डेढ़ दशक से वन महकमे ने अटका रखा है टीसीएफ का गठन

वन महकमे
  • केन्द्र की गाइड लाइन का भी किया जा रहा है खुलकर उल्लंघन

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। एक तरफ प्रदेश की देशभर में टाइगरों की सर्वाधिक बदनामी हो रही है, तो वहीं विभाग के कामकाज में होने वाले भ्रष्टाचार को लेकर भी विभाग लगातार चर्चा में बना रहता है। इसके बाद भी विभाग के आला अफसरान बीते डेढ़ दशक से केन्द्र सरकार की उस गाइडलाइन पर अमल करने को तैयार नही हैं, जिसमें मप्र टाइगर कंजर्वेशन फाउंडेशन (टीसीएफ) बनाने को कहा गया था। यह गाइड लाइन टाइगर रेंज वाले राज्यों में 22 जून 2007 को वाइल्ड लाइफ एक्ट की धारा 38 एक्स के तहत टीसीएफ का गठन करने के लिए जारी की गई थी। अन्य संबधित राज्यों ने इसे गंभीरता से लेते हुए टीसीएफ का गठन कर लिया, लेकिन मप्र में अब तक इसे गंभीरता से ही नहीं लिया गया है। मप्र में अब भी 1997 में गठित एमपी टाइगर सोसायटी (एमपीटीएस) को ही टीसीएफ का पर्याय मान लिया गया है। नियमानुसार वाइल्ड लाइफ एक्ट के तहत 2007 में ही वन विभाग को एमपीटीएफएस को भंग कर टीसीएफ का गठन करना था, लेकिन 2007 में इस सोसायटी का नाम एमपी टाइगर फाउंडेशन सोसायटी (एमपीटीएफएस) कर दिया गया। दरअसल इसे दो तरह से फंड मिलता है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों से मिलने वाले अनुदान के रुप में तो दूसरा डायवर्सन शुल्क के रुप में मिलता है।
इसलिए न हीं बनाया जा रहा है फाउंडेशन
इस मामले में वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट अजय दुबे ने मुख्य सचिव को शिकायत की है। जिसमें कहा गया है कि पूर्व के पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) अफसरों और वन मंत्री ने मिलकर एमपीटीएफएस सोसायटी के बजट का निजी हितों के लिए उपयोग किया है। इस एमपीटीएफएस सोसायटी होने के कारण इसके बजट की राशि को फिजूलखर्ची करने में आसानी थी। अब तक करीब 50 करोड़ से अधिक की राशि का मनमर्जी से इन्होंने उपयोग कर लिया है। इसकी वजह बताते हुए उन्होंने लिखा है कि टीसीएफ की गाइडलाइन के अनुसार भारत के महालेखाकार और नियंत्रक (कैग) के उपबंधो के तहत लेखाओं का ऑडिट कैग में इम्पैनल्ड सीए ही कर सकते हैं। इसके चलते वन विभाग के अफसरों को फंड का दुरुपयोग करने में दिक्कत होती। लिहाजा, अवैध संस्था एमपीटीएफएस का ही संचालन किया जा रहा है। अहम बात यह है कि इस मामले में फम्र्स सोसायटी ने एमपीटीएफएस को नोटिस जारी कर वित्त ऑडिट रिपोर्ट 2002 से जमा करने के लिए कहा है। यानी सोसायटी के पदाधिकारियों ने 2002 से कोई वित्तीय ऑडिट की सूचना फम्र्स एंड सोसायटी में जमा नहीं कराई है। इससे भी इस मामले में वित्तीय अनियमितता होने का सवाल उठ रहा है। वहीं पीसीसीएफ ने मप्र टीसीएफ के सीनियर मैनेजर सुरेंद्र कुमार खरे को नोटिस जारी कर टाइगर फाउंडेशन का गठन न किए जाने को लेकर जवाब मांगा है।

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