जांच शुरू होते ही करोड़ों रुपए की गड़बड़ी की फाइल हुई गायब

जिला अस्पताल सीहोर

भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदीबिच्छू डॉट कॉम। जिला अस्पताल सीहोर में अंधत्व निवारण को लेकर किए गए करोड़ों रुपए के गड़बड़झाले में अब नया मोड़ आ गया है। इस मामले में अब जिला स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय द्वार संबंधित फाइल ही गुम हो जाना बताया जा रहा है। दरअसल इस मामले की जांच शुरू होते ही जब जांच एजेंसी ईओडब्ल्यू ने उससे जुडेÞ दस्तावेज तलब किए जो जवाब में कह दिया गया है कि वह फाइल ही गायब हो गई है।
यह पूरा गड़बड़झाला जब किया गया था, जब जिले के स्वास्थ्य महकमे की कमान अब भोपाल जिले की कमान संभाल रहे प्रभाकर तिवारी के पास थी।
इस मामले का खुलासा होने के बाद सरकार ने उन पर कार्रवाई तो नहीं की बल्कि उन्हें भोपाल जैसे जिले की कमान देकर उपकृत कर दिया। यह मामला करीब चार साल पुराना है। इस मामले की खास बात यह है कि इस फाइल से जुड़े सभी दस्तावेज शिकायत होने के पहले आरटीआई के तहत एक एक्टविस्ट को प्रदान किए गए हैं। अब ईओडब्ल्यू को विभाग द्वारा दी गई फाइल (नस्ती) दफ्तर से गायब होने की जानकारी गले नहीं उतर रही है। यही वजह है कि  ईओडब्ल्यू ने इस मामले में संबंधित कार्यालय को लिखा है कि फाइल गायब नहीं हुई है की गई है।  दरअसल जिला मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय सीहोर द्वारा 2017 में सामग्री खरीदी के लिए एक टेंडर जारी किया गया था। जिसमें अंधत्व निवारण के लिए चश्मा, दवा उपकरण और अस्पताल में उपयोग होने वाली अन्य सामग्री की खरीदी की जानी थी। इसके लिए कई फर्म ने टेंडर डाले थे। जिनमें एक फर्म पर्व इंटरप्राइजेज भी थी।
अपने चहेते को यह काम दिलाने के लिए टेंडर बुलाने के बाद दस्तावेजों में हेराफेरी की गई और फर्जी दस्तावेजों के आधार पर सामग्री की आपूर्ति का काम मुकेश मालवीय की संजय मेडिकल के नाम से संचालित फर्म को दे दिया गया। खास बात यह है कि सामग्री की आपूर्ति का काम संजय मेडिकल को दिया गया और उसमें डीडी डिमांड ड्राफ्ट पर्व इंटरप्राइजेज का उपयोग किया गया। इसमें पर्व इंटरप्राइजेज की प्रोपराइटर की सहमति तक भी नहीं ली गई थी। यह खरीदी बाजार भाव से सीएमएचओ सीहोर ने 300 गुना से अधिक ज्यादा दर पर की थी। इसका खुलासा नवंबर 2018 में हुए ऑडिट की तैयार की गई रिपोर्ट में हुआ था। इसके बाद योगेंद्र सिंह तोमर ने आरटीआई के तहत इसकी पूरी जानकारी मांगी थी, जिसे तत्कालीन सीएमएचओ प्रभाकर तिवारी ने 27 अगस्त 2019 को उपलब्ध कराए थे। इस मामले में नया मोड़ तब आया जब इस घोटाले की शिकायत ईओडब्ल्यू में होने के बाद प्रकरण की जांच शुरू की गई तो विभाग से वह दस्तावेज मांगे गए जो सीएमएचओ ने आरटीआई के तहत दिए थे, लेकिन कार्यालय द्वारा लिखित में कह दिया गया कि दवा और अन्य उपकरण की खरीदी से जुड़ी फाइल ही गायब हो गई है।
जांच एजेंसी इससे इत्तेफाक नहीं रखती है जिसकी वजह से जांच एजेंसी ने एफआईआर में साफ तौर पर लिखा है कि नस्तियां गायब कर दी गई हैं। बड़ा सवाल यह है कि अगर फाइल गुम हुई तो इस मामले में कार्यालय द्वारा जिम्मेदारी तय कर सीएमएचओ ने फाइल गुमने की एफआईआर अब तक नहीं कराई है। नियमानुसार अगर कोई सरकारी दस्तावेज गायब होता है अथवा चोरी हो जाता है तो उसकी एफआईआर कराई जानी चाहिए। अब जांच एजेंसी इस मामले में संबंधित जिम्मेदारों को पूछताछ के लिए नोटिस जारी कर तलब कर पूछताछ करने की तैयारी कर रही है।

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