प्रदेश के चार धार्मिक व ऐतिहासिक… स्थलों को लगेंगे विकास के पंख

  • सांदीपनि आश्रम, नारायणा धाम, अमझेरा और जानापाव होंगे उज्जैन लोक की तरह विकसित
  • गौरव चौहान
विकास के पंख

प्रदेश में जहां-जहां भगवान श्रीकृष्ण के चरण पड़े उन स्थानों को तीर्थ के रूप में विकसित करने जा रही है। इसके लिए संदीपनी आश्रम, नारायण धाम, अमझेरा धाम व जानापाव को चिन्हित कर लिया गया है। भगवान श्रीकृष्ण ने सांदीपनि आश्रम से शिक्षा, नारायणा से मित्रता, अमझेरा से वीरता और जानापाव से विनम्रता का संदेश दिया था। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इसकी घोषणा करते हुए कहा कि प्रयास यह हो कि आधुनिक समय में भगवान श्रीकृष्ण के इतिहास को जीवंत करते हुए हम उनकी मित्रता, वीरता, विनम्रता और शिक्षा ग्रहण करने के संदेश को जन-जन तक पहुंचाएं और उसे आत्मसात करें।  मुख्यमंत्री के मुताबिक मप्र में जहां-जहां भगवान श्रीकृष्ण के चरण पड़े उन स्थानों को तीर्थ के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया गया था। मप्र भगवान श्रीकृष्ण और भगवान श्रीराम के वास से प्रेरित और पावन भूमि है। हमारा सौभाग्य है भगवान श्रीकृष्ण, कंस वध के बाद उज्जैन के सांदीपनि आश्रम से शिक्षा ग्रहण करते हैं और जीवन में श्रीकृष्ण के रूप में दुनिया में जाने जाते हैं। ये मप्र का सौभाग्य है कि नारायणा में भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता हुई।
भगवान ने परम मित्रता का संदेश देते हुए बताया कि मित्रता में गरीब-अमीर का अंतर नहीं होता। धार के पास अमझेरा में वीरता के बल पर रुक्मणी हरण में भगवान ने रुक्मी को हाराया। इंदौर के पास जानापाव में विनम्रता और श्रद्धा से भगवान श्रीकृष्ण ने परशुराम जी से सुदर्शन चक्र प्राप्त किया। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि जन्माष्टमी के अवसर पर हम सब मिलकर प्रदेश के इन स्थानों का स्मरण करें।
संदीपनी आश्रम
प्राचीन उज्जैन अपने राजनीतिक और धार्मिक महत्व के अलावा, महाभारत काल की शुरुआत में शिक्षा का प्रतिष्ठित केंद्र था। भगवान श्री कृष्ण और सुदामा ने गुरु सांदीपनि के आश्रम में नियमित रूप से शिक्षा प्राप्त की थी। महर्षि सांदीपनि का आश्रम मंगलनाथ रोड पर है। आश्रम के पास के क्षेत्र को अंकपात के नाम से जाना जाता है, माना जाता है कि यह स्थान भगवान कृष्ण द्वारा अपनी लेखनी को धोने के लिए इस्तेमाल किया गया था। माना जाता है कि एक पत्थर पर पाए गए अंक 1 से 100 तक गुरु सांदीपनि द्वारा उकेरे गए थे। पुराणों में उल्लिखित गोमती कुंड पुराने दिनों में आश्रम में पानी की आपूर्ति का स्रोत था। नंदी की एक छवि तालाब के पास शुंग काल के समय की है। वल्लभ संप्रदाय के अनुयायी इस स्थान को वल्लभाचार्य की 84 सीटों में से 73 वीं सीट के रूप में मानते हैं जहां उन्होंने पूरे भारत में अपने प्रवचन दिए।
नारायणा धाम
 यहां भगवान कृष्ण की पूजा सुदामा के साथ की जाती है।  इस मंदिर में भगवान कृष्ण को राधा के साथ नहीं बल्कि सुदामा के साथ पूजा जाता है।  ये अपनी तरह का अनूठा मंदिर है। ऐसा कहा जाता है कि कृष्ण-सुदामा की दोस्ती उज्जैन में ही हुई थी। यहां से 31 किलोमीटर महिदपुर तहसील में नारायणधाम मंदिर स्थित है, यह विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां कृष्ण के साथ सुदामा मौजूद हैं। यहां आपको बता दें कि नारायणधाम मंदिर कृष्ण और सुदामा की बालसखा को समर्पित है। यहां पर सुदामा ने कृष्ण से छिपाकर चने खाए थे, जिस पर गुरू मां ने इन्हें दरिद्रता का श्राप दे दिया था। इस मंदिर में दर्शन करने के लिए हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं। शास्त्रों के अनुसार एक दिन गुरू माता ने श्रीकृष्ण और सुदामा को लकडिय़ां लाने के लिए भेजा। आश्रम लौटते समय तेज बारिश शुरू हो गई और श्रीकृष्ण-सुदामा ने एक स्थान पर रुक कर आराम किया था।
अमझेरा
सरदारपुर तहसील का अमझेरा गांव सरदारपुर के दक्षिण-पूर्व में लगभग 23 किमी एवं धार से उत्तर-पश्चिम में लगभग 27 किमी की दुरी पर स्थित है । तीनों स्थान सडक़ मार्ग से आपस में जुड़े हैं एवं बस से आवागमन होता है। अमझेरा का यहाँ स्थित शैव एवं वैष्णव मंदिरों, तालाबों, छत्रियों, कुओं, एक मस्जिद एवं किले के कारण प्राचीन काल से महत्व रहा है । यहां महादेव, चामुण्डा एवं अम्बिका माता के 5 शैव मंदिर तथा लक्ष्मीनारायण एवं चतुर्भुजनाथ के 2 वैष्णव मंदिर स्थित हैं। धार जिले का अमझेरा श्रीकृष्ण की लीला का साक्षी स्थल है।
जानापाव
महर्षि जमदग्रि की तपोभूमि तथा भगवान परशुराम की जन्मस्थली जानापाव, इंदौर की महू तहसील के राजपुरा कुटी (जानापाव कुटी) गांव में स्थित है।
मान्यता है कि जानापाव में जन्म के बाद भगवान परशुराम शिक्षा ग्रहण करने कैलाश पर्वत चले गए थे। जहां भगवान शंकर ने उन्हें शस्त्र-शास्त्र का ज्ञान दिया था। यहां पर पहाड़ी से साढ़े सात नदियां निकली हैं। इनमें कुछ यमुना व कुछ नर्मदा में मिलती हैं। यहां से चंबल, गंभीर, अजनार और सुमरिया नदियां व साढ़े तीन नदियां बालम, चोरल, कारम और नेकेड़ेश्वरी निकलती हैं। (कारम और नेकेड़ेश्वरी एक ही धारा में बहती हैं, इसलिए इन्हें डेढ़ नदी माना जाता है) ये नदियां करीब 740 किमी बहकर अंत में यमुनाजी में तथा साढ़े तीन नदियां नर्मदा में समाती हैं। यही पर भगवान परशुराम ने श्री कृष्ण को सुर्दशन चक्र दिया था।

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