- अब समय सीमा में पूरी होगी लंबित विभागीय जांच
- विनोद उपाध्याय
मध्य प्रदेश में रिटायर्ड भ्रष्ट अफसरों की फाइल एक बार फिर खुलने जा रही है। जीरो टॉलरेंस की नीति पर मोहन सरकार ने एक और बड़ा फैसला लेते हुए इसके लिए चार सदस्यीय टीम गठित कर दी है। सामान्य प्रशासन विभाग में जिन चार सीनियर आईएएस अधिकारियों की कमेटी बनाई है, उसने काम करना भी शुरू कर दिया है। यह कमेटी विभागीय जांच पर फैसला लेने के साथ अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए सिफारिश करेगी। सामान्य प्रशासन विभाग की तरफ से गठित कमेटी में विभाग के अपर मुख्य सचिव विनोद कुमार, नर्मदा घाटी विकास विभाग के अपर प्रमुख सचिव डॉ. राजेश राजौरा, राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव निकुंज श्रीवास्तव, विधि विभाग के सचिव उमेश पांडव को सदस्य बनाया गया है।
दरअसल, डॉ. मोहन यादव ने जब से मुख्यमंत्री पद संभाला है, उनका फोकस सुशासन पर है। इसके लिए उन्होंने ताबड़तोड़ फैसले लेकर अफसरों को संकेत दे दिया है कि न कोताही, न लापरवाही और न ही भ्रष्टाचार बर्दाश्त किया जाएगा। वहीं राज्य शासन रिटायर्ड आईएएस अफसरों की विभागीय जांच समय सीमा में पूरी करने को लेकर गंभीर है। इसके लिए वरिष्ठ अफसरों की जो कमेटी बनाई गई है, उसने भी अपना काम संभाल लिया है। मंत्रालय में मंगलवार को कमेटी की पहली बैठक आयोजित की गई। बैठक में रिटायर्ड अफसरों की लंबित विभागीय जांचों की संख्या और जांच कम से कम अवधि में पूरी करने को लेकर नियम-प्रक्रिया तैयार करने पर चर्चा हुई।
बड़ी संख्या में जांच लंबित
जानकारी के मुताबिक प्रदेश में बड़ी संख्या में आईएएस अफसरों पर विभागीय जांच लंबित हैं। अधिकतर मामले भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से जुड़े हैं। कई अधिकारी ऐसे हैं, जिनके रिटायर्ड होने के बाद भी उनकी विभागीय जांच पूरी नहीं हो पाई है। एक तरफ जहां जांच प्रचलित होने से रिटायर्ड आईएएस अफसरों का स्वत्वों का भुगतान अटका है, वहीं किसी अधिकारी के दोषी पाए जाने की स्थिति में उनसे रिकवरी अटकी है।
राज्य आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) सामान्यत: अफसरों पर भ्रष्टाचार के एक करोड़ से कम के मामलों की जांच नहीं करता और संबंधित विभाग को प्रकरण जांच के लिए सौंप दिया जाता है। देखने में आता है कि अधिकारियों के दबाव में संबंधित विभाग जांच संबंधी प्रकरण को ठंडे बस्ते में डाल देते हैं। अधिकारियों के रिटायर्ड होने के बाद भी इन जांच प्रकरणों का निराकरण नहीं हो पाता। मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि यदि जांच में कोई भी रिटायर्ड अधिकारी दोषी पाया जाता है, तो उनके विरुद्ध कार्रवाई प्रस्तावित करने के लिए केंद्र सरकार से अनुमति लेना होगी। चूंकि मप्र सरकार भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति पर चल रही है। ऐसे में यदि जांच में कोई रिटायर्ड अधिकारी दोषी पाया जाता है, सरकार उसके खिलाफ सख्त फैसला ले सकती है।
आज कैबिनेट में एक दर्जन प्रस्तावों को मिलेगी हरी झंडी
आज मंत्रालय में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की अध्यक्षता में कैबिनेट की बैठक होगी। बैठक में लगभग एक दर्जन प्रस्ताव निर्णय के लिए पेश किये जा सकते हैं। अंजू सिंह बघेल पर कटनी में कलेक्टर रहते हुए सीलिंग की जमीन में गड़बड़ी के आरोप लगने के बाद उन्हें राज्य शासन ने निलंबित कर दिया था। विभागीय जांच पूरी होने से पहले वे सेवानिवृत्त हो गई थी। इसके बाद विभागीय जांच पूरी होने पर यह मामला पांच वर्ष (2018 से) से अभियोजन स्वीकृति के लिए केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय (डीओपीटी) के पास लंबित था। डीओपीटी ने गत जुलाई में मामले में अभियोजन की स्वीकृति दी थी। ऐसे ही एमएस भिलाला पर रतलाम में कलेक्टर रहते हुए क्रय नियमों के विरुद्ध खरीदी का आरोप है। यह मामला सामने आने के बाद उन्हें हटा भी दिया गया था। विभागीय जांच पूरी होने के पहले ही वे सेवानिवृत्त हो गए थे।