- अनावश्यक खर्च पर लगेगी पाबंदी….
- सरकार ने अधिकारियों को सौंपी खर्च में कटौती की जिम्मदारी
- गौरव चौहान
मप्र सरकार विकास कार्यों के लिए लगातार कर्ज ले रही है। इस कारण प्रदेश सरकार पर कर्ज का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। प्रदेश में कर्ज का कुल हिसाब-किताब लगाया जाए तो प्रदेश के ऊपर 3 लाख 73 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज हो गया है। यानी प्रति व्यक्ति ये कर्ज 47 हजार रुपए हो गया है। ऐसे में अब सरकार की कोशिश है कि अनावश्यक खर्च पर पाबंदी लगाकर प्रदेश को कर्ज से उबारा जाए। इसके लिए सरकार ने अधिकारियों के एक वर्ग को मप्र को कर्ज से उबारने का फॉर्मूला तैयार करने को कहा है। ये अधिकारी खर्च में कटौती कैसे की जाए इसका सुझाव सरकार को देंगे।
गौरतलब है कि वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए सरकार ने अलग-अलग किश्तों में 42,500 करोड़ रुपए का कुल कर्ज लिया था। आखिरी बार मोहन यादव सरकार ने 27 मार्च को तीन अलग -अलग तरीके से कुल 5000 करोड़ का कर्ज लिया था। कर्ज में डूबी मध्यप्रदेश सरकार एक बार फिर से कर्ज लेने की तैयारी कर रही है। मप्र फाइनेंस डिपार्टमेंट ने करीब डेढ़ महीने पहले केंद्र सरकार को एक प्रस्ताव भेजा था, जिसके बाद रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से लोन लेने की इजाजत दे दी गई है। ऐसे में अब प्रदेश सरकार आधारभूत संरचना से जुड़े खर्चों के लिए 2000 से 2500 करोड़ का कर्ज इसी महीने में ले सकती है।
आवक बढ़ाने पर जोर
जानकारी के अनुसार सरकार ने आवक बढ़ाने और गैरजरूरी खर्चों पर कैंची चलाने वाले मॉडल पर काम शुरू किया है। यह कवायद प्रदेश को कर्ज से निकालने के लिए शुरू की गई है। इसकी जिम्मेदारी चुनिंदा अधिकारियों को दी है। वे उन खर्चों को सूचीबद्ध करवा रहे हैं, जिन पर राजस्व का बड़ा हिस्सा खर्च हो रहा है। सरकार की मंशा है कि ऐसे खर्चों को सीमित किया जाए। जो जरूरी नहीं, उन्हें भविष्य में बंद भी किया जा सकता है। इससे पहले ऐसे खर्चों का परीक्षण किया जाएगा। देखा जाएगा कि जनता पर इसका असर तो नहीं पड़ेगा। उधर, अधिकारियों की टीम उन स्रोत को खंगाल रही है, जो राजस्व में इजाफा कर सकते हैं, लेकिन किसी न किसी कारण उन पर ध्यान नहीं है या लापरवाही बरती जा रही हैं। सरकार की कवायद में सबसे अहम बात यह सामने आई कि कर्ज के बोझ को कम करने के लिए किसी भी योजना को बंद नहीं किया जाएगा। सरकार के संज्ञान में आया है कि प्रदेश के कुछ व्यापारी इमारती लकड़ी का आयात कर रहे हैं, जिसके कारण राजस्व का बड़ा हिस्सा बाहर जा रहा है। मप्र भी वन वाला राज्य है, जहां भरपूर इमारती लकड़ी है। अब सरकार ने इस क्षेत्र को संज्ञान में लिया है। वन विभाग से रिपोर्ट मांगी है कि मध्यप्रदेश में बाहर से लाई जा रही इमारती लकड़ी का स्टेटस क्या है। ऐसे व्यापारियों को यह कदम क्यों उठाना पड़ रहा है। सरकार जल्द ही व्यापारियों से बात कर स्थानीय इमारती लकड़ी खरीदने के लिए प्रोत्साहित करेगी। इसकी अड़चनों को दूर किया जाएगा। इसी तरह के तमाम विकल्पों पर काम किया जा रहा है।
संपत्तियों को किराए पर देगी सरकार
प्रदेश सरकार अपनी आय वृद्धि के लिए अपनी संपत्तियों को बेचने या फिर किराये पर देने का प्लान कर रही है। इसके लिए वित्त विभाग ने बीते माह अन्य राज्यों में स्थित मप्र सरकार की संपत्तियों की जानकारी सभी विभागों से मांगी थी। प्रदेश की महाराष्ट्र, यूपी, उत्तराखंड सहित कई राज्यों में 1 लाख करोड़ की संपत्तियां हैं। सबसे अधिक मुंबई में 50,000 करोड़ की लगभग 465 संपत्तियां हैं।
इसलिए है कर्ज की जरूरत
प्रदेश सरकार सडक़, पुल जैसे विकास कार्यों और लाड़ली बहना योजना की सुचारू व्यवस्था के लिए जून महीने में कर्ज ले सकती है। लाड़ली बहना योजना का हर महीने का खर्च 1676 करोड़ है। फरवरी महीने में विधानसभा में लेखानुदान 1.45 लाख करोड़ का प्रस्ताव पारित हुआ था। हालांकि इसमें नए करों के और नए खर्चों के प्रस्ताव शामिल नहीं थे। इसमें सरकार के 4 महीनों के खर्च की व्यवस्था थी। हालांकि आकस्मिक खर्चों के लिए मार्केट लोन लिया जा सकता है। मार्केट लोन के अलावा गवर्नमेंट बॉन्ड को गिरवी रखकर भी सरकार लोन लेती है। आरबीआई के नियमों के मुताबिक किसी भी राज्य के एसजीडीपी के 3 प्रतिशत के बराबर राज्य कर्ज ले सकता है। मप्र की एसजीडीपी लगभग 15 लाख करोड़ है, जिसके मुताबिक प्रदेश की कर्ज लिमिट 45,000 करोड़ है। जीएसडीपी में बहुत अधिक वृद्धि नहीं हुई है, इसलिए ये लिमिट भी लगभग इतनी ही रहेगी।
राजस्व प्राप्ति के लक्ष्य पूर्ति पर फोकस
हर साल राजस्व प्राप्ति के लक्ष्य तय किए जाते हैं। कुछ विभाग अच्छा प्रदर्शन कर लक्ष्य से ज्यादा हासिल करने में सफल हो रहे हैं तो कुछ विभाग पिछड़ रहे हैं। ऐसे विभागों के प्रमुखों को दो टूक कहा गया है कि कमियां दूर करें और लक्ष्य प्राप्ति के लिए काम करेंगे। आने वाले समय में जो अधिकारी इस बात को नहीं समझ पाएंगे, उनकी जिम्मेदारी बदली जाना तय बताया जा रहा है। गौरतलब है कि सरकार पर 3 लाख 73 हजार करोड़ से अधिक का कर्ज है, जो भविष्य में बढ़ सकता है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव खुद इस पर अधिकारियों के साथ कई दौर का मंथन कर चुके हैं। उनका लक्ष्य है कि सरकार की खुद की आवक बढ़ाकर कर्ज के इस बोझ को कम करे। इसके लिए सभी को मैदानी स्तर पर काम करने के लिए कहा गया है।