संघ के संस्कारों में घुले-मिले श्रीमंत

 श्रीमंत

सबको साध कर राजनीति करने में पारंगत हुए

भाजपा में बढ़ी सिंधिया की स्वीकार्यता, दिल्ली में हाजरी लगा रहे नेता

भोपाल/ गौरव चौहान /बिच्छू डॉट कॉम। कांग्रेस में महाराज की आभा मंडल में रहने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में आने के बाद पूरी तरह बदल गए हैं। कांग्रेस में अपनी अलग लाइन बनाकर चलने वाले सिंधिया भाजपा में पार्टी की लाइन पर तो चल ही रहे हैं, साथ ही सबको साधकर चल रहे हैं। वे सत्ता, संगठन और संघ को साधकर चल रहे हैं।  इससे केंद्रीय मंत्री की भाजपा में उनकी स्वीकार्यता बढ़ी है। इन सबके बावजूद आगामी विधानसभा चुनाव में सिंधिया की अग्रिपरीक्षा होगी। गौरतलब है कि भाजपा में करीब सवा दो साल बिताने के बाद केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया समन्वय व संयम की सियासत के दांव चलने लगे हैं। आने वाला चुनावी साल सिंधिया के लिए अग्निपरीक्षा का रहेगा। उनका टिकट की कसौटी पर इम्तिहान होगा, क्योंकि उनके साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए 22 विधायक फिर टिकट के दावेदार होंगे। कुछ हार चुके हैं, इससे उनका टिकट आसान नहीं। कई सीटों पर समीकरण भाजपा नेताओं से उलझना तय है। ऐसे में इन चुनौतियों से सिंधिया कैसे निपटेंगे यह देखने योग्य होगा।
खींचतान पर लगाम लगी
केंद्रीय मंत्री बनने के बाद सिंधिया से श्रेय की खींचतान पर लगाम लगी है। मध्यप्रदेश के नेता उलटे सिंधिया से प्रदेश के लिए मांग लेकर पहुंचने लगे है। अनेक मंत्री-विधायक-सांसद सहित अन्य नेता सम्पर्क बढ़ाने लगे हैं। सिंधिया गुट के लिए भी मध्यप्रदेश में जगह बनी, विरोध अपेक्षाकृत ठंडा हुआ। सिंधिया की सियासी वजनदारी बढ़ी है। मप्र को जिस तरह सौगातें दी तो उससे कद भी बढ़ा। शीर्ष नेतृत्व की लाइन देखकर विरोधी गुट फिलहाल चुप्पी साध गए। सिंधिया ने शुरूआत से भाजपा के साथ चुनावी शिरकत की। दिग्गज नेताओं से मेल-मुलाकात का ग्वालियर में सिलसिला शुरू किया था।  नगरीय निकाय चुनाव में उनकी पंसद  का टिकट नहीं मिला, लेकिन खुले तौर पर निकाय चुनाव के टिकटों के मामले में उपेक्षा के बाद भी उनके द्वारा विरोध या विवाद नहीं होने दिया। यही नहीं यह पहला मौका रहा जब  सिंधिया खेमा चुनाव प्रचार में उतरा। यही नहीं ग्वालियर में उनका खेमा बाकी भाजपा खेमे पर भारी पड़ा है। उनके द्वारा उज्जैन इंदौर तक में वोट मांगे गए। सिंधिया इंदौर में महासचिव  कैलाश विजयवर्गीय के निवास पर पुत्र महानआर्यमन को लेकर पहुंचे। सिंधिया ने आरएसएस में पैठ बढ़ाने पर भी खूब काम किया। नागपुर में संघ मुख्यालय, भोपाल, दिल्ली में भी संघ कार्यालय पर गए। संघ पदाधिकारियों से मेल-मुलाकात की। भाजपा की मराठा लॉबी, युवा वर्ग और पार्टी से असंतुष्ट खेमे को भी सिंधिया ने समर्थन दिया।
भाजपा में सिंधिया को बराबर महत्व
वैसे देखा जाए तो भाजपा में आने के बाद से ही सिंधिया को बराबर महत्व मिल रहा है। पहले मंत्रिमंडल गठन में दबदबा दिखा।  शुरुआत में ही जब पांच मंत्री बनाए गए तो उसमें भी उनके द्वारा 2 मंत्री बनवाएं गए। इसके बाद मंत्रिमंडल विस्तार में फिर उन्हें अहमियत मिली और  उनके समर्थक 9 मंत्री बनाए गए , इसके बाद  विभाग बंटवारे में भी चली। समर्थकों को अच्छे विभाग दिलवाए। संगठन की टीम गठन में आंशिक चली। कुछ समर्थक एडजेस्ट हुए। नगरीय निकाय चुनाव के टिकट वितरण में नहीं चली। ज्यादातर समर्थक खाली हाथ रहे। इस सब के बाद भी  सिंधिया लगातार संयम बनाए हुए हैं। इससे पार्टी में उनका कद और महत्व लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में माना जा रहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव में सिंधिया का महत्व बड़ा रहेगा।
 सिंधिया की संयम की राजनीति
दरअसल, केंद्रीय मंत्री बनने के पहले सिंधिया के खिलाफ पार्टी में सुर बुलंद होते रहते थे, लेकिन अब धीरे-धीरे ये सुर बंद पड़ गए हैं। अब विरोध करने वाले भी खिलाफत को मौन रख रहे हैं। इसलिए दिल्ली में सिंधिया के दरबार में मध्यप्रदेश के नेताओं की हाजरी बढ़ती जा रही है। अभी करीब कुछ मंत्रियों ने दिल्ली में सिंधिया से मुलाकात के लिए समय मांगा है। अधिकतर नेता ऐसे हैं, जो सीधे लाइम लाइट में आने की बजाए सिंधिया से जुगलबंदी बढ़ाने के प्रयास कर रहे हैं। इससे आने वाले समय में सिंधिया का दबदबा और बढ़ता नजर आ सकता है। जानकारों के अनुसार भाजपा में सिंधिया क स्वीकार्यता इसलिए बढ़ी है कि उन्होंने सोची-समझी रणनीति के तहत संयम की राजनीति की हैं। उन्हें लेकर पार्टी में बार-बार सुर उठे, लेकिन सिंधिया ने संयम रखा। सभी को सकारात्मक रिस्पांस दिया। सिंधिया ने हर गुट में संतुलन साधा, हर गुट में बड़े नेता से लेकर छोटे कार्यकर्ता तक के घर गए, हर दौरे में छोटे नेताओं को भी साधा, यहां तक कि पार्षद स्तर तक के घर गए। जिसने भी खुलकर विरोध किया, उससे सिंधिया ने मुलाकात की। मसलन, उमा भारती, जयभान सिंह पवैया सहित अन्य नेता। इसके बाद इनके विरोध के सुर बदले। उमा तो प्रशंसक हो गई।
आरएसएस में पैठ बढ़ाई
सिंधिया ने लंबी रेस की राजनीति की रणनीति पर चलते हुए आरएसएस में पैठ बढ़ाई। संघ मुख्यालय गए। साथ ही मध्यप्रदेश के भोपाल-इंदौर संघ कार्यालय भी पहुंचे। संघ से संवाद बढ़ाया। उन्होंने भाजपा की पहली पंक्ति के सभी नेताओं से सीधा सम्पर्क रखा। पीएम नरेंद्र मोदी, अमित शाह, जेपी नड्डा सहित अन्य नेताओं तक सीधी एप्रोच व संतुलित संवाद रखा। उन्होंने सीएम शिवराज सिंह चौहान से शुरूआत से सकारात्मक संवाद करके जोड़ी बनाई। भाजपा ज्वाइनिंग के बाद पहले दौरे में ही शिवराज के घर भोजन करके समन्वय का संदेश दिया। केंद्रीय मंत्री बनने के बाद से ही सिंधिया ने मप्र में ताबड़तोड़ काम किया है। नई मोदी टीम के परफार्मर मंत्री बनने की लाइन पर काम किया है। लगातार सक्रियता दिखाई है।

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