डेढ़ साल से बना हुआ है… एफआईआर का इंतजार

एफआईआर

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में इन दिनों गड़बड़झाला करने वालों के पौ बारह है। इसकी वजह है कभी शासन स्तर पर तो कभी सरकार स्तर पर ऐसे मामलों में देरी की जाती है, लेकिन अब तो ऐसे कई मामले हैं, जिनमें जांच एजेंसी ही हीलाहवाली करती नजर आती हैं। ऐसा ही एक मामला है प्रदेश के तीन बीमा अस्पतालों के लिए दवा और उपकरण खरीदने में हुई गड़बड़ी का। इस मामले की शिकायत होने के बाद राज्य आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) ने दिसंबर 2021 में प्राथमिक पंजीबद्ध कर जांच शुरु की थी, लेकिन अब इसके बाद करीब 16 माह का समय हो चुका है, लेकिन अब तक मामले में एफआइआर तक दर्ज नहीं की गई है। यह पूरा मामला वर्ष 2015-16 का है। उस समय कर्मचारी राज्य बीमा सेवाएं संचालनालय इंदौर के तत्कालीन संयुक्त संचालक डा. प्रकाश तारे द्वारा संचालक रहे डा. बीएल बंगेरिया और उप संचालक डा. वीके शारदा के विरुद्ध लोकायुक्त से शिकायत की थी , लेकिन मामला आर्थिक अपराध का होने की वजह से मामले को लोकायुक्त ने ईओडब्ल्यू को भेज दिया था। जिसकी जांच का जिम्मा इंदौर ईओडब्ल्यू को सौंप दिया गया था। शिकायत के अनुसार देवास, भोपाल और ग्वालियर चिकित्सालयों के लिए बाजार मूल्य से अधिक दामों मेेंं उपकरणों की खरीदी की गई थी। उप संचालक वीके शारदा ने फैक्स के माध्यम से उपकरणों की सूची अस्पतालों से मांगी थी। यह खरीदी संचालनालय में पदस्थ लेखाधिकारी की अनुशंसा बगैर की गई थी। इसके अलावा खरीदी में अन्य तरह की भी अनियमितताएं की गई थीं। इस मामले में श्रम मंत्री से लेकर वरिष्ठ अधिकारियों तक से शिकायत की गई थी, लेकिन फिर भी कोई कार्रवाई नहीं की गई। मामले की शिकायत के बाद ईओडब्ल्यू द्वारा चार जनवरी 2022 को इस मामले में प्रकाश तारे के बयान भी दर्ज किए गए थे, लेकिन इसके बाद से अब तक एफआइआर ही दर्ज नहीं की।
इन मामलों  की जांच लंबित
शिकायत में कहा गया था कि  बाजार से कई गुना महंगे दाम पर उपकरणों की खरीदी की गई। इसमें हास्पिटल डेवलमेंट कमेटी (एचडीसी) की अनुमति ही नहीं ली गई थी। इस कमेटी में अस्पताल के सभी विभागों के प्रमुख रहते हैं। वह अपने विभाग की आवश्यकता के अनुसार उपकरणों की मांग करते हैं। संचालनालय द्वारा 12 दिसंबर 2015 को तीन अस्पताल और 42 डिस्पेंसरियों के लिए दवाएं खरीदी, लेकिन इसमें क्रय समिति की स्वीकृति ही नहीं ली गई। दवा खरीदी का कॉट्रैक्ट दिल्ली की एक कंपनी से किया गया, जबकि बिल इंदौर की एक फर्म के नाम से बनाया गया है। हालांकि इस मामले में जांच एजेंसी का कहना है कि दस्तावेजी साक्ष्यों को एकत्र करने में समय लगता है। उधर, शिकायतकर्ता का कहना है कि मैंने खरीदी में 48 करोड़ रुपये से अधिक की हेराफेरी की शिकायत की थी। जनवरी 2022 में ईओडब्ल्यू इंदौर में बयान भी दर्ज हुए थे, लेकिन अभी तक एफआइआर ही दर्ज नहीं की गई है।

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