भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। कोयले के संकट के बीच मानसून बड़ी राहत लेकर आया है। मानसून की झमाझम बारिश के कारण प्रदेश में बिजली की खपत कम हो गई है। इस कारण बिजली का उत्पादन भी कम हो गया है। ऐसे में कोयले की मांग भी कम हो गई है। इस स्थिति को देखते हुए प्रदेश सरकार ने फिलहाल बिजली के लिए विदेशी कोयला खरीदने की प्रक्रिया को रोक दिया है। इससे जहां सरकार को बड़ी राहत मिली है, वहीं उपभोक्ताओं को भी महंगी बिजली के झटके लगने की आशंका समाप्त हो गई है।
गौरतलब है की पिछले एक माह से प्रदेश में हो रही बारिश से बिजली की खपत कम हो गई है। इससे फिलहाल कोयला संकट पर विराम लगा हुआ है। इधर, राज्य सरकार ने सरकारी बिजली प्लांट्स के लिए विदेशी कोयला खरीदने से पल्ला झाड़ लिया है। उसका दावा है कि जब देशी कोयला ही कम कीमत पर पर्याप्त मिल रहा है, तो विदेशी कोयला महंगी दर पर खरीदकर उपभोक्ताओं पर भार क्यों बढ़ाए। कोयले की खरीदी से जुड़े जानकारों के मुताबिक, विदेशी कोयला, देशी कोयले के मुकाबले करीब 8 से 10 गुना ज्यादा महंगा होता है। देशी कोयले की कीमत जहां 3,500 से 4,000 हजार रुपए प्रति टन है, वहीं विदेशी कोयले की लागत 15 से 20 हजार रुपए प्रति टन पड़ेगी।
बिजली की रोजाना खपत 9,000 मेगावाट
बारिश के कारण प्रदेश में की बिजली की खपत रोजाना 9, 000 मेगावाट तक सिमट गई। फिलहाल हाइडल प्लांट से 1,837 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है। उसकी कुल क्षमता 2,435 मेगावाट की है। जबकि थर्मल पावर प्लांट से 3,066 मेगावाट का उत्पादन
हो रहा है। ऐसे में कोयले की खपत कम हो गई है।
अधिकारियों की मानें तो प्रदेश में इन दिनों करीब दस दिन का 2.50 लाख मीट्रिक टन का स्टॉक है। फुल लोड पर सभी बिजली प्लांट चलाने पर रोजाना 65 हजार मीट्रिक टन कोयले की जरूरत होती है। इस समय ये प्लांट आधे लोड पर चल रहे हैं। करीब 30 से 35 हजार मीट्रिक टन कोयले की रोजाना खपत हो रही है। इसके अलावा रोजाना कोल इंडिया से 30 हजार मीट्रिक टन कोयले की रैक मप्र पहुंच रही है। ऊर्जा विभाग के अधिकारियों की मानें तो मप्र कोयला संकट से मुक्त है। ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव संजय दुबे का कहना है कि मप्र में फिलहाल कोयले का संकट नहीं है, जितने कोयले की जरूरत है, उतना हमें मिल रहा है। साढ़े सात लाख मीट्रिक टन विदेशी कोयले के लिए टेंडर निकाले गए थे, लेकिन हमने आर्डर नहीं दिया है, क्योंकि यह महंगा है। इससे बिजली भी महंगी हो जाएगी। जब देशी कोयले से काम चल रहा है तो महंगे विदेशी कोयले की जरूरत क्या है। जब भी हमें कोयले की जरूरत होगी तो कोल इंडिया का कोयला ही खरीदेंगे।
साढ़े सात लाख टन विदेशी कोयला खरीदने की तैयारी
प्रदेश में दो साल से कोयला संकट से बिजली का उत्पादन भी प्रभावित हो रहा था। इस संकट को खत्म करने के लिए राज्य सरकार ने साढ़े सात लाख टन विदेशी कोयला खरीदने के लिए टेंडर जारी किए थे। टेंडर खोले जा चुके हैं। यानी सरकार किसी भी समय आर्डर देकर कोयला खरीद सकती है। प्रदेश की बिजली कंपनी 10 प्रतिशत अनुमति के आधार पर 19 लाख मीट्रिक टन विदेशी कोयला खरीद सकती है। उसे केंद्र सरकार को केवल एनओसी देना होगा। फिलहाल राज्य सरकार विदेशी कोयला खरीदने के मूड में नहीं है। हालांकि जेनको के पूर्व अतिरिक्त मुख्य अभियंता राजेंद्र अग्रवाल का कहना है कि सरकार इस समय विदेशी कोयले की खरीदी टाल रही है, लेकिन उसने पूरी तैयारी कर रखी है। वह किसी भी समय कोयला खरीदी का ऑर्डर जारी कर सकती है। भले ही सरकारी बिजली कंपनियां विदेशी कोयला नहीं खरीद रही हैं मगर मध्य प्रदेश को बिजली देने एनटीपीसी और एनबी पॉवर प्लांट ने विदेशी कोयले की खरीदी शुरू कर दी है। एनटीपीसी ने देशभर में अपने प्लांट के लिए 12 हजार करोड़ रुपए का विदेशी कोयला खरीदने का एग्रीमेंट किया है। बिजली मामलों के जानकारों के अनुसार, मध्य प्रदेश में उसके प्लांट्स में इसकी खपत शुरू हो गई है। मध्य प्रदेश भी एनटीपीसी से रोजाना औसतन 3,400 मेगावाट और एनबी प्लांट से 380 मेगावाट तक बिजली खरीदता है।
28/07/2022
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