्याशी सिंगरौली नगर निगम से चुनाव जीते है। वहीं, एआईएमआईएम ने भी अपनी जोरदार दस्तक देते हुए जबलपुर, खंडवा और बुरहानपुर में 4 पार्षद पदों पर जीत दर्ज की जा चुकी है। इसके अलावा खंडवा और बुरहानपुर में एआईएमआईएम के महापौर उम्मीदवारों को दस हजार से अधिक वोट मिलना भी अलग सियासी संकेत देता है। यह बात अलग है कि जो नए दल प्रदेश में चुनावी समर में उतरने की तैयारी कर रहे हैं, वे अल्पसंख्यकों के नाम पर राजनीति करते हैं, जिसकी वजह से राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा पर कम ही असर पड़ेगा। कांग्रेस के चुनावी समीकरण जरूर बिगड़ सकते हैं। मप्र की राजनीति में अभी तक दो प्रमुख दल कांग्रेस एवं भाजपा ही हैं। दोनों दलों के बीच ही सीधा मुकाबला होगा, लेकिन जिस तरह से नए दल मप्र में राजनीतिक जमीन तलाश रहे हैं, उस पर भरोसा कर लिया जाए तो करीब आधा दर्जन राजनीतिक दल पहली बार चुनाव में उतरेंगे। हालांकि आम आदमी पार्टी ने 2018 के विधानसभा चुनाव में भी प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन तब कोई सफलता नहीं मिली थी। अगर प्रदेश में मुस्लिम आबादी की बात की जाए तो 2011 की जनगणना के अनुसार , मप्र में मुसलमानों की आबादी 6.6 प्रतिशत है।
यह हैं आंकड़े
भोपाल, इंदौर और जबलपुर जैसे बड़े शहरों से लेकर राऊ – महू जैसे कस्बाई नगर की कतिपय सीटों पर अल्पसंख्यकों की संख्या निर्णायक हो गई है। करीब दो दर्जन सीटें ऐसी हैं जहां 30 से 40 हजार वोटर्स हैं। भोपाल मध्य पर 1.11 लाख, बुरहानपुर में 96 हजार, जबलपुर पूर्व 77 हजार, भोपाल उत्तर 87 हजार, नरेला 68 हजार, इंदौर-5 में 69 हजार और रतलाम में 51 हजार मुस्लिम वोटर्स हैं।
सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी आप
विस चुनाव की तैयारियों को लेकर प्रदेश में आप द्वारा हर माह संगठनात्मक बैठकें की जा रही हैं। इसके लिए लगातार दिल्ली से नेता भी प्रदेश के प्रवास पर आ रहे हैं। आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल छह महीने पहले ही मप्र की सभी 230 सीटों पर प्रत्याशी उतारने का ऐलान कर चुके हैं। हालांकि आप की प्रदेश इकाई का कहना है कि पार्टी फिलहाल शहरी क्षेत्र की सभी सीटों पर संगठन का ढांचा तैयार कर रही है। साथ ही शहरी क्षेत्र में ही प्रत्याशी खड़ा करने पर जोर है। इसकी वजह है प्रदेश में एक महापौर की सीट पर चुनाव जीतना।
कांग्रेस को नुकसान ज्यादा
खास बात यह है कि जितने नए दल चुनाव में उतरेंगे ,उतना ही नुकसान कांग्रेस को होना तय माना जा रहा है। भाजपा को नुकसान कम होने की संभावना की बड़ी वजह है, प्रदेश में उसका वोट बैंक स्थाई होना। मप्र में 2003 में सत्ता में आयी भाजपा ने लगातार अपना वोट बैंक मजबूत किया है। 2018 के विधानसभा चुनाव में भले ही भाजपा सरकार नहीं बना पायी थी, लेकिन तब भी भाजपा को मिले मत कांग्रेस से अधिक थे। इससे यह साफ है कि नए दलों के आने से कांग्रेस को ही नुकसान होने की संभावना है। आम आदमी पार्टी और एआईएमआईएम सीधे तौर पर कांग्रेस के वोट बैंक में ही सेंध लगाएगी। यह भी संभावना है कि भाजपा से असंतुष्ट वोट कांग्रेस को न जाकर इन दलों को चला जाए। इसका फायदा भी भाजपा को ही मिले।
बीआरएस की भी नजर
भारत राष्ट्र समिति के अध्यक्ष एवं तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने भी हिंदी भाषी राज्य मप्र की राजनीति में आने की तैयारी शुरु कर दी है। इसके तहत ही उनके द्वारा मध्य प्रदेश के कई नेता एक साथ बीआरएस में शामिल किए गए हैं। प्रदेश के जो नेता पार्टी में शामिल किए गए हैं, उनमें रीवा के पूर्व सांसद बुद्धसेन पटेल (भाजपा), पूर्व विधायक डॉ. नरेश सिंह गुर्जर (बसपा), सतना (सपा) के धीरेंद्र सिंह, सतना जिला पंचायत के सदस्य विमला बारी और अन्य शामिल हैं।
तीन दर्जन सीटों की ङ्क्षचता
इसी साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के लिए करीब 3 दर्जन ऐसी सीटें ङ्क्षचता की वजह बनी हुई हैं, जहां मुस्लिम मतदाता निर्णायक संख्या में पहुंच चुके हैं। अभी इनमें से भाजपा व कांग्रेस के पास बराबर सीटें हैं। पिछली बार इन 33 सीटों में से 18 पर भाजपा और 15 में कांग्रेस को जीत मिली थी। लेकिन इस बार निकाय चुनाव में सियासी समीकरण बदलने से दोनों ही दल आशंकित हो उठे हैं। इसकी वजह है महापौर चुनाव के दौरान बुरहानपुर और उज्जैन में ओवैसी की पार्टी ने कांग्रेस के समीकरण बिगाड़ दिए थे। सिंगरौली में आप प्रत्याशी ने जीत हासिल कर ली थी।
एआईएमआईएम का भी खुल चुका है खाता
एआईएमआईएम ने बीते साल ही निकाय चुनाव में पहली बार मप्र की राजनीति में प्रवेश किया था , जिसमें उसे कुछ पार्षद की सीटों पर जीत भी मिली थी , जिसके बाद से ही एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी अब मप्र की चुनिंदा सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने की तैयारी कर रहे हैं। इसके लिए उनके द्वारा पूरा फोकस मुस्लिम बाहुल सीटों पर किया जा रहा है। इससे उन इलाकों में बड़े दलों के चुनावी समीकरण बिगड़ सकते हैं।