बड़े पैमाने पर मदरसों में फर्जीवाड़ा, सरकार ने दिखाई सख्ती

  • श्योपुर में कागजों पर चलते मिले 56 मदरसे, एफआईआर की जगह सिर्फ मान्यता निरस्त…
  • गौरव चौहान
मदरसों में फर्जीवाड़ा

प्रदेश में बड़े पैमाने पर फर्जी मदरसों का संचालन किया जा रहा है। यह मदरसे कागजों पर चल रहे हैं, जिनमें फर्जी छात्र दिखाकर सरकार से अनुदान लेकर हड़प लिया जाता है। यह बात सरकार के संज्ञान में आने के बाद से सभी मदरसों का भौतिक रुप से निरीक्षण कराया जा रहा है। ऐसे ही 56 मदरसों का खुलासा श्योपुर में भी हुआ है, जिनका सरकार ने सख्ती दिखाते हुए मान्यता समाप्त कर दी है। इसके साथ ही अब स्कूल शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप सिंह ने प्रदेश में संचालित मदरसों के भौतिक सत्यापन की जांच और तेजी से करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि जो मदरसे नियमानुसार संचालित नहीं हो रहे हैं, उनकी मान्यता समाप्त की जाएगी। दरअसल श्योपुर जिले में संचालित मदरसों में बड़ी संख्या में फर्जीवाड़ा लंबे समय से चल रहा था। फर्जी मदरसों द्वारा फर्जी विद्यार्थियों के नाम दर्ज कर सालों से करोड़ों रुपए के अनुदान की  लूट की जा रही थी। इनकी जांच के लिए शासन स्तर पर मदरसों की जांच लिए एक कमेटी का गठन किया गया था। इस कमेटी की ही जांच में श्योपुर में 56 मदरसों में चल रहे फर्जीवाड़ा पाया गया है।  कलेक्टर श्योपुर की रिपोर्ट के आधार पर मंगलवार को मध्यप्रदेश मदरसा बोर्ड ने इन मदरसों की मान्यता समाप्त कर आदेश जारी कर दिए हैं। रिपोर्ट में बताया गया कि श्योपुर जिले में 80 मान्यता प्राप्त मदरसे संचालित हो रहे है। इनमें 54 ऐसे मदरसे हैं ,जिन्हें राज्य शासन से अनुदान प्राप्त हो रहा है।
जिनमें से 32 अनुदान प्राप्त मदरसों सहित कुल 56 मदरसों की मान्यता समाप्त कर दी गई है। सचिव मध्यप्रदेश मदरसा बोर्ड ने बताया कि प्रदेशभर में समस्त जिला शिक्षा अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे अपने क्षेत्र में संचालित मदरसों का मैदानी अमले द्वारा भौतिक निरीक्षण कराए। निरीक्षण में जो मदरसे राज्य शासन के नियमानुसार संचालित नहीं हो रहे हैं, उनकी मान्यता समाप्त करने का प्रस्ताव मध्यप्रदेश मदरसा बोर्ड को भेजे जाएं। नियमानुसार संचालित नहीं हो रहे मदरसों को स्कूल शिक्षा विभाग से मिलने वाली मदद तत्काल बंद कराई जाएगी।
निजी स्कूलों का भी होगा भौतिक निरीक्षण
स्कूल शिक्षा मंत्री उदय प्रताप सिंह ने प्रदेश के समस्त जिला शिक्षा अधिकारियों को निर्देशित किया है कि वे अपने क्षेत्रों में मैदानी अमले से सभी शिक्षण संस्थाओं का सतत निरीक्षण करें। उन्होंने अधिकारियों से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि स्कूल जाने वाले विद्यार्थियों को राज्य सरकार की विभागीय योजनाओं का लाभ मिले, साथ ही विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सके। स्कूल शिक्षा मंत्री ने प्रदेश में संचालित मदरसों की भौतिक सत्यापन की जांच में तेजी लाने के भी निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि जो मदरसे नियमानुसार संचालित नहीं हो रहे हैं उनकी मान्यता समाप्त करने की कार्रवाई की जाए, साथ ही प्रायवेट शिक्षण संस्थाओं के स्कूलों का भी भौतिक सत्यापन तेज गति से किया जाए।
यह चौकाने वाला सच आया सामने
श्योपुर जिले में मदरसे की राशि का लंबे समय से गोलमाल किया जा रहा है। जिले के मदरसों में अध्ययनरत विद्यार्थियों की हकीकत पता कि तो हैरान करने वाली बात सामने आई थी। जिसमें श्योपुर के युवक और युवतियां विदेश के साथ-साथ देशभर के अलग-अलग संस्थानों में मेडिकल, इंजीनियरिंग, वकालत की पढ़ाई कर रहे है। कई लोग वर्तमान में शासकीय सेवा में कार्यरत है। इतना ही नहीं कुछ लोग बुजुर्ग हो चुके हैं और कुछ मृत हो गए हैं। यह सभी मदरसे में अध्ययनरत बताए जा रहे हैं और उनके नाम पर शासन से प्रतिवर्ष मध्याह्न भोजन सहित अन्य मदों में करोड़ों की राशि निकाली जा रही है।
जिले के अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध
मंत्री स्कूल शिक्षा के निर्देश पर मदरसा बोर्ड ने भले डीईओ श्योपुर रविद्र सिंह तोमर की रिपोर्ट पर 56 मदरसों की मान्यता समाप्त कर दी है, लेकिन सालों से चल रहे घोटाले में अधिकारियों की भूमिका भी संदिग्ध है। फर्जी मदरसों को मध्यान्ह भोजन सप्लाई में जिला पंचायत व खाद्य सामग्री सप्लाई करने वाले अधिकारी भी संदेह के घेरे में है। जिला में पंचायत में करीब पंद्रह सालो से अटैच कर्मचारी की फर्जी मदरसों को बढ़ावा देने में भूमिका बताई जा रही है। फिलहाल शासन ने इन पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की है।
जिम्मेदार सरकारी अमले पर कोई कार्रवाई नहीं
इस पूरे खेले में सरकारी जिम्मेदारों की भूमिका भी पूरी तरह से संदिग्ध है, लेकिन इस मामले में किसी भी सरकारी कर्मचारी के खिलाफ कोई कारवाई नहीं की गई है, जबकि उनकी मिली भगत के बगैर इस तरह का काम होना संभव ही नही है। उधर, भले ही फर्जी मदरसों की मान्यता समाप्त कर दी है, लेकिन उनमें से कई मदरसा संचालकों द्वारा फर्जी छात्र दिखाकर अनुदान हड़पने के मामले में उनके संचालकों के खिलाफ भी कोई कार्रवाई नहीं की गई है। इसकी वजह से कार्रवाई को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।

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