- मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान में गोलमाल!
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मुफ्त का चंदन घिस मेरे नंदन की तर्ज पर प्रदेश के प्राइवेट हॉस्पिटल एवं नर्सिंग होम संचालक जरूरतमंद मरीजों को इलाज के लिए मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान से मंजूर की जाने वाली सहायता राशि में भी गोलमाल कर रहे हैं। दरअसल मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान की राशि हड़पने के लिए फर्जी एस्टीमेट तैयार किए जाते है। फर्जीवाड़ा करने वालों की सेटिंग इतनी सॉलिड है कि मुख्यमंत्री सचिवालय से अनुदान भी जारी करा लिया जाता है। ऐसे कई मामले पहले भी आ चुके हैं। ताजा मामला और हैरानी करने वाला है। प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग राजधानी के जिन 19 प्राइवेट अस्पतालों के खिलाफ आयुष्मान भारत योजना में धांधलियों की पोल खोल चुका है, वहां भर्ती होने वाले कई मरीजों के इलाज का खर्च अस्पताल के संचालक सरकार से ले रहे हैं। जानकारी के अनुसार सांसदों और विधायकों की सिफारिश पर मरीजों के इलाज पर होने वाला खर्च मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान से मंजूर होकर सीधे अस्पतालों के खाते में जा रहा है। इनमें से एक अस्पताल तो ऐसा भी है, जिसके खिलाफ विभाग ने आयुष्मान योजना में धोखाधड़ी का केस भी दर्ज कराया है। अब इस अस्पताल के सीएम स्वेच्छानुदान से लिए गए पैसे की भी जांच की जा रही है। अब तक प्रदेश के सिर्फ 84 अस्पतालों की जांच की गई है, जबकि आयुष्मान योजना से जुड़े प्राइवेट अस्पतालों की संख्या 517 है। जांच तो मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान राशि ले रहे अस्पतालों की भी होनी चाहिए।
आयुष्मान कार्ड अपडेट कराने के नाम पर बुलाया
जांच में इन अस्पतालों में सरकार और मरीजों से अवैध वसूली के अजीबो-गरीब तरीकों का खुलासा हुआ है। वैष्णो अस्पताल में तो लोगों को आयुष्मान कार्ड अपडेट कराने के नाम पर बुलाया, उनके कार्ड स्कैन कर लिए। बाद में उन्हें अस्पताल में भर्ती बताकर उनके इलाज का खर्च सरकार से ले लिया। विभाग ने जब संबंधित मरीजों से बात की तो पता चला कि इनमें से कई तो इस अस्पताल में कभी गए ही नहीं, कार्ड अपडेट कराने के बुलावे पर गए थे। तब वे न तो बीमार थे और न ही वहां भर्ती हुए। जांच के बाद कई अस्पतालों को योजना से बाहर कर दिया गया है। इनमें नवजीवन, अनंत श्री, अपेक्स, आयुष्मान, गुरु आशीष, पीबीजीएम अस्पताल एवं रिसर्च सेंटर, आयुष्मान, भोपाल मल्टी स्पेशलिटी अस्पताल, राजदीप अस्पताल, किशनानी अस्पताल, आधार हॉस्पिटल मल्टी स्पेशलिटी यूनिट, जीवन श्री अस्पताल, वीसीएच हॉस्पिटल वैष्णो अस्पताल के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई जा चुकी है। अस्पताल में कई ऐसे मरीजों के नाम पोर्टल पर थे, जो कभी अस्पताल आए ही नहीं।
गलत तरीके से वसूल रहे खर्च
जानकारी के अनुसार कई अस्पताल मरीजों के इलाज का खर्च इस मद में गलत तरीके से भी वसूल रहे हैं। सांसदों और विधायकों से मानवीय आधार पर सिफारिश करवाकर सीएम के पास आवेदन भिजवाए जाते हैं। वहां से कलेक्टरों के माध्यम से अस्पतालों के खाते में राशि पहुंच जाती है। यह फर्जीवाड़ा उजागर होने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विभाग के आला अफसरों को स्पष्ट संकेत दिए कि जिन अस्पतालों ने धांधली की है, उन्हें अब सीएम स्वेच्छानुदान की राशि नहीं दी जाएगी। उन्होंने ऐसे अस्पताल संचालकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर उन्हें जेल भेजने तक की बात कही है। सीएम ने इन अस्पतालों की अन्य गतिविधियों जैसे टैक्स की चोरी आदि की भी जांच करने के निर्देश दिए हैं।
ऐसे मंजूर होती है सहायता राशि
मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान से प्रदेश के जरूरतमंद मरीजों के आवेदन पर इलाज के लिए आर्थिक सहायता राशि मंजूर की जाती है। इसके तहत इलाज के लिए हॉस्पिटल मैनेजमेंट एक तय फॉर्मेट में एस्टीमेट बनाकर देते हैं। इसे मरीज के परिजन मुख्यमंत्री निवास या मंत्रालय में जमा कराते हैं। एस्टीमेट के साथ जरूरी दस्तावेजों की जांच कराने के बाद इलाज के लिए सहायता राशि जारी कर दी जाती है। मंजूर की गई राशि सीधे हॉस्पिटल के अकाउंट में जमा होती है। हॉस्पिटल मैनेजमेंट को इस राशि का हिसाब (उपयोगिता प्रमाणपत्र) संबंधित जिला कलेक्टर कार्यालय को भेजना होता है। यानि स्वेच्छानुदान से मिली राशि से क्या इलाज और किस तरह की सर्जरी की गई, इस पर कितना खर्च हुआ। इसका ब्यौरा उपयोगिता प्रमाण पत्र के रूप में कलेक्टर कार्यालय में जमा कराना होता है।
3 साल से इलाज के खर्च का हिसाब नहीं दे रहे हॉस्पिटल संचालक
मरीज के इलाज के बाद सहायता राशि का उपयोगिता प्रमाणपत्र देने की अनिवार्यता के बाद भी प्रदेश के कई प्राइवेट अस्पताल संचालक इस नियम का गंभीरता से पालन नहीं कर रहे हैं। राजधानी भोपाल में ही ऐसे तीन निजी अस्पताल संचालकों ने पिछले तीन साल से मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान से इलाज के लिए मंजूर राशि का हिसाब-किताब देना मुनासिब नहीं समझा है।