- कई मामलों की जांच में देरी से बढ़ाना पड़ा आयोग का कार्यकाल
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में पटवारी परीक्षा में धांधली सामने आने के बाद मामले की जांच कराने के लिए सरकार ने जांच आयोग का गठन कर दिया। लेकिन आयोग की जांच की गति इतनी धीमी रही कि 8 हजार से अधिक चयनित उम्मीदवारों का भविष्य अधर में लटक गया है। अब चुनाव की आचार संहिता लग गई है। ऐसे में चयनित पटवारियों के भाग्य का फैसला अब नए साल में ही होने की संभावना है। जांच आयोग की धीमी गति में केवल चयनित पटवारी का ही मामला नहीं बल्कि कई और केस उलझे हुए हैं। ऐसे में जांच आयोगों पर भी सवाल उठने लगे हैं। गौरतलब है कि प्रदेश में किसी घटना या फिर अपराध पर सजा के लिए बने आयोग की चाल कछुए की तरह है। पटवारी परीक्षा घोटाले, लटेरी कांड और तीन आईपीएफ के खिलाफ जांच आयोग का गठन किया। पटवारी परीक्षा मामले की जांच की डेडलाइन को निकले दो महीने पूरे हो चुके हैं। नतीजा यह है कि आयोग की ओर से सरकार को रिपोर्ट नहीं दी गई है। लटेरी कांड मामले में सिफारिशों का लागू करने के लिए निर्देश दिए गए हैं, लेकिन अमल नहीं हुआ है। अभी फाइनल रिपोर्ट नहीं सरकार को सौंपी गई है। विदिशा के लटेरी में आदिवासी की मौत के मामले में साल भर से अधिक आयोग का समय बीत चुका है। इसके बाद भी आयोग की रिपोर्ट नहीं सौंपी गई है। अब लटेरी कांड का मामला अगले साल तक के लिए अटका दिया गया है। समय सीमा के अंदर आयोग की जांच पूरी नहीं होने पर डेडलाइन तीसरी बार सरकार को बढ़ानी पड़ी है।
आयोग की जांच चल रही
प्रदेश में विभिन्न घटनाओं और अपराधों की जांच के लिए बनाए गए आयोग वर्षों तक मामले की पड़ताल करते हैं। उसके बाद जब वे रिपोर्ट सौंपते हैं तो वे भी ठंडे बस्ते में चली जाती है। ऐसे कई मामले प्रदेश में ऐसे चल रहे हैं जिनकी जांच चल रही है। लोकसभा चुनाव में हवाला लेनदेन के मामले में तीन आईपीएस अफसरों के खिलाफ जांच बैठा दी गई। इस आयोग में तीन अफसरों के खिलाफ रिटायर्ड जज जांच कर रहे हैं। हालांकि इस कमेटी की जांच की समय सीमा तक नहीं हुई है। बताया जा रहा है कि अफसरों ने आरोप पत्र का जवाब दे दिया है। इसके बाद भी सुनवाई नहीं हुई है। दो अफसर पहले ही रिटायर हो चुके हैं। आयोग के गठन के बाद एडीजी सुशोभन बनर्जी भी रिटायर हुए। आरोप की वजह से स्पेशल डीजी बन नहीं सके। तीन अफसरों की पेंशन भी रुकी हुई है। क्योंकि सरकार के बाद आयोग की जांच चल रही है। सरकार के आदेश में कहा गया है कि केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) की रिपोर्ट के आधार पर 1989 बैच के रिटायर्ड एडीजी सुशोमन बनर्जी एवं संजय माने और 1991 बैच के एडीजी व्ही. मधुकुमार के खिलाफ आरोप और सजा के मामले में आयोग का गठन किया। साल 2019 से लोकसभा चुनाव से ठीक पहले केंद्रीय एजेंसी के आयकर छापों में मिले दस्तावेजों में इन तीन वरिष्ठ आईपीएस अफसरों के नाम सामने आए थे। सरकार ने इनसे इस मामले में जवाब मांगा था। इनके जवाब से संतुष्ट न होने पर सरकार ने रिटायर्ड जस्टिस वीरेंद्र सिंह सौंप दी। आयोग की ओर से अफसरों को नोटिस जारी किया। अफसरों ने वही जवाब दिया, जो सरकार को दिया था। इसलिए मामला उलझा हुआ है। क्योंकि अफसरों ने तर्क दिया कि उनके पास से कोई कैश नहीं मिला है।
ऐसे हो रही जांच
पटवारी परीक्षा घोटाला मध्य प्रदेश में सरकारी पदों पर भर्ती के लिए सरकार ने कर्मचारी चयन मंडल के लिए जरिए परीक्षा कराई। घोटाले के आरोप और अभ्यर्थियों के आरोप के चलते सरकार को 19 जुलाई को जांच बैठानी पड़ी। सरकार ने दावा किया था कि 31 अगस्त तक आयोग की रिपोर्ट आ जाएगी। इसके बाद ही बाद पोस्टिंग होगी। आयोग ने फैसला किया अभ्यर्थियों से परीक्षा के संबंध में सबूत लिए जाएं । चयनित पटवारियों ने आयोग के पास 16 अक्टूबर को साक्ष्य दिए। वहीं 9 अगस्त 2022 को लटेरी में वनकर्मियों की फायरिंग में सागौन की तस्करी कर रहे आदिवासी की मौत हो गई। सरकार ने आनन फानन में डीएफओं को हटा दिया। इसके बाद डिप्टी रेंजर को भी गिरफ्तार किया गया। वनकर्मियों के प्रदेश भर में हड़ताल कर दी तो सरकार ने 13 दिन बाद आयोग का गठन कर दिया। लटेरी जांच के लिए रिटायर जज वीपीएस चौहान को सौंप दिया गया। इस मामले में स्थिति यह रही कि सामान्य प्रशासन विभाग जज को जानकारी देने के लिए तीन महीने तक गलत पते पर पत्र भेजता रहा। डेडलाइन नजदीक आई और जांच शुरू नहीं होने पर हड़कंप मचा तो गलती को सुधार लिया।