मप्र में रिश्वत की रकम के लिए सालों तक भटकते हैं फरियादी

फरियादी
  • प्रदेश में अब तक नहीं बनाया सरकार ने रिवॉल्विंग फंड

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश की जनता लगातार बढ़ रहे भ्रष्टाचार को लेकर हलकान बनी हुई है, लेकिन शासन व प्रशासन अपनी ही मस्ती में है। यही वजह है कि इस पर काबू नहीं पाया जा सक पा रहा है।
इन मामलों में कार्रवाई करने वाली जांच एजेंसियों पर तो पहले ही तमाम तरह की बंदिशे लगाई जा चुकी हैं और अब तक प्रदेश सरकार इसके लिए जरुरी  रिवॉल्विंग फंड  तक नहीं बना सकी है। दरअसल यह वो फंड होता है, जिसका उपयोग फरियादी द्वारा बतौर रिश्वत के तौर पर किया जाता है। इसकी वजह से फरियादी को जेब से राशि नहीं देनी पड़ती है। इस फंड के अभाव में प्रदेश के लोगों की करीब एक करोड़ की राशि कई सालों से फंसी हुई है। इनमें से कई फरियादी ने तो इस राशि का इंतजाम उधारी लेकर तक किया हुआ है। गौरतलब है कि राजस्थान व हरियाणा जैसे राज्यों में इस फंड की व्यवस्था की जा चुकी है। यही नहीं रिश्वत और भ्रष्टाचार जैसे मामलों में प्रदेश में दिखावे के लिए सिर्फ छोटे कर्मचारियों को ही निशाना बनाया जाता है। शायद यही वजह है कि भ्रष्टाचार के मामलों में रोक नहीं लग पा रही है। प्रदेश की दोनों जांच एजेंसियों में से लोकायुक्त तो अधिकांश मामलों में रिश्वत लेते कर्मचारियों को ही पकड़ने का काम बीते कुछ सालों से कर रही है। यही नहीं पहले यह ऐजेंसी छापा मारने में बेहद चर्चा में रहती रही है , लेकिन बीते कुछ सालों से छापे की कार्रवाई बेहद कम हो गई है। इसके उलट आर्थिक अपराध ब्यूरो यानी की ईओडब्ल्यू ने छापे के साथ ही रिश्वत के मामलों में अच्छी खासी तेजी लाई है।
फंड का यह है उपयोग
दरअसल इस तरह के फंड की व्यवस्था लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू द्वारा रिश्वत देने वाले फरियादी के लिए की जाती है। इस राशि का उपयोग फरियादी ट्रेप के लिए रिश्वत देने में उपयोग करता है। यह राशि बाद में कोर्ट से आरोपी को सजा मिलने के बाद रिलीज कर दी जाती है। इस तरह  का फंड प्रदेश में न होने की वजह से करीब चार  सैकड़ा लोगों के एक करोड़ से अधिक अभी भी कई सालों से फंसे हुए हैं। फरियादियों द्वारा रिश्वतखोरों को दी गई रकम जल्द वापस मिल सके, इसके लिए राजस्थान और हरियाणा सरकार ने हाल ही में एक करोड़ का रिवॉल्विंग फंड की व्यवस्था की हुई है। अकेले इंदौर, सागर, रीवा, जबलपुर, भोपाल लोकायुक्त में ही फरियादियों के एक करोड़ से ज्यादा की रकम मालखानों में रखी हुई है।
दरअसल रिश्वतखोरों को रंगे हाथों पकड़वाने (ट्रैप) के लिए रिश्वत की राशि का इंतजाम फरियादी को करना पड़ता है। इन नोटों में विभाग केमिकल लगाता है। जब्ती के बाद सबूत के तौर पर आरोपी के हाथ धुलवाए जाते हैं। केमिकल लगे नोटों के कारण पानी रंगीन हो जाता है। जब तक मुकदमा चलता है यही नोट सबूत के तौर पर सरकारी माल खाने में जमा रहते हैं। ईओडब्ल्यू के पास भी 15 से ज्यादा फरियादियों के करीब 4 लाख रुपए रखे हुए हैं।
दो साल की जगह  लग जाते हैं कई साल
निचली अदालतों में इस तरह के मामलों में सुनवाई 2 साल में पूरी करने का प्रावधान है। पर सामान्य तौर पर सुनवाई पूरी होने में इससे दोगुना तक समय लगता है। इसके बाद कई बार मामला हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट तक चला जाता है, जिसकी वजह से मामले के निपटने में अधिक समय लगता है। उसके बाद ही कहीं जाकर फरियादी को उसका पैसा मिल पता है। इस बीच फरियादी को ब्याज का नुकसान भी उठाना पड़ता है। मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार अधिनियम में कनविक्शन रेट देश में सबसे ज्यादा लगभग 60 प्रतिशत है। लेकिन एनसीआरबी के ताजा आंकड़ों के अनुसार अदालतों में 608 मामलों में से सिर्फ 39 में ही फैसला हो पाया। उसमें से भी 22 मामलों में ही सजा हुई। इंदौर में भी लगभग 62 मामले लंबित हैं। 2021-22 में सिर्फ 15 मामलों का निपटारा हुआ। इंदौर में कोऑपरेटिव बैंक घोटाले का मामला तो 17 साल से निचली अदालत में ही चल रहा है। इस मामले में पूर्व मंत्री रामेश्वर पटेल सहित कई आरोपियों की तो अब मौत भी हो चुकी है।
पिता की मौत के बाद बेटे को करनी पड़ रही कवायद
प्रदेश में हालात यह हैं कि सनावद में 2015 मैं नरेंद्र शर्मा को 10 लाख की रिश्वत लेते पकड़ा गया था। मुकदमे के दौरान ही फरियादी प्रवीण सिंह सोलंकी की मौत हो गई। अब रिश्वत में दी गई रकम पाने के लिए उनके बेटे भानु प्रताप सिंह को कवायद करनी पड़ रही है। इसी तरह का मामला धार के एक आदिवासी व्यक्ति का है। उसने  पटवारी को ट्रैप कराने के लिए 50 हजार उधार लिए थे। आरोपी पटवारी की तो कोविड  के समय मौत हो गई , लेकिन फरियादी को रकम वापस नहीं मिली , जिसकी वजह से वह ब्याज भर रहा है।

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