सरकारी खजाने पर वित्त विभाग का पहरा

सरकारी खजाने
  • नए खर्चों के लिए विभागों को नहीं मिल रही राशि

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। भोपाल। मप्र में सरकार गठन के बाद अब मंत्रियों के विभागों का बंटवारा भी हो गया है। माना जा रहा है की इसके साथ ही विकास कार्य गति पकड़ेंगे। लेकिन फिलहाल इसकी संभावना नजर नहीं आ रही है। इसकी वजह यह है कि महत्वपूर्ण योजनाओं के कारण सरकार ने विभागों के खर्च पर रोक लगा दी है। सरकार के निर्देशानुसार सरकारी खजाने पर वित्त विभाग का पहरा है। आलम यह है कि नए खर्चों के लिए विभागों को राशि नहीं मिल रही है। दरअसल, नए मुख्यमंत्री मोहन यादव और उनकी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती योजनाओं को चलाने और घोषणाओं को पूरा करने बजट जुटाने की होगी। जानकारों का कहना है कि सरकार की आय की तुलना में खर्च बहुत ज्यादा है। ऐसे में नई सरकार को राजस्व बढ़ाने के विकल्प पर काम करना होगा। मप्र विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने लाड़ली बहना योजना, 450 रुपए में गैस सिलेंडर, किसान सम्मान निधि, एमएसपी पर गेहूं और धान खरीदने की घोषणाएं की थी। इससे सरकार का पूरा गणित गड़बड़ा गया है।
यह है वित्तीय भार: प्रदेश में उपभोक्ताओं को 100 रुपए 100 यूनिट बिजली सब्सिडी देने में 6 हजार करोड़ रुपए का भार।  लाड़ली बहनों को गैस सिलेंडर पर 450 रुपए की सब्सिडी देने पर करीब 270 करोड़ रुपए का भार। लाड़ली बहनों को 1250 रुपए की राशि देने पर करीब 19 हजार करोड़ रुपए का भार। राशि बढ़ाने पर यह भार भी बढ़ेगा। किसान सम्मान निधि की राशि में दो हजार रुपए की बढ़ोतरी करने पर करीब पांच हजार करोड़ रुपए का भार आएगा। इसके अलावा सरकार गेहूं 2700 रुए और धान 3100 रुपए प्रति क्विंटल खरीदेगी।  तेंदूपत्ता चार हजार रुपए प्रति मानक, लाड़ली बहनों को पक्के मकान दिए जाएंगे। गरीब कल्याण अन्न योजना में चावल-गेहूं-दाल के साथ सरसों तेल, शक्कर देंगे। सरकार को चिंता विधानसभा चुनाव में किए वादे पूरे करने को लेकर है। सत्तारूढ़ दल भाजपा ने लोगों से कई वादे किए। इन्हें पूरा करना है। इसमें लाड़लियों, युवा, किसान और व्यापारियों सहित अन्य वर्ग से किए वादे शामिल हैं। इन्हें पूरा करने के लिए मोटी रकम चाहिए। खर्चों में विभागों के हाथ बांधने से कई योजनाओं पर असर पड़ेगा। विभागों से दिए जाने वाले प्रोत्साहन, पुरस्कार की राशि भी वित्त विभाग से पूछकर देनी होगी। शासकीय आवासों का रखरखाव, पीडब्ल्यूडी के तहत क्षेत्रों का सौंदर्यकरण योजना भी शामिल है। वित्तीय संकट का असर कई योजनाओं पर पड़ेगा। जिन योजनाओं पर असर पड़ेगा उनमें एक जिला एक उत्पाद योजना, मुख्यमंत्री ऋण समाधान योजना, मेधावी छात्रों को विदेश अध्ययन के लिए नि:शुल्क शिक्षा, मुख्यमंत्री जन कल्याण योजना, कृत्रिम अंग वितरण योजना, खाद्यान्न भंडारण गारंटी योजना, मुख्यमंत्री उत्कृष्टता पुरस्कार, मप्र भामाशाह पुरस्कार योजना, राजा संग्राम सिंह पुरस्कार योजना,टंट्या भील मंदिर जीर्णोद्धार, खिलाडिय़ों  को प्रोत्साहन, खेलो इंडिया एमपी, मेधावी विद्यार्थियों को लैपटॉप और व्यावसायिक कॉलेजों में प्रवेश के लिए विशेष प्रशिक्षण शामिल है।
सरकारी विभागों के हाथ बंधे
 वित्तीय वर्ष समाप्त होने में अभी तीन माह शेष हैं। इससे पहले ही खजाने की माली हालत खराब होने लगी है। इसका असर दिखने लगा है। वित्त विभाग ने खर्चों के मामले में सरकारी विभागों के हाथ बांध दिए हैं। विभागों से कहा है, वित्त विभाग की अनुमति के बिना सरकारी खजाने से रकम न निकाली जाए। इसमें सरकारी योजनाओं सहित अन्य कार्य भी शामिल हैं। स्थिति यह है कि खजाने में रकम होने के बावजूद अब विभाग इस राशि को बिना अनुमति खर्च नहीं कर सकते। ऐसी व्यवस्था सिर्फ इसलिए की है,जिससे जरूरी कार्य होते रहें। जरूरत पर इस रकम को अन्य कार्यों में खर्च किया जा सके। वित्त विभाग ने स्पष्ट किया है कि विभागों को किसी भी नए खर्चों के लिए राशि नहीं मिलेगी। प्रदेश सरकार पर बजट से ज्यादा कर्ज है। खर्च बढ़ने पर सरकार ने गैर जरूरी खर्च में कटौती की है, पर खास सुधार नहीं हुआ। चालू वित्तीय वर्ष में राज्य का बजट 3.14 लाख करोड़ है, जबकि कर्ज 3.31 लाख करोड़ है। खर्च पूरा करने इस बार सरकार 17 बार तो चालू वित्तीय वर्ष 8 बार कर्ज लिया है।
कर्ज में दबा प्रदेश
प्रदेश सरकार के कर्ज का बोझ उसके सालाना खर्च से भी ज्यादा यानी करीब 3.31 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा हो गया है। इसमें मूलधन के अलावा करीब 25 हजार करोड़ रुपए सालाना ब्याज देना पड़ रहा है। इस वित्तीय वर्ष में सरकार का राजस्व आय दो लाख तीन हजार करोड़ रुपए के आसपास है, जबकि व्यय दो लाख दो हजार करोड़ रुपए। ऐसे में नए सीएम के सामने घोषणाओं को पूरा करने के साथ ही कर्ज को चुकाना भी एक बड़ी चुनौती होगी।

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