सरकारी संपत्तियों का बेहतर… प्रबंधन कर कमाएगी सरकार

  • शिव ‘राज’ के नक्शेकदम पर नहीं चलेगा मोहन ‘राज’
  • विनोद उपाध्याय
सरकारी संपत्तियों

मप्र में अनुपयोगी सरकारी संपत्तियों को बेचकर सरकारी खजाना भरने की जो परिपाटी पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शुरू की थी, मोहन सरकार उस पर अमल नहीं करेगी। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व वाली मप्र सरकार अनुपयोगी सरकारी संपत्तियों को बेचने के पक्ष में नहीं है। सूत्रों का कहना है कि मोहन सरकार अनुपयोगी सरकारी संपत्तियों का बेहतर उपयोग और प्रबंधन करने के पक्ष में हैं। इससे जहां सरकारी संपत्ति वैसी की वैसी तो रहेगी ही उससे आय भी होगी। यानी शिव ‘राज’ के नक्शे कदम पर मोहन ‘राज’ नहीं चलेगा।
दरअसल, मप्र की पूर्ववर्ती सरकार और उसके मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश सरकार पर बढ़ते कर्ज के दबाव को कम करने के लिए प्रदेशभर में फैली अनुपयोगी सरकारी संपत्तियों को बेचने का सिलसिला शुरू किया था। लेकिन वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव सरकारी संपत्तियों को बेचने के कतई पक्ष में नहीं है। यही वजह है कि डॉ. मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद से लोक परिसंपत्ति विभाग ने एक भी संपत्ति को नहीं बेचा है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने पहली ही बैठक में सरकारी संपत्ति बेचने पर रोक लगा दी थी। हालांकि संपत्ति बेचने पर लिखित रोक नहीं लगी है। जबकि विभाग संपत्तियां बेचने की लंबी सूची बनाकर तैयार कर चुका था। मुख्यमंत्री के इस फैसले को प्रदेश के हित में बताया जा रहा है।
शिव ‘राज’ में 99 संपत्तियां बेची गईं
गौरतलब है कि प्रदेशभर में फैली अनुपयोगी सरकारी संपत्तियों का बेहतर उपयोग और प्रबंधन करने की बजाय पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें बेचने का सिलसिला शुरू किया था। पिछली सरकार सितंबर 2020 में लोक परिसंपत्ति विभाग के गठन से लेकर नवंबर 2023 तक करीब 99 संपत्तियों को खुली नीलामी के जरिए बेच चुकी थी। संपत्ति बेचकर सरकार के खजाने में करीब एक हजार करोड़ रुपए आए। लेकिन मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव सरकारी संपत्ति बेचने की बजाए उनका बेहतर उपयोग और प्रबंधन करने के पक्ष में हैं। मुख्यमंत्री के निर्देश पर दूसरे प्रदेशों में भी राज्य की संपत्ति को चिह्नित कर सहेजा गया है। पिछली सरकार ने मप्र के भीतर एवं दूसरे प्रदेशों में राज्य की अचल संपत्तियों को बेचने के लिए 26 सितंबर 2020 को सरकार के 69 वें विभाग के रूप में लोक परिसंपत्ति विभाग का गठन किया था। इसी विभाग में मप्र राज्य परिसंपत्ति प्रबंधन कम्पनी बनाकर संपतियां बेची गईं। जिनमें राजस्व, परिवहन, ऊर्जा समेत अन्य विभागों की संपत्तियां शामिल हैं। पिछली सरकार ने वर्ष 2020-21 में 4 संपत्ति से 26.96 करोड़, 2021-22 में 19 संपत्ति से 284.5 करोड़, 2022-23 में 52 संपत्ति से 564. 45 करोड़ और चालू वित्तीय वर्ष 2023-24 में 24 संपत्ति से 258. 44 करोड़ रुपए जुटाए। हालांकि अभी तक 1134 करोड़ में से करीब एक हजार करोड़ आ चुके हैं। जबकि मोहन सरकार ने एक भी संपत्ति अभी तक नहीं बेची है।
सीएम ने करवाया सर्वे…कांग्रेस को नजर आया झोल
गौरतलब है की सरकारी संपत्तियों का बेहतर उपयोग और प्रबंधन करने के लिए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सर्वे कराने का निर्देश दिया तो कांग्रेस को उसमे झोल नजर आने लगा। मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद वित्त विभाग ने सभी विभागों को लिखे पत्र में कहा है कि मुख्य सचिव दूसरे राज्यों में स्थित सरकार की संपत्ति को लेकर जल्द समीक्षा करेगी। इस पत्र के बाद कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने भाजपा और सीएम मोहन यादव पर जोरदार हमला बोला है। उन्होंन मांग की है कि भाजपा सरकार प्रदेश की आर्थिक स्थिति पर श्वेतपत्र जारी करे। जीतू पटवारी ने आरोप लगाया कि कर्ज में डूबी मप्र सरकार देश के दूसरे राज्यों में मौजूद मप्र के अलग-अलग विभागों की संपत्ति बेचने और उसे किराए पर देने की तैयारी कर रही है। वित्त विभाग ने सभी विभागों को पत्र लिखकर जानकारी भी मांग ली है। पूछा जा रहा है कि किस राज्य में कितनी संपत्ति किस रूप में है, उसका मूल्य क्या है? अगर किसी प्रॉपर्टी का कोर्ट में केस चल रहा है, किसी तरह का विवाद है तो इसकी भी जानकारी दी जाए। इस कवायद का मकसद मध्य प्रदेश के बाहर मौजूद विभिन्न विभागों की संपत्ति का डेटा जुटाना है। ताकि, उसे बेचकर या किराये पर देकर राशि जुटाई जा सके। संपत्ति के मौजूदा स्वरूप की जानकारी देने के साथ, उसके मौजूदा मूल्य की जानकारी भी चाही गई है।
परिसंपत्तियों का बेहतर उपयोग पर जोर
हाल ही में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने मप्र परिसंपत्ति प्रबंधन राज्य कंपनी लिमिटेड के संचालक मंडल की बैठक में कहा कि मप्र और मप्र के बाहर अन्य राज्यों में प्रदेश सरकार की परिसंपत्तियों का उपयोग और बेहतर प्रबंधन का कार्य सुनिश्चित किया जाएगा। साथ ही कहा कि परिसंपत्तियों एवं उनकी वर्तमान स्थिति का अध्ययन और सर्वेक्षण कर ऐसी परिसंपत्तियों का जनहित में उपयोग किया जाएगा। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव सरकारी संपत्ति बचाने को लेकर कितने संवेदशील हैं, इसका अंदाजा हाल ही में राजधानी भोपाल के सबसे बड़े प्राकृतिक खूबसूरत स्थल वाल्मी की पहाड़ी को जैव विविधता विरासत स्थल घोषित कराने के फैसले से लगाया जा सकता है। वाल्मी पर भोपाल के बिल्डर से लेकर कारपोरेट जगत की निगाहें थीं। बिल्डरों की कॉलोनियों को वाल्मी से रास्ता देने के लिए स्थानीय जनप्रतिनिधि एकजुट हो चुके थे। पिछली सरकार में पंचायत मंत्री ने बिल्डरों की कॉलोनियों को रास्ता देने के लिए वाल्मी में खुदाई को मंजूरी दे दी थी। इस बीच तत्कालीन मुख्य सचिव ने अपने वीटो का उपयोग कर काम रुकवाया।
मोहन सरकार ने एक भी संपत्ति नहीं बेची
जानकारी के अनुसार, पिछली सरकार  99 संपत्तियों का 661 करोड़ के आरक्षित मूल्य के विरुद्ध खुली नीलामी में 1134 करोड़ में सौदा कर चुकी थी। जिनमें से करीब 1 हजार करोड़ रुपए खजाने में आ चुके हैं। विभाग ने 561 संपत्तियों को चिह्नित कर रखा है, जो बेचने के लिए हैं। डॉ. मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद विभाग ने एक भी संपत्ति को नहीं बेचा है। बल्कि उन्हें सार्वजनिक उपयोग के लिए व्यवस्थित किया जा रहा है। ताकि भविष्य में सरकार उनका उपयोग कर सके। पिछली सरकार के कार्यकाल में ही विनोद मिल उज्जैन की 18.18 हेक्टेयर, इंदौर और लवकुशनगर छतरपुर की संपत्ति बेचने की निविदा प्रक्रिया शुरू की गई थी, जो पूरी नहीं हुई। सरकार अब ये संपत्तियां भी बेचने के पक्ष में नहीं है।

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