फीस वसूली से सरकारी खजाना भरा पर नहीं मिली नौकरी

फीस वसूली
  • परीक्षा परिणाम से लेकर नियुक्ति तक का इंतजार नहीं होता है समाप्त

भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में ऐसा राज्य बन चुका है , जिसमें युवाओं को सरकार न तो सरकारी नौकरी देने में रुचि रखती है और न ही उन्हें कोई बेराजगारी भत्ता देती है, लेकिन यह जरुर है कि उन्हें सरकारी नौकरी का सब्जबाग दिखाकर उनसे विभिन्न भर्ती परिक्षाओं के नाम पर हर साल अरबों रुपए वसूल कर अपना खजाना  भर लेती है। अलब्त्ता प्रदेश में यह परीक्षाएं लंबे समय तक होती ही नहीं है, लेकिन अगर होती भी हैं तो फिर उनमें जमकर फर्जीवाड़ा किया जाता है, जिसकी वजह से उन परीक्षाओं को कोई महत्व ही नहीं रह जाता है। इसकी वजह है उन परिक्षाओं का निरस्त हो जाना। प्रदेश में यह स्थिति लगातार कई सालों से बनी हुई है। उधर सरकार खली पड़े पदों पर ठेके पर निजी कंपनियों की सेवाएं ले रही है, जिसकी वजह से युवाओं को शोषण का शिकार होना हेना पड़ रहा है। इसके उलट सरकार का पूरा जोर सेवानिवृत्त हो चुके आला अफसरों को संविदा नियुक्ति देने पर बना हुआ है। इसकी वजह से हालात यह हैं कि बेरोजगार युवा परीक्षा देने के बाद भी रोजगार से महरुम बने हुए हैं। परीक्षाओं में गड़बड़ी के बाद फिर अभ्यर्थी परेशान होते रहते हैं और बाद में वे ओवर ऐज होकर सरकारी नौकरी के अयोग्य हो जाते हैं। इसकी बानगी है पीईबी के माध्यम से वर्ष 2019 से अब तक ली गई 8 भर्ती परीक्षाएं। इनमें से 6 भर्ती परीक्षाओं को गड़बड़ियों के चलते निरस्त कर दिया गया। यही नहीं इस साल हुईं प्राइमरी शिक्षक पात्रता परीक्षा और पुलिस भर्ती परीक्षा भी गड़बड़ी के आरोपों से अछूती नहीं रहीं। इसकी वजह से यह दोनों परीक्षाएं भी जांच के घेरे में हैं। खास बात यह है बीते तीन सालों में आयोजित की गई आठों परीक्षाओं में लगभग 40 लाख परीक्षार्थी नौकरी मिलने की आशा में बैठे थे , लेकिन नौकरी तो नहीं मिल सकी उलटे परीक्षा फीस और अन्य तरह के खर्च में जेब की रकम जरुर गंवा गैठे हैं। वर्ष 2020 में जो आधा  दर्जन परीक्षाएं आयोजित की गई थीं , उन सभी को गड़बड़ी के आरोप में निरस्त करना पड़ा था। दोबारा एग्जाम 2021 में हुए। इनके परीक्षा परिणाम इस साल आए हैं। अब नौकरी की प्रक्रिया चलती रहेगी, लेकिन यह प्रक्रिया पूरी कब होगी कोई नहीं बता सकता है। प्रदेश में सरकारी भर्ती परीक्षाओं का जिम्मा पीईबी के पास है। कई सालों तक हुए पीएमटी घोटाले का खुलासा होने के बाद हालांकि पीईबी ने परीक्षा प्रणाली को पूरी तरह से आॅनलाइन कर दिया। इसके बाद भी परीक्षा में गड़बड़ी पर रोक नहीं लग पा रही है। बीते दो साल में कोरोना की वजह से एक भी भर्ती परीक्षा नहीं हुई , इसके बाद इस साल दो परीक्षाएं कराई गई , लेकिन यह भी गड़बड़ी का शिकार हो गईं।
इस तरह की गड़बड़ियां आयी सामने
पीईबी की ओर से 10 व 11 फरवरी 2020 में कृषि विकास अधिकारी और ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी के करीब 800 पदों के लिए लिखित परीक्षा ली गई थी। इस परीक्षा में कई सारे अभ्यर्थियों के अंक एक समान आए थे। इस परीक्षा के भी कुछ प्रश्नपत्र इंटरनेट मीडिया पर वायरल हुए थे। इसके बाद इस परीक्षा गड़बड़ी होने के संदेह पर इसे निरस्त किया गया था। इसी तरह से पुलिस भर्ती परीक्षा में पहले जो पात्र थे, वे अपात्र हो गए। पुलिस आरक्षक के छह हजार पदों के लिए इसी साल पीईबी ने भर्ती परीक्षा कराई थी। इस परीक्षा में गड़बड़ी के आरोपों के बाद जांच के आदेश दिए गए हैं। इससे एक बार फिर पीईबी की परीक्षा प्रणाली पर सवाल उठने लगे हैं।
प्रश्न पत्र लीक के आरोप
वर्ष 2020 में पीईबी की तीन परीक्षाओं में गड़बड़ी सामने आई थी। इसके बाद तीनों परीक्षाओं को निरस्त कर दिया गया था। इसमें वरिष्ठ कृषि विस्तार अधिकारी, ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी और नर्सिंग की परीक्षा शामिल थी। परीक्षा के एक दिन पहले पेपर लीक हो गया था। इसी तरह से पीईबी की तीन साल से अटकी प्राइमरी शिक्षक पात्रता परीक्षा इस साल हुई। इस एग्लाम में लाखों परीक्षार्थी शामिल हुए। इस एग्जाम में भी पीईबी पर गड़बड़ी के आरोप लगे। अभ्यर्थियों ने पेपर लीक होने के आरोप लगाए इसके बाद यह परीक्षा भी विवादों में घिर गई।
एमपीपीएससी में भी गड़बड़ी
एमपीपीएससी ने 722 पदों के लिए हुई एएमओ की चयन परीक्षा में भी गड़बड़ी मिली थी। इसके बाद परीक्षा निरस्त हो गई थी। यहां आयुर्वेद मेडिकल आॅफिसर परीक्षा का पर्चा लीक हो गया था। वर्ष 2014 में हुई परीक्षा में करीब 5500 आयुर्वेदिक डॉक्टर शामिल हुए थे।

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