शासन नहीं दे रहा आला आईएफएस अफसर की रिपोर्ट को तबज्जो

  • दो साल से मंत्रालय के अफसरों को नहीं मिल रही देखने की फुर्सत

भोपाल/विनोद उपाध्या/बिच्छू डॉट कॉम। बुरहानपुर में सक्रिय अतिक्रमण माफिया न केवल वन अमले पर बल्कि समूचे प्रशासन पर भारी पड़ रहा है, जिसकी वजह से जिले का वन क्षेत्र संकट में आ चुका है। इसके बाद भी विभाग के आला अफसरों को उस जांच रिपोर्ट को भी देखने की दो साल से फुर्सत नहीं मिल पा रही है , जिसमें वन माफिया और उनके मददगारों को लेकर कई अहम खुलासे किए गए हैं। इस रिपोर्ट में वन माफिया पर लगाम कसने के लिए भी सुझाव दिए गए हैं। दो साल बाद भी इस रिपोर्ट पर कार्रवाई नहीं होने से वन माफिया के हौसले इतने बुंलद हो चुके हैं कि वे अब तो हमला करने में भी पीछे नही रह रहे हैं। दरअसल इस रिपोर्ट में खुलासा किया गया था कि इसके पीछे वामपंथी विचारधारा वाले कथित सोशल वर्करों का हाथ है। वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी भी व्यक्तिगत लाभ शुभ के लिए अतिक्रमण कराते आ रहे हैं।
स्थानीय लोगों की बदौलत ही बुरहानपुर में 1300 वर्ग किलोमीटर जंगल ही रह गया है। बीते दो साल में कोई कदम नहीं उठाए जाने से अब इसका क्षेत्रफल और कम हो चुका है। इस मामले में कार्रवाई नहीं होने की वजह से अब तेजी से जंगल की कटाई की जा रही है, जिसकी खबरें आए दिन सुर्खियां बन रही हैं , लेकिन इसके बाद भी शासन सक्रियता दिखता नजर नही आ रहा है। रिपोर्ट में कहा गया था कि बुरहानपुर में स्थानीय ग्रामीणों को आर्थिक एवं कानूनी मदद देख कर ही अतिक्रमणकारियों को रोका जा सकता है। यह अतिक्रमणकारी खरगौन बड़वाह जिले से वास्ता रखते हैं। खास बात यह है कि इस मामले की रिपोर्ट 1988 बैच के आईएफएस अधिकारी ने तैयार की थी। जो बीते दो साल से राज्य मंत्रालय में धूल खा रही है। वरिष्ठ अधिकारी ने घाघराला और अन्य संवेदनशील रेंज का दौरा करने और स्थानीय लोगों से बातचीत करने के बाद रिपोर्ट तैयार की थी। अपनी रिपोर्ट में वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी ने उल्लेख किया है कि खरगोन और बड़वाह जिले के 50 से अधिक आदिवासी परिवारों द्वारा संगठित होकर अतिक्रमण किया जा रहा है। अतिक्रमणकारी संगठित होकर एक बड़ी रकम जुटाते है और वे कब्जे के लिए बड़ी राशि फॉरेस्ट अधिकारियों-कर्मचारियों को देते हैं। रिपोर्ट में इसका जिक्र घाघराला संयुक्त वन समिति के अध्यक्ष कडू पटेल ( 3 महीने पहले ही निधन हुआ है) के बयान को आधार बनाकर किया है। स्वर्गीय कडू पटेल ने ही रिपोर्ट कर रहे अफसर को बताया था कि जेएनयू का वायरस अतिक्रमणकारियों को सपोर्ट करता है। बकौल स्वर्गीय पटेल के अनुसार उनकी स्थानीय राजनेता और प्रशासन के आला अफसर भी मदद करते हैं। वन समिति के अध्यक्ष के नाते स्वर्गीय पटेल ने अतिक्रमणकारियों के खिलाफ हाईकोर्ट तक लड़ाई लड़ी थी। स्थानीय प्रशासन पर दबाव बनाकर अतिक्रमणकारियों पर अंकुश लगाया था। वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में साफ तौर पर लिखा है कि फारेस्ट के लोग ही पैसा लेकर कब्जा करवा रहे हैं।

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