- एपीसीसीएफ ने 50 दवाइयों की उच्च स्तरीय जांच करने के दिए निर्देश
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। हमेशा विवादों में रहने वाले मप्र लघु वनोपज संघ में एक और फर्जीवाड़े का मामला सामने आया है। यह फर्जीवाड़ा संघ में दवाओं की खरीदी का है। एक तो 50 दवाइयों की खरीदी नियमों को ताक पर रखकर की गई। वह भी अमानक निकल गई हैं। अब इस मामले में लघु वनोपज प्रसंस्करण एवं अनुसंधान केंद्र के मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीईओ) को पत्र लिखकर लघु वनोपज संघ में पदस्थ एपीसीसीएफ मनोज अग्रवाल ने 50 दवाइयों की उच्च स्तरीय जांच करने के निर्देश दिए हैं। जानकारी के अनुसार लघु वनोपज प्रसंस्करण एवं अनुसंधान केंद्र में लंबे समय से गड़बड़झाला चल रहा था। नियमों को ताक पर रख कर जो 50 दवाइयां खरीदी गई थीं, वे भी अमानक निकली हैं। अग्रवाल ने केंद्र में लंबे समय से चल रही गड़बडिय़ों को लेकर भी सीईओ का ध्यान आकर्षित कराते हुए सभी बिंदुओं पर जांच के निर्देश दिए हैं। एपीसीसीएफ मनोज अग्रवाल का कहना है कि मैंने पत्र लिखा है। क्या-क्या लिखा है, यह मुझे याद नहीं है। मैं रोज कई पत्रों पर सिग्नेचर करता हूँ, इसलिए याद नहीं है। वहीं सीईओ प्रसंस्करण एवं अनुसंधान केंद्र बरखेड़ा पठानी पीजी फुलझले का कहना है कि हां मनोज अग्रवाल का पत्र मिला है, मुझे उन बिंदुओं पर जांच करने पर कोई परहेज नहीं है। निश्चित तौर पर जांच होगी और दोषी पाए जाने पर कार्रवाई होगी।
फर्जी बिलिंग का खेल
एपीसीसीएफ प्रशासन मनोज अग्रवाल ने केंद्र में व्याप्त गड़बडिय़ों का खुलासा करते हुए लिखा है कि आयुष विभाग से प्राप्त दवाई के सप्लाई ऑडिट में पुराने स्टॉक को शामिल कर दिया गया है, जिस पर आज तक किसी प्रकार का बीपीसीआर प्राप्त नहीं हुई। शासकीय संस्थानों से प्राप्त ऑर्डर की दवाइयों निर्माण के लिए खुले बाजार से दूध पाउडर क्रय किया गया है एवं तैयार दवाइयां महिला बाल विकास विभाग नर्मदापुरम में सप्लाई की गई है। क्रय की गई सामग्री किसी और संस्थान से ली गई एवं बिल किसी और के नाम से चार्ज किए हैं। खुले बाजार से दूध, नीबू, लहसुन एवं अदरक आदि अन्य पार्टी से क्रय किए जाते हैं एवं बिल अन्य नाम से लगाए जाते हैं। संस्था में पदस्थ गुणवत्ता नियंत्रक अधिकारी द्वारा दवाइयों का फॉर्मूला तैयार किया जाता है। उसी फॉर्मूला अनुसार दवाइयों का निर्माण होना चाहिए, उसके स्थान पर कच्ची सामग्री और सूखी सामग्री का मिश्रण तैयार करने में चक्की प्रभारी के मिलीभगत से दवाइयां बनाई जा रही है, जो गुणवत्ता नियंत्रण नियमों का उल्लंघन है। इस प्रकार दवाइयों के निर्माण में भ्रष्टाचार किया जा रहा है। सीधी भर्ती के एसडीओ मिश्रा को उत्पादन का प्रभार न देकर रेंजर सुनीता अहिरवार को पदस्थ किया गया, जो उनसे वरिष्ठता में जूनियर हैं। यह कृत्य अधिकारियों के मध्य कार्य विभाजन में संवितरण शक्तियों के विरुद्ध है। फर्जी बिलिंग का खेल नकली बिल प्रस्तुत कर अपनों को उपकृत कर लाखों का भुगतान किया जा रहा है। प्रभारी एसडीओ सुनीता अहिरवार खुद ही खरीदती है और खुद ही पेमेंट करती है, जबकि इस काम के लिए परचेज सेल गठित होना चाहिए। बताया जाता है कि सांठगांठ कर फर्जी बिल लगाए जा रहे हैं। वन मेला के नाम करोड़ों रुपए का खर्चा दिखाया गया है। अग्रवाल ने अपने पत्र में यह भी लिखा है कि करोड़ों के बिल वाउचर मशीनों के रखरखाव के नाम पर चार्ज किए गए हैं। यही नहीं है आंतरिक गुणवत्ता समिति उत्पादों की जांच के लिए कोई आंतरिक गुणवत्ता समिति नहीं है, जबकि वो आवश्यक है। उत्पाद फेल हो जाने पर कोई कार्यवाही नहीं करते हैं, जबकि उत्पादन प्रबंधक की इसकी जिम्मेदारी है। उत्पाद निर्माण कार्य में 100 स्थायी कर्मी श्रमिकों के होने के बावजूद 350 प्राइवेट लेवर के द्वारा कार्य का भुगतान किया गया है. जो कि श्रमिक कुशलता कार्य दिवस के विरुद्ध है।
ऑडिट रिपोर्ट में गंभीर आपत्ति
गौरतलब है कि पिछले 5 साल की ऑडिट रिपोर्ट में गंभीर आपत्ति भी सामने आई है। लघु वनोपज संघ में पदस्थ एपीसीसीएफ प्रशासन मनोज अग्रवाल ने केंद्र में व्याप्त 9 बिंदुओं पर हुई गड़बडिय़ों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए लिखा है कि उप प्रबंधक (उत्पादन) के द्वारा अपनों को उपकृत करने के लिए दवाइयां निर्माण करने में लगने वाली सामग्री भंडार क्रय नियमों का पालन न करते हुए मनमाने दर पर खुले बाजार से क्रय किया गया है। दवाइयों के निर्माण में क्रय किया गया कच्चा पुराना माल उपयोग में लाया जा रहा है, जो कि 4-5 वर्ष से गोदामों में सड़ा हुआ है। सामग्रियों के गुणवत्ता की जांच नहीं की जाती है। लेखा रिपोर्ट आंतरिक रूप से सांठ-गांठ करके पास की जा रही है। पत्र में अग्रवाल ने कहा है क लगभग 50 दवाइयों के लैब रिपोर्ट सही नहीं है, जिसकी जांच उच्च कमेटी के द्वारा की जानी चाहिए।