90 दिनों से धूल खा रही प्रोफेसरों की ग्रेड पे की फाइल

ग्रेड पे की फाइल
  • उच्च शिक्षा विभाग कोर्ट का फैसला व सरकार के निर्णय पर नहीं कर रहा अमल

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रोफेसरों के सालाना ग्रेड पे का मामला सुलझने का नाम नहीं ले रहा है। इस मामले में उच्च शिक्षा विभाग पूरी तरह से मनमानी कर रहा है। हालत यह है कि विभाग न तो कोर्ट के फैसले पर अमल कर रहा है और न ही सरकार के निर्णय पर इसकी वजह से एक बार फिर विवाद की स्थिति बनने लगी है। ग्रेड पे का ऐसा मामला है जिस पर शासन को दो -दो बार अदालत में मात खानी पड़ी है। यही वजह हे कि इस मसले को सुलाझाने के लिए मुख्यमंत्री मोहन यादव ने पहल करते हुए इसे कैबिनेट में लाकर विवाद का हल तत्काल करने का फैसला लिया था। इसके बाद प्रोफेसर्स भी कोर्ट केस वापस लेने के तैयार हो गए थे। मगर उच्च शिक्षा विभाग कैबिनेट के फैसले पर बीते तीन माह से अमल करने को तैयार नही है। दरअसल यह फाइल विभागीय मंत्री की टेबल पर ही पड़ी हुई है।
 राज्य सरकार अदालती मामलों के बोझ को कम करना चाहती है। मुख्यमंत्री  की भी मंशा है कि ऐसा प्रयास किया जाए, जिससे किसी को सरकार के खिलाफ अदालत जाना ही नहीं पड़े। विभागीय स्तर पर ही विवादों का निराकरण हो जाए। इसके लिए वे विवादित मामलों को कैबिनेट के जरिए निराकृत करने की पहल भी करने में पीछे नहीं हैं। मगर उच्च शिक्षा विभाग न कोर्ट के आदेश ही मान रहा है और न अपनी सरकार के फैसलों पर ही अमल कर पा रहा है। ऐसा ही मामला प्रोफेसर्स की एजीपी 9000 से 10000 करने का है। हाईकोर्ट में हार के बाद सरकार अपील में चली गई थी। अपील में भी सरकार को हार का मुंह देखना पड़ा। मुख्यमंत्री के संज्ञान में पूरा मामला होने से उन्होंने पहल करते हुए पुराना आदेश निरस्त करते हुए 4 मार्च 2024 की कैबिनेट में  प्रोफेसर्स को 10000 रुपए एजीपी देने का निर्णय लिया था। कोर्ट में किरकिरी होने के कारण विभाग को भी इसमें तत्काल कार्रवाई करना था। मगर आज तीन माहीने इंतजार में ही बीत गए। इस बीच प्रोफेसर्स शासन द्वारा बार-बार दिए जा रहे रिकवरी के नोटिस से परेशान हैं और फिर अदालत की शरण में जाने की तैयारी करने में लग गए हैं। सूत्रों के मुताबिक विभाग ने कैबिनेट के फैसले पर तत्काल कार्रवाई करते हुए मार्च में ही फाइल विभागीय मंत्री इंदरसिंह परमार के कार्यालय को भेज दी थी। मगर अब तक फाइल वहां से लौटी ही नहीं है। प्रोफेसर्स विभागीय अधिकारियों के लगातार चकर काट रहे हैं। मगर विवाद की स्थिति टलने की बजाय बढ़ती ही जा रही है।
यह है मामला राज्य सरकार ने 2006 में प्रोफेसर्स को छठवां वेतनमान देते हुए एजीपी 10000 का लाभ दिया था। करीब ढाई साल तक सभी पात्र प्रोफेसर्स को इसका लाभ मिलता रहा। 30 माहबाद वित्त विभाग की आपत्ति के बाद शासन ने पुराना आदेश निरस्त करते हुए बड़ी हुई एजीपी कम कर दी। इसके खिलाफ प्रोफेसर्स हाईकोर्ट चले गए। वहां प्रोफेसर्स के पक्ष में ही फैसला आया। सरकार अपील में गई, हवा भी हार गई। इस बीच सरकार ने 30 माह में ली गई बढ़ी हुई एजीपी की रिकवरी प्रोफेसरों से शुरू कर र दी। इसके खिलाफ प्रोफेसर्स कोर्ट की शरण में हैं।
यह हुआ था समझौता
मुख्यमंत्री डॉ यादव की पहल पर प्रोफेसर्स से समझौता किया गया था कि वे अपना मामला न्यायालय से वापस ले लें और सरकार पुराना आदेश बहाल कर देगी। प्रोफेसर्स की सहमति के बाद कैबिनेट में मामला ले जाकर सरकार ने मध्यप्रदेश शैक्षणिक सेवा (महाविद्यालयीन शाखा) भर्ती नियम, 1990 अंतर्गत कार्यरत सीधी भर्ती/पदांत/पदनामित प्राध्यापकों को यू.जी.सी. छठवें वेतनमान में 1 जनवरी 2006 से रुपये 37400-67000+ए.जी.पी. 10 हजार रुपए का वेतनमान देने की स्वीकृति प्रदाय की थी। साथ ही 14 सितम्बर 2012 के विभागीय आदेश को संशोधित करने तथा 19 मार्च 2013 के विभागीय आदेश को निरस्त करने के लिए उच्च शिक्षा विभाग को अधिकृत किया था। मगर विभाग अब तक न पुराने आदेश को बदल सका है और न प्रोफेसर्स की रिकवरी ही रुक रही है।

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