केपी के लिए मुश्किल खड़ी कर रहे चार दावेदार

केपी सिंह

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। लोकसभा चुनाव जीतकर केंद्रीय मंत्री बने ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राज्यसभा की सीट छोड़ दी है। इस खाली हुई सीट पर माना जा रहा है कि पूर्व सांसद केपी सिंह को पार्टी हाईकमान राज्यसभा भेजेगा। इसके बाद भी इस सीट को लेकर दावेदारी बढ़ती ही जा रही है। इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी की जीतना तय है, लिहाजा हर दावेदार पूरी ताकत प्रत्याशी बनने के लिए लगा रहा है। यह दावेदार भी जानते हैं कि सीट पर सबसे मजबूत दावा गुना के पूर्व सांसद केपी सिंह यादव का है। पार्टी ने हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में उनका टिकट काट दिया था। उनकी जगह कांग्रेस से भाजपा में शामिल हो चुके  ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रत्याशी बनाया गया था। 2019 के लोकसभा चुनाव में केपी ने बतौर भाजपा प्रत्याशी सिंधिया को हराकर सभी को हतप्रभ कर दिया था। उस समय सिंधिया कांग्रेस में थे और गुना शिवपुरी सीट को भाजपा के लिए अजेय माना जाता था। कहा जा रहा है कि लोकसभा टिकट कािटते समय केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने केपी को भरोसा दिया था कि सिंधिया के जीतने पर खाली होने वाली राज्यसभा की सीट पर उन्हें राज्यसभा भेजा जाएगा। यही वजह है कि पूरे लोकसभा चुनाव में केपी ने पार्टी की लाइन को कभी भी लांघने का प्रयास नहीं किया है। यही वजह है कि उनके खिलाफ एक भी भितरघात की शिकायत भी नहीं मिली है। यही नहीं चुनाव प्रचार के दौरान भी गुना में अमित शाह ने मंच से कहा था कि केपी को आगे बढ़ाने की ङ्क्षचता अब हम करेंगे और अब इस सीट पर सिंधिया के साथ ही केपी के रूप में दो-दो नेता मिलेंगे। इससे साफ है कि केपी की दावेदारी सबसे पुख्ता बनी हुई है।  अब कई दावेदार सामने आने के बाद सभी की निगाह केन्द्रीय गृह मंत्री और पार्टी के सबसे ताकतवर नेताओं में शुमार अमित शाह के आश्वासन की पूर्ति पर लगी हुई है।
गृह अंचल के नेता ही दे रहे चुनौती
केपी यादव की दावेदारी को उनके गृह अंचल के नेता ही पूरी ताकत के साथ चुनौती दे रहे हैं। सिंधिया चंबल-ग्वालियर अंचल से आते हैं। राज्यसभा सीट के लिए यहां से ही सर्वाधिक तीन दावेदार हैं। केपी यादव के अलावा जयभान सिंह पवैया, विवेक शेजवलकर और नरोत्तम मिश्रा भी राज्यसभा पहुंचने के लिए अपनी -अपनी पूरी ताकत लगा रहे हैं। जयभान सिंह अंचल में संघ और हिंदुत्व का बड़ा चेहरा हैं। बजरंग दल के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे पवैया ग्वालियर से सांसद और प्रदेश सरकार में मंत्री रह चुके हैं। वो ग्वालियर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते थे, लेकिन सिंधिया के साथ कांग्रेस विधायक प्रद्युम्न सिंह तोमर के भाजपा में शामिल होने के बाद ग्वालियर सीट तोमर के खाते में चली गई, फिर माना जा रहा था कि पार्टी पवैया को लोकसभा प्रत्याशी बनाएगी, लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ। लोकसभा के लिए भाजपा ने जब भारत सिंह कुशवाह को टिकट दे दिया तब से कयास लगाए जा रहे थे कि पवैया नाखुश चल रहे है। यह बात अलग है कि वे इसके पहले चुनाव हार चुके हैं। इसी तरह से मौजूदा ग्वालियर सांसद विवेक शेजवलकर का भी इस बार टिकट काट कर भारत सिंह कुशवाहा को मौका दिया गया है। वे चुनाव जीत भी गए है। शेजवलकर चाहते हैं कि उन्हें राज्यसभा के लिए मौका दिया जाए। अंचल के तीसरे सशक्त दावेदार हैं, प्रदेश के पूर्व गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा। अमित शाह के करीबी हैं। वे छह माह हपले ही हुए विधानसभा का चुनाव  दतिया से हार चुके हैं। उनका प्रयास भी राज्यसभा के लिए माना जा रहा है। वे इसके अलावा  प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद के भी दावेदार बने हुए हैं।
रमाकांत की भी दोवदारी
राज्यसभा की सीट के लिए एक और जो नाम चर्चा में है, वो है रमाकांत भार्गव का। विदिशा के पूर्व सांसद रमाकांत भार्गव 2019 में विदिशा से वे 5 लाख से भी ज्यादा वोटों के अंतर चुनाव जीतकर सांसद बने थे, लेकिन हाल ही में उनका टिकट काटकर पार्टी ने उनकी सीट पर शिवराज सिंह चौहान को प्रत्याशी बना दिया था। शिव अब जीतकर केन्द्र में मंत्री बन चुके हैं। भार्गव को शिवराज का बेहद करीबी माना जाता है। इसलिए माना जा रहा है कि  शिवराज चाहेंगे कि रमाकांत ने चूंकि उनके लिए सीट छोड़ी है, इसलिए राज्यसभा में उन्हें भेजा जाना चाहिए। दरअसल, भार्गव ब्राह्मण चेहरा होने के साथ ही सहकारिता के बड़े नेता माने जाते हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल में प्रदेश से आधा दर्जन नेताओं को शामिल किया गया, लेकिन उसमें मप्र से कोई बा्रहण तो ठीक सामान्य वर्ग के चेहरे को भी मौका नहीं दिया गया है। यह यमीकरण उनकी दावेदारी में पक्ष में बताए जा रहे हैं। हालांकि एक अन्य दावेदार नरोत्तम भी ब्राह्मण है। शिवराज के सांसद बनने के बाद खाली होने वाली बुदनी विधानसभा सीट के लिए भी रमाकांत दावेदार है। राज्यसभा हाथ न लगने पर शिवराज उनको सिफारिश बुदनी के लिए कर सकते हैं।

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