– मैहर सीमेंट ने कब्जा ली करोड़ों की वन भूमि…
– गौरव चौहान
मप्र में एक तरफ सरकार वनवासियों को जंगल से खदेड़ रही है, वहीं दूसरी तरफ मैहर में वनभूमि पर अतिक्रमण करने का अनोखा मामला सामने आया है। मैहर सीमेंट कारखाना प्रबंधन द्वारा 70 एकड़ वन भूमि पर अतिक्रमण कर कालोनी, कालेज, आवासीय कालोनी, अस्पताल, बाजार आदि का निर्माण कर लिया गया, लेकिन वन विभाग को 30-35 साल बाद कार्रवाई की याद आई। अब जाकर मामले में प्रभारी उप वनमंडलाधिकारी यशपाल मेहरा, वन परिक्षेत्र अधिकारी सतीशचंद्र मिश्रा को निलंबित कर कार्रवाई पूरी कर दी गई।वन मंडल सतना के वन परिक्षेत्र मैहर के अंतर्गत मैहर सीमेंट औद्योगिक संस्था के लिए 193.1867 हेक्टेयर वन भूमि वर्ष 1975 में 99 वर्ष की अवधि के लिए मध्य प्रदेश शासन द्वारा औद्योगिक संस्था को स्वीकृत की गई। संस्था द्वारा स्वीकृत भूखंड सीमा से बाहर वनभूमि के वन कक्ष पी-555 में रकबा 27.9 हेक्टेयर अर्थात लगभग 70 एकड़ में कालोनी, कालेज, आवासीय कालोनी, अस्पताल, बाजार आदि का निर्माण कर वन भूमि में अतिक्रमण कर लिया गया। प्रकरण में 24 फरवरी 2024 को वन अपराध प्रकरण पंजीबद्ध किया गया है। वन विभाग ने जांच में पाया कि अतिक्रमण कर अवैध निर्माण वर्ष 2002 से किया गया। इस अतिक्रमण के संबंध में जिले में पदस्थ अधिकारियों द्वारा तत्समय कोई कार्रवाई नहीं की गई। शासन ने माना कि अधिकारियों द्वारा अतिक्रमण एवं वन अपराधों की रोकथाम के संबंध में त्वरित कार्रवाई नहीं कर शासन निर्देशों की अवहेलना कर अपने कर्तव्यों का पालन नहीं किया गया।78 अफसरों में से सिर्फ दो नपे… मैहर सीमेंट कारखाना प्रबंधन ने जब से 70 एकड़ वन भूमि पर अतिक्रमण किया, तब से 8 कलेक्टर और 70 अधिकारी पदस्थ रह चुके हैं। इनमें से किसी ने जमीन बचाने की हिम्मत तक नहीं की। जब अतिक्रमण संज्ञान में आया, तब भी कार्रवाई के बजाए बगले झांकते रहे। इन अफसरों को छोड़ वन मंत्रालय ने डेढ़ से दो साल पहले आए रेंजर सतीशचंद्र मिश्रा और एसडीओ यशपाल मेहरा को निलंबित कर दिया। इन्हीं दो अफसरों ने अतिक्रमणकारियों के खिलाफ अपराध दर्ज कर पहली कार्रवाई की थी। अब 31 मई को वन विभाग के उप सचिव वीरेंद्र कुमार ने निलंबन की कार्रवाई की थी। जमीन की बाजार कीमत 50 करोड़ से अधिक बताई जा रही है। जब से यह मामला सामने आया, तब से सिस्टम पर सवाल उठ रहे हैं। वन मंत्रालय ने मैहर की उक्त वन भूमि पर 2002 में अतिक्रमण होना स्वीकारा है। विशेषज्ञ कह रहे हैं कि जब वन विभाग ही 2002 में अतिक्रमण होना स्वीकार रहा है तो तय है कि इसके पहले से अतिक्रमण होना शुरू हुआ था जो कि 30 से 35 वर्ष पुराना है। जानकारी के मुताबिक कलेक्टर से लेकर कोई भी अधिकारी का एक स्थान पर कार्यकाल ढाई से लेकर 3 वर्ष तक का होता है। इस तरह बीते 10 वर्षों में सतना (अब मैहर जिला) में 8 से 10 कलेक्टर रह चुके हैं। वन विभाग में इतने ही सीसीएफ, डीएफओ, एसडीओ, रेंजर और डिप्टी रेंजर रहे। यही नहीं, किसी भी निजी व सरकारी जमीन पर अतिक्रमण हटाने के लिए क्षेत्र के नायब तहसीलदार, तहसीलदार, एसडीएम सक्षम होते हैं। विशेषज्ञों की माने तो उक्त अवधि में रहे, इनमें से कोई भी अधिकारी शुरुआत करते तो 70 एकड़ जमीन सीमेंट कारखाना प्रबंधन नहीं हड़पता। हालांकि अब सतना से मैहर अलग होकर जिला बन चुका है। जबकि उक्त वन भूमि पर अतिक्रमण की शुरुआत सतना के जिला रहते हुए हुई थी।जांच में आएंगे कई अफसरराज्य वन मंत्रालय ने भले ही दो को जिम्मेदार माना हो, लेकिन जांच के दायरे में पिछले 30 वर्षों में रहे सीसीएफ, डीएफओ, रेंजर, एसडीओ, डिप्टी रेंजर, क्षेत्र के नाकेदार समेत सभी आएंगे। इस मामले में निष्पक्ष कार्रवाई हुई तो इनका भी कार्रवाई के दायरे में आना तय है। राज्य वन मंत्रालय ने स्वयं अतिक्रमण माना है, इसलिए अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई भी करनी होगी। यदि वर्तमान कलेक्टर ने निष्पक्ष कार्रवाई की तो तब से अब तक रहे क्षेत्र के नायब तहसीलदार, तहसीलदार, एसडीएम का भी नपना तय है। सचिव वन विभाग अतुल मिश्रा का कहना है कि यह सही है कि अतिक्रमण पुराना है। शुरुआत में ही कार्रवाई होनी थी। यह जांच- पड़ताल का विषय है। । इस दिशा में काम किया जा रहा है। तब से लेकर अब तक पदस्थ सभी जिम्मेदारों पर कार्रवाई होनी है। अभी यह शुरुआत है।