वित्त विभाग में अटका… आबकारी आरक्षकों का भविष्य

  • पदनाम परिवर्तन की आस में 300 आरक्षक
वित्त विभाग

विनोद उपाध्याय
आबकारी विभाग में मुख्य आरक्षक पद का पदनाम परिवर्तन कर सहायक आबकारी उप निरीक्षक करने का मामला पिछले एक साल से वित्त विभाग में पड़ा हुआ है। पदनाम परिवर्तन की आस में करीब 300 आबकारी आरक्षकों का भविष्य अधर में लटका हुआ है। आलम यह है कि कई आबकारी आरक्षक पदनाम परिवर्तन की आस में रिटायर हो रहे हैं।
जानकारी के अनुसार वित्त विभाग द्वारा दो बार पत्र लिखने के बाद भी प्रदेश में आबकारी के 300 आरक्षक अपने हाल पर हैं। इनका सिर्फ वनपाल की तरह पदनाम परिवर्तन किया जाना है। एक साल निकल गया है, लेकिन आज तक कमिश्नर कार्यालय स्तर से इनके संबंध में कोई जानकारी ही प्रस्तुत नहीं की गई है। अब इन कर्मचारियों का कहना है कि यह अमला निरंतर रिटायर्ड हो रहा है। फिर भी उपेक्षा की जा रही है।
कोई वित्तीय भार नहीं, फिर भी मामला अटका
मुख्य आरक्षकों के अनुसार यह ऐसी मांग  है , जिसे पूरा करने में कोई वित्तीय भार भी नहीं आ रहा है। फिर भी सिस्टम की लाचारी देखें तो एक साल से भटकाया जा रहा है। उसके बाद भी इनका पदनाम परिवर्तन नहीं हो रहा है। इन्हें वनपाल की तरह सहायक आबकारी उप निरीक्षक का पद चाहिए। पिछले साल 2023 में वित्त विभाग के अवर सचिव विवेक कुमार घारू ने इस संबंध में आदेश जारी किए थे। उसके बाद भी आज तक इस दिशा में कोई ध्यान नहीं दिया गया है। इसके उपरांत 15 दिसंबर 2023 को को वित्त उप सचिव वंदना शर्मा ने भी कमिश्नर को पत्र लिखा था। आज तक इन पत्रों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। मंत्रालय में सरकार की कर्मचारी कल्याण समिति भी प्रयास कर चुकी है। हालांकि आला अधिकारियों का कहना है कि यह काम अभी प्रचलन में है। आबकारी के मुख्य आरक्षकों को पदनाम परिवर्तन करने संबंधी सहमति वित्त मंत्री भी दे चुके हैं।
आत्मसम्मान के लिए चाह
आरक्षकों की मानें तो गैर वित्तीय भार वाली यह मांग वे सिर्फ आत्मसम्मान को बरकरार रखने के लिए करते आ रहे हैं। इनका कहना है कि प्रमोशन पर प्रतिबंध लगा है। जंगल विभाग में वन पाल को अधिकार हैं। आबकारी के मुख्य आरक्षकों का वेतनमान भी वनपाल के समान है। इसलिए नाम परिवर्तित कर सहायक उपनिरीक्षक करने की मांग की जा रही है। पूर्व दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री एवं अध्यक्ष कर्मचारी कल्याण समिति रमेशचन्द्र शर्मा का कहना है कि आबकारी के मुख्य आरक्षकों को वनपाल के समान पदनाम देने संबंधी उन्होंने वित्त विभाग को पत्र लिखे। इसके बाद विभाग ने कमिश्नर को पत्र प्रेषित किया। इनका पदनाम परिवर्तन होना चाहिए क्योंकि इसमें शासन का कोई बजट खर्च नहीं हो रहा है।

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