वर्कफोर्स की कमी से जूझ रहे सरकारी महकमे

  • खाली पदों पर भर्ती के अभियान में जुटी सरकार

विनोद उपाध्याय
मप्र के सरकारी विभागों में नियमित अधिकारी-कर्मचारी लगातार रिटायर हो रहे हैं, लेकिन उस अनुपात में भर्तियां नहीं हो रही हैं। इस कारण प्रदेश के लगभग हर विभाग वर्कफोर्स की कमी से जूझ रहे हैं। नियमित कर्मचारियों की पूर्ति के लिए सरकार ने ठेके पर कर्मचारियों को रखा है। इसका असर यह हो रहा है कि सरकारी कार्यों की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। दरअसल, प्रदेश सरकार द्वारा हाल ही में विधानसभा में पेश की गई शासकीय विभागों में नियोजन रिपोर्ट में प्रशासनिक ढांचे को लेकर चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। विधानसभा में पेश की गई रिपोर्ट के अनुसार, 31 मार्च 2024 की स्थिति में प्रदेश में 6 लाख 6 हजार नियमित कर्मचारी हैं। जबकि सरकार ने प्रथम श्रेणी से लेकर चतुर्थ श्रेणी तक स्वीकृत पदों की संख्या 9 लाख से ज्यादा है। पिछले 9 सालों से पदोन्नति नहीं होने एवं दिव्यांग समेत अन्य आरक्षित पदों पर नियमित भर्ती नहीं होने ने मप्र सरकार का प्रशासनिक ढांचा बिगड़ता जा रहा है। मंत्रालय से लेकर निचले स्तर के सरकारी कार्यालय वर्कफोर्स (तृतीय, द्वितीय श्रेणी के अधिकारी एवं कर्मचारी) की कमी से जूझ रहे हैं। ऐसे में प्रदेश सरकार ने खाली पदों को भरने के लिए भर्ती का अभियान शुरू करने जा रही है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव खाली पदों पर भर्ती के निर्देश दे चुके हैं। जिसमें सभी विभागों में भर्ती होना है। इसको लेकर सामान्य प्रशासन विभाग जानकारी जुटा रहा है। जिसमें पंचायत से लेकर विभागाध्यक्ष एवं मंत्रालय स्तर की जानकारी एकत्रित की जा रही है। पूर्व में भी सामान्य प्रशासन विभाग ने खाली पदों की जानकारी ऑनलाइन करने की प्रक्रिया शुरू की थी, लेकिन प्रक्रिया खटाई में पड़ गई थी। सूत्रों के अनुसार यदि सरकार विभागों में खाली पदों पर भर्ती की प्रक्रिया में तेजी नहीं लाती है तो तंत्र चलाना मुश्किल हो जाएगा।
कॉन्ट्रैक्ट और संविदा के कारण बढ़ी गड़बड़ी
कैग रिपोर्ट के अनुसार सूखा राहत एवं संबल योजना में अपात्रों को करोड़ों रुपए का भुगतान किया गया। इसके अलावा वित्त विभाग ने 250 करोड़ रुपए से ज्यादा की गड़बड़ी पकड़ी, जिसमें सरकारी कर्मचारियों ने खजाने से राशि निकाली। खास बात यह है कि ज्यादातर मामलों में पुलिस में प्रकरण दर्ज किए गए। विभाग एवं पुलिस की पड़ताल में चौंकाने वाला तथ्य यह सामने आया था कि सरकारी खजाने को लूटने में कार्यालयों में कॉन्ट्रैक्ट, संविदा या अन्य किसी माध्यम से रखे गए कर्मचारियों की अहम भूमिका थी। ज्यादातर विभागों ने बिना किसी वैधानिक प्रक्रिया के कॉन्ट्रैक्ट पर कर्मचारियों को रखा था। तकनीकी तौर पर दक्ष होने की वजह से उन्होंने सरकार खजाने को लूटने में अहम भूमिका निभाई। वित्त विभाग, संबंधित विभाग एवं पुलिस ने जांच में पाया है कि गलत भुगतान से जुड़े प्रकरणों के मामले में अनियमित कर्मचारियों की बड़ी भूमिका रही है।
तीन लाख नियमित पद खाली
प्रदेश में नियमित कर्मचारियों के रिटायरमेंट के बाद प्रदेश में करीब तीन लाख नियमित पद खाली हैं। ऐसे में विभागों को गोपनीय कार्य भी आउटसोर्स, कॉन्ट्रैक्ट पर रखे गए कर्मचारियों से करवाने पड़ रहे हैं। जिनकी वजह से सरकारी खजाने में करोड़ों रुपए की चपत लगाई जा चुकी है। 90 प्रतिशत गड़बडिय़ां  कॉन्ट्रैक्ट के कर्मचारियों ने की है।  प्रशासनिक रिपोर्ट के अनुसार शासकीय विभागों में नियमित कर्मचारी 6 लाख 6 हजार हैं। जबकि सरकारी उपक्रमों में 33942, निकायों में 29966, ग्रामीण निकाय 5422, विकास प्राधिकरण 582, यूनिवर्सिटी  में 4490 शासकीय सेवक हैं। ऐसे में सरकारी कर्मचारियों की संख्या 6 लाख 81 हजार होती है। हालांकि इनमें कार्यभारित, आकस्मिक निधि से वेतन प्राप्त, दैनिक वेतनभोगी, कोटवार एवं संविदा कर्मचारी शामिल नहीं हैं।  जिनकी संख्या 2 लाख 37 हजार है।

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