आमजन के आनंद का पता लगाएगी सरकार

आमजन के आनंद
  • बेकाम और खर्चीला साबित हो रहा है विभाग

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। हाल ही में नई सरकार के कामकाज का एक माह पूरा हो चुका है, ऐसे में सरकार अपने कामकाज का आंकलन करना चाहती है, कि उसके कामकाज से जनता के मन पर क्या प्रभाव पड़ा है। हालांकि सरकार का मानना है कि उसका भरोसा तेजी से बढ़ा है। यही वजह है कि अब सरकार यह पता लगाना चाहती है कि शासन प्रशासन के काम-काज, सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन, स्वास्थ्य सुविधाएं, कानून व्यवस्था की अभी क्या स्थिति है।
इसका जिम्मा राज्य आनंद संस्थान को दिया गया है। यह बात अलग है कि यह ऐसा विभाग है जो खुद ही आंनद की तलाश में लगा हुआ प्रतीत होता है। इसकी वजह है इस विभाग के बारे में आमजन तो ठीक खुद सत्तारूढ़ दल के ही कार्यकर्ताओं को ही बहुत कुछ पता नहीं है।  सरकार ने पिछले एक माह में जनता से जुड़े कई निर्णय लिए हैं। प्रयास है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिले। सरकार इसके माध्यम से यह जानने का प्रयास कर रही है कि जनता की सरकार के बारे में क्या राय है। सरकार जो काम कर रही है, वह लोगों के लिए कितने लाभकारी हैं। इसके लिए आनंद संस्थान ने प्रश्नावली तैयार की है। इसमें करीब दस मुद्दों पर 29 सवालों के उत्तर लिए जाएंगे। इसके साथ ही लोगों से सुझाव भी लिए जाएंगे।
आठ साल पहले हुआ था गठन
वर्ष 2016 में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली सरकार ने आनंद विभाग के गठन को मंजूरी दी थी। मोटे तौर पर इसका मूल मकसद राज्य की जनता में खुशहाली का स्तर माप कर उनका जीवन खुशहाल बनाने का प्रयास करना था। प्रेरणा तत्कालीन मुख्यमंत्री चौहान को भूटान के राष्ट्रीय खुशहाली सूचकांक से मिली थी, इसलिए मध्य प्रदेश का एक ‘हैप्पीनेस इंडेक्स’ जारी करने की भी बात कही गई थी, जो राज्य की जनता में खुशहाली का स्तर बताता।  यह बात अलग है कि यह सूचकांक आज तक जारी नहीं किया गया है। हैप्पीनेस इंडेक्स का अंतहीन इंतजार
विभाग के गठन के समय राज्य का हैप्पीनेस इंडेक्स जारी करने को इसका सबसे महत्वपूर्ण कार्य बताया गया था। आईआईटी खडग़पुर के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर करने के अलावा तत्कालीन अधिकारियों ने सरकारी खर्च पर भूटान के दौरे भी किए थे। लेकिन, तब से अब तक नतीजा ढाक के तीन पात’ ही रहा है। कभी कोरोना, तो कभी किसी अन्य कारण से बार-बार राज्य आनंद संस्थान की ओर से इंडेक्स जल्द ही जारी करने का आश्वासन दिया जाता है।
इस तरह के होंगे प्रश्न
सरकारी योजनाओं का आपको कितना लाभ मिल रहा है।  क्या आप शासन, प्रशासन के काम-काज से संतुष्ट हैं।  अपने आपको कितना सुरक्षित महसूस करते हैं। आपके आसपास स्कूल कॉलेज हैं, उनमें पढ़ाई की गुणवत्ता क्या है और वहां पर्याप्त शिक्षक हैं या नहीं। बिजली, पेयजल आपूर्ति, शौचालयों की उपलब्धता सहित अधोसंरचना पर क्या राय है। क्या आपको शिक्षा संबंधी योजनाओं का लाभ मिल रहा है। परिवहन व्यवस्था से आप कितने संतुष्ट हैं? परिवहन व्यवस्था में सडक़ों की स्थिति, सडक़ों की कनेक्टिविटी, ट्रैफिक व्यवस्था, सार्वजनिक परिवहन से, सडक़ों पर उपलब्ध आपाकालीन सेवाएं शामिल हैं। जल संरक्षण, जंगल और पेड़ों के संरक्षण, वायु प्रदूषण एवं ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिए कार्यवाही से कितने संतुष्ट हैं। वैसे तो काम-काज का फीडबैक सरकार के पास विभिन्न माध्यमों से पहुंचता रहता है। विभागीय अमला भी फीडबैक देता है, लेकिन कई बार इसमें पक्षपात की गुंजाइश रहती है, इसलिए आनंद संस्थान ने यह जिम्मेदारी उठाई है। बताया जाता है कि लोकसभा चुनाव के बाद इस फीडबैक पर काम शुरू होगा।
‘सिर्फ वेबसाइट तक ही सिमटा है कामकाज’
वेबसाइट पर उपलब्ध विभागीय कामकाज की जानकारी किसी को भी बेहद आकर्षक लग सकती है,लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। इस मामले में आनंदम सहयोगियों का कहना है कि जो भी दिख रहा है वो केवल कागजों में है, धरातल पर शून्य है। आपको केवल संस्थान के ईमेल मिलेंगे, वेबसाइट पर सब कुछ मिलेगा, जमीन पर कुछ भी नहीं है। विभाग की सक्रियता केवल फोटो खिंचवाकर अपलोड करने तक है। थोड़ी-बहुत गतिविधियां कर देते हैं, जिससे फोटो बन जाते हैं और वेबसाइट पर अपलोड हो जाते हैं। कुल मिलाकर यह केवल एक वेबसाइट के अलावा और कुछ नहीं है। अहम बात यह है कि समाज के बीच काम करने वाले लोगों ने विभाग तक का नाम नहीं सुना है।

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