67 साल बाद बदलेगा मध्यप्रदेश का भूगोल

मध्यप्रदेश का भूगोल
  • संभाग और जिलों की सीमाओं का होगा पुनर्निर्धारण

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र के गठन के 67 साल बाद संभाग और जिलों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण  किया जाएगा। यानी प्रदेश का नक्शा बदलेगा यानी भूगोल बदलेगा। इसके लिए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने अफसरों को निर्देश देते हुए कहा है कि प्रदेश में आवश्यकता के अनुसार संभाग और जिलों की सीमाओं का पुर्न निर्धारण किया जाए। इसके लिये कमेटी बनाकर अध्ययन कराया जाएगा।  गौरतलब है कि प्रदेश में अक्सर सीमा विवाद की बातें सामने आती रहती हैं। ऐसे में कानून व्यवस्था की दृष्टि से सीमा का निर्धारण होना जरूरी है। इसको देखते हुए मुख्यमंत्री ने गत दिनों इंदौर संभाग के खरगोन में आयोजित संभाग स्तरीय समीक्षा बैठक में थानों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण  भी शीघ्र पूर्ण करने के निर्देश दिये। उन्होंने कहा कि उक्त प्रक्रिया में स्थानीय जनप्रतिनिधियों से भी विचार विमर्श किया जाये।
प्रशासनिक नियंत्रण बेहतर होगा
संभाग व जिलों की सीमाएं नए सिरे से तय होने से प्रदेश का भूगोल बदल जाएगा। राजस्व विभाग के अधिकारियों का कहना है कि प्रदेश के पुनर्गठन के बाद से ही समय-समय पर नए संभाग व जिलों का गठन होता आया है, लेकिन संभाग और जिलों की सीमाओं की पुनर्निर्धारण  पहली बार होने जा रहा है। यह आज की बड़ी जरूरत है। संभाग व जिलों की नई सीमाएं तय होने से लोगों को बड़ी राहत मिलेगी। साथ ही जिले में प्रशासनिक नियंत्रण बेहतर होगा। राजस्व अधिकारियों का कहना है, हालांकि संभाग व जिलों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण  करने की प्रक्रिया बेहद जटिल है। इस कार्य को पूरा करने में लंबा वक्त लगेगा। संभाग व जिलों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण करने के लिए सबसे पहले विभागीय मंत्री की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया जाएगा। कमेटी में राजस्व, विधि आदि के विशेषज्ञ शामिल होंगे। कमेटी मप्र व छत्तीसगढ़ राज्य के गठन समेत अन्य किसी राज्य में संभाग व जिलों की सीमाओं के पुनर्निर्धारण की प्रक्रिया का अध्ययन करेगी। साथ ही कमेटी आने वाले 50 साल में प्रदेश की आबादी समेत जिलों की सीमाओं में बदलाव जुड़े अन्य बिंदुओं का अध्ययन कर रिपोर्ट शासन को सौंपेगी।
एक साल का वक्त लगेगा
राजस्व विभाग के अफसरों का कहना है कि संभाग और जिलों की सीमाओं का होगा पुनर्निर्धारण करना जटिल प्रक्रिया है। इस काम में कम से कम एक साल का वक्त लग जाएगा। किसी भी संभाग या जिले की सीमा का पुनर्निर्धारण करने से पूर्व शासन द्वारा संबंधित संभाग व जिले के लोगों से दावे-आपत्ति बुलाए जाएंगे। दावे-आपत्ति का निराकरण करने के बाद जिलों से रिपोर्ट शासन को भेजी जाएगी। संभाग या जिले के पुनर्निर्धारण संबंधी प्रस्ताव मंत्रालय में उच्च स्तरीय समिति के समक्ष रखा जाएगा। वहां से मंजूरी मिलने के बाद जीएडी और वित्त विभाग के पास प्रस्ताव भेजा जाएगा। इसके बाद प्रस्ताव कैबिनेट की बैठक में रखा जाएगा। फिर संभाग या जिले की सीमा पुनर्निर्धारण करने के आदेश जारी होंगे। जानकारी के अनुसार प्रदेश के कई जिलों की सीमाओं का निर्धारण व्यावहारिक नहीं होने से लोगों को राजस्व, आरटीओ आदि संबंधी शासकीय कार्यों के लिए परेशान होना पड़ता है। उन्हें लंबी दूरी तय करके जिला मुख्यालय जाना पड़ता है। इससे समय और पैसे दोनों की बर्बादी होती है। जिला मुख्यालय से कई स्थानों की दूरी ज्यादा होने से प्रशासनिक नियंत्रण भी ठीक से नहीं हो पाता। उदाहरण के तौर पर बुधनी सीहोर जिले में आता है। इसकी सीहोर से दूरी 105 किलोमीटर है, जबकि बुधनी से नर्मदापुरम की दूरी महज सात किलोमीटर है। यदि बुधनी को नर्मदापुरम जिले में शामिल किया जाता है, तो लोगों को इससे बड़ी राहत मिलेगी। ऐसी स्थिति प्रदेश के कई जिलों में है। ऐसे ही कई जिलों की दूरी संभाग मुख्यालयों से ज्यादा होने से परेशानी होती है।
बढ़ सकती है संभाग व जिलों की संख्या…
चुनाव पूर्व तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान ने चार नए जिलों के गठन की घोषणा की थी। इनमें से मऊगंज, पांडुर्णा और मैहर जिले अस्तित्व में आ गए हैं, जिससे प्रदेश में जिलों की संख्या 52 से बढ़कर 55 हो गई है, जबकि नागदा जिले के गठन के आदेश जारी नहीं हो पाए हैं। दावे-आपत्तियों का निराकरण नहीं होने से नागदा जिला नहीं बन पाया। संभाग व जिलों की सीमाओं के पुनर्निर्धारण में यदि कमेटी को लगता है कि नए संभाग और नए जिले का गठन किए जाने जरूरत है, तो यह शासन को इसकी अनुशंसा करती है। प्रदेश में वर्तमान में 10 संभाग है। प्रदेश के आखिरी संभाग के रूप में होशंगाबाद 27 अगस्त, 2008 को अस्तित्व में आया था। इससे पूर्व 14 जून, 2008 को शहडोल संभाग का गठन हुआ था। गौरतलब है कि सीएम डॉ. यादव ने इंदौर संभाग की समीक्षा बैठक में संभाग और जिलों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण करने के निर्देश दिए थे। उन्होंने इसके लिए कमेटी बनाकर अध्ययन कराने की बात कही थी। इस कार्य की शुरुआत पायलट प्रोजेक्ट के रूप में इंदौर संभाग से की जाए।

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