- 20 जिलों में दो साल से बंद पड़ी हुई हैं रेत खदानें, शुरू होने के लिए करना होगा इंतजार …
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। तीन साल पहले प्रदेश में कमलनाथ सरकार द्वारा लागू की गई नई रेत नीति सरकार व आम आदमी के लिए मुसीबत बन गई है। इससे सरकार को तो घाटा लग ही रहा है साथ ही आम आदमी की भी रेत मंहगी होने से जेब कट रही है। हालात यह हैं की प्रदेश में डेढ़ दर्जन से अधिक जिलों में रेत की खदानें बीते दो सालों से बंद पड़ी हुई हैं और उनमें से रेत माफिया जमकर अवैध रुप से रेत खनन कर रहा है। अब इस साल इन बंद रेत खदानों के शुरू होने की उम्मीद है, लेकिन उसके लिए बारिश समाप्त होने की इंतजार करना पड़ेगा। इन खदानों के ठेके भी हुए और ठेकेदारों ने काम भी शुरू किया, लेकिन बाद में वे इससे पीछे हट गए। प्रदेश में बीते छह सालों से रेत उत्खनन का बुरा हाल चल रहा है। भाजपा की तत्कालीन सरकार ने 2016 में रेत खनन पंचायतों के हवाले किया था, लेकिन 2019 में कमलनाथ सरकार द्वारा इन खदानों को पंचायतों से लेकर खनिज निगम को सौंप दिया गया था। खनिज निगम ने रेत खनन के नियम बनाने व नीलामी प्रक्रिया पूरी करने में एक साल लगा दिया, जिसके बाद कोरोना काल शुरू हो गया। इससे रेत खदान समूह के ठेकेदारों को घाटा हुआ और उन्होंने प्रीमियम राशि देना बंद कर दी। साथ ही खदानें सरेंडर कर दी थीं। अब तक राज्य सरकार को इन खादानों से मिलने वाले 250 करोड़ रुपए से ज्यादा की चपत लग चुकी है। प्रदेश में पहली बार ऐसे हालात बने है कि रेत खदानों वाले 41 जिलों में से 19 जिलों में वैध खदानें ठेकेदारों ने छोड़ कर न्यायालय की शरण ली है।
अवैध रेत खनन जारी
सरकार अवैध रेत खनना को रोक पाने में नाकाम साबित हो रही है। जबकि, वर्तमान में अधिकृत रूप से केवल 23 जिलों में रेत का वैध उत्खनन हो पा रहा है। तत्कालीन कांग्रेस सरकार वर्ष 2019 में नई रेत नीति लाई थी। जिसके तहत 41 जिलों में 1200 करोड़ रुपए में रेत के ठेके हुए थे। बाद में स्थिति बदल गई। कोरोना काल के चलते 40 फीसदी ठेकेदार भाग गए। हालांकि कांग्रेस का आरोप है कि ठेकेदारों को दवाब डालकर भगा दिया गया। अब इनमें से कई जगह भाजपा नेता अवैध रेत उत्खनन कर रहे हैं। हालांकि, खनिज विभाग का दावा है कि अब ऐसे जिलों में नए सिरे से टेंडर करवाए जा रहे हैं। ठेकेदारों ने जब ठेके छोड़े तो राज्य शासन ने रेत नीति में कुछ संशोधन किए थे। इसके बाद फिर से टेंडर भी जारी किए गए, लेकिन ठेकेदारों ने रूचि नहीं दिखाई। वहीं, हाईकोर्ट के निर्देश पर जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट डीसीआर निरस्त होने से खदानें बंद पड़ी है। अब यहां फिर से टेंडर बुलाना पड़ेंगे। प्रदेश में होशंगाबाद, रायसेन, पन्ना, रतलाम, मंदसौर, शाजापुर, भिंड, छतरपुर, धार, राजगढ़, जबलपुर, दमोह, शिवपुरी, बड़वानी, अलीराजपुर, आगर-मालवा, टीकमगढ़, खरगौन में रेत खदानें नई सिरे से होना बाकी है।
दोगुनी कीमत में मिल रही रेत
लगभग प्रदेश के 40 फीसदी खदाने वाले जिलों में रेत खदान बंद होने से महंगी होने लगी है। रॉयल्टी के हिसाब से 17 हजार रुपए में एक डंपर पड़ता है, लेकिन बाजार में एक डंपर रेत लगभग 31 हजार से 35 हजार रुपए तक पहुंच चुकी है। रेत के सप्लायर डीजल और दूरी को जोड़कर दाम कम-ज्यादा कर रहे हैं। मोटी कमाई की आस में मध्य प्रदेश में लागू की गई नई रेत नीति उलटा घाटे का सौदा बन गई है। अब तक राज्य सरकार को 250 करोड़ रुपए से ज्यादा का घाटा हो गया है। यही नहीं, रेत का अवैध खनन भी बढ़ गया है।
यह है रेत खदानों की स्थिति
अशोकनगर, सिवनी, बुरहानपुर और डिंडोरी में ठेकेदार प्रीमियम राशि ही जमा नहीं कर रहे थे। जिसकी वजह से उनके ठेके निरस्त कर दिए गए। इनकी फिर से नीलामी प्रक्रिया शुरू की जा रही है। इसी तरह से 10 जिलों में खदानें चालू करने की स्थिति हैं, इनमें भिंड, छतरपुर, रायसेन, शिवपुरी शामिल हैं। राजगढ़, जबलपुर, दमोह, धार, बड़वानी, खरगोन में रेत समूह अगले माह से चालू हो जाएंगे। इसी तरह से पन्ना, शाजापुर, रतलाम, मंदसौर, टीकमगढ़, आलीराजपुर में तीन माह के लिए निविदा जारी की गई है।