सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पुलिस मुख्यालय अपने हिसाब से कर रहा पालन …
भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। पुलिस मुख्यालय और राज्य शासन द्वारा की जा रही मनमानी की वजह से पुलिस में आरक्षक के रुप में भर्ती हुए चार सैकड़ा पुलिसकर्मी अब भी मनचाही पदस्थापना के लिए परेशान बने हुए हैं। यह बात अलग है कि उनके करीब तीन सौ साथियों को इस मामले में राहत मिल चुकी है।
दरअसल प्रदेश में पिछले चार सालों में अलग-अलग समय पर की गई भर्ती में ऐसी गफलत की गई की सात सौ आरक्षकों को जिला पुलिस बल की जगह एसएएफ में पदस्थ कर दिया गया। इसकी वजह से इन आरक्षकों में से कुछ हाईकोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट तक चले गए , जिसके बाद उन्हें तो राहत दे दी गई है, लेकिन जो आरक्षक कोर्ट में नहीं गए उन्हें अब भी एसएएफ में ही पदस्थ कर रखा है। अहम बात यह है कि इस मामले में पुलिस मुख्यालय सम्यक आदेश निकालने से बच रहा है, जिसकी वजह से एक-एक कर आरक्षकों को कोर्ट की शरण लेनी पड़ रही है। जो आरक्षक कोर्ट की शरण ले लेता है उसे एसएएफ की जगह जिला पुलिस बल में तैनात कर दिया जाता है। नियमानुसार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर सम्यक आदेश निकाला जाता है। दरअसल प्रदेश में इस मामले में समान रूप से लागू नहीं किए जाने से पुलिस मुख्यालय की कार्य प्रणाली पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं। इस तरह के हालात बनने की वजह है पुलिस आरक्षक भर्ती में आरक्षण व्यवस्था को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया जाना। आरक्षण व्यवस्था लागू करने में त्रुटि के कारण जिला बल में भर्ती होने की पात्रता रखने वाले लगभग साढ़े सात सौ आरक्षकों को एसएएफ कैडर दे दिया गया। यह गड़बड़ी पुलिस आरक्षक भर्ती परीक्षा-2012, 2013, 2016, 2017 में की गई थी। इसमें चयनित उम्मीदवारों को आरक्षण की सुविधा का लाभ नहीं दिया गया था। आरक्षित वर्ग के युवाओं को नियम विरुद्ध तरीके से सामान्य वर्ग में शामिल कर जिला पुलिस बल (डीएफ) की जगह विशेष सशस्त्र बल (एसएएफ) में पदस्थ कर दिया गया था। इस गड़बड़ी को लेकर आरक्षक प्रवीण कुमार कुर्मी ने हाईकोर्ट जबलपुर की शरण ली थी। इसके बाद जस्टिस मनिंदर सिंह बट्टी और जस्टिस विशाल मिश्रा की पीठ ने गड़बड़ी सुधारने का आदेश देते हुए पात्र आरक्षकों को उनकी पसंद के अनुरूप पदस्थापना दिए जाने को कहा था। हाईकोर्ट ने इस आदेश के पालन का जिम्मा पुलिस महानिदेशक को सौंपा है। इस आदेश के पालन के लिए दो माह की समय सीमा तय की गई थी। इस बीच सरकार और पीएचक्यू इस मामले में लापरवाही बरत रहे थे, जिसकी वजह से मामला सुप्रीमकोर्ट ले जाया गया था। सुप्रीमकोर्ट ने भी हाईकोर्ट के फैसले को यथावत रखा, जिसके चलते न्यायालय की शरण लेने वाले आरक्षक प्रवीण की नई पदस्थापना जिला पुलिस बल में कर दी करनी पड़ गई । शीर्ष अदालत के फैसले के बाद अन्य पुलिसकर्मी भी हाईकोर्ट गए थे। आदेश के बाद तकरीबन 300 आरक्षकों को एसएएफ से जिला बल में पदस्थ कर दिया गया है। कुछ आरक्षक सुप्रीमकोर्ट के उस फैसले को आधार बनाकर हाईकोर्ट गए भी और कुछ हाईकोर्ट जाने की तैयारी में हैं। जो आरक्षक हाईकोर्ट का रास्ता अख्तियार कर रहे हैं, उन्हें तो न्याय मिल रहा है। बाकी के साथ न्याय नहीं किया जा रहा है। बड़ा सवाल यह है कि सरकार उन सभी आरक्षकों के हाईकोर्ट जाने का इंतजार क्यों कर रही है? जिन आरक्षकों को नियमों को दरकिनार कर एसएएफ में भेजा गया है, उनकी छंटनी कर जिला बल में पदस्थ करना चाहिए। क्योंकि सुप्रीमकोर्ट का फैसला सभी के लिए मान्य होता है। वास्तव में राज्य सरकार को भर्ती की सूची तैयार कर एक सम्यक आदेश जारी कर आरक्षकों को न्याय देना चाहिए।
समिति नहीं ले पा रही है निर्णय
सूत्र बताते हैं कि पुलिस भर्ती में हुई गड़बड़ी की जांच और तैयार की गई सूची का परीक्षण के लिए पीएचक्यू ने 10 सदस्यों की एक समिति गठित की है। समिति भी अभी तक शीर्ष अदालत के फैसले के मद्देनजर निर्णय नहीं कर पाई है। लिहाजा प्रभावित आरक्षकों का समय और धन अदालत के चक्कर लगाने में खर्च हो रहा है। बताते हैं कि इस मामले में जब पुलिस के आला अफसरों ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को जानकारी दी, तो उन्होंने सुप्रीमकोर्ट के आदेश का पालन करने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि जब भर्ती प्रक्रिया और एसएएफ से डीएफ में भेजे पर सरकार को कोई अतिरिक्त आर्थिक भार नहीं पड़ रहा है, तो उसे करने में क्या दिक्कत है। इसके बाद भी मामले को लटकाया जा रहा है।