छोटे लोन लेने वाले किसान भी हुए डिफॉल्टर

डिफॉल्टर

-कोर बैंकिंग ने बढ़ाई किसानों की परेशानी
-केसीसी के जरिए लोन ने मिलने से किसान साहूकारों से कर्ज लेने को मजबूर
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम।
सहकारी बैंक और पैक्स कोर बैंकिंग सॉल्यूशन (सीबीएस) से जुड़ने के बाद छोटे-छोटे लोन लेने वाले किसानों के सामने समस्या खड़ी हो गई है। क्योंकि अब इन किसानों को डिफॉल्टर घोषित कर दिया गया है जिससे वे केसीसी के जरिए लोन नहीं ले पा रहे हैं। इससे मजबूर होकर किसान खेती-किसानी के लिए साहूकारों से कर्ज लेने को मजबूर हैं। जानकारी के अनुसार प्रदेश की प्राथमिक कृषि साख समितियों (पैक्स) ने मप्र के 20 लाख से अधिक किसानों के 30 से 50 हजार रुपए तक के कर्ज भी उनके जमीन के खसरों पर ऑनलाइन चढ़ा दिए हैं। नतीजतन ये किसान अगली फसल के लिए किसान क्रेडिट कार्ड के जरिए न कर्ज ले पा रहे हैं और न ही इसकी लिमिट बढ़ा पा रहे हैं। गौरतलब है कि पैक्स किसानों को 3 लाख रुपए तक के कर्ज 0 फीसदी ब्याज पर देते हैं। वास्तव यह कर्ज 11 फीसदी के बैस रेट पर होते हैं। लेकिन इसमें मप्र सरकार 6 प्रतिशत और शेष 5 प्रतिशत का ब्याज अनुदान केंद्र सरकार देती है। इसलिए किसान को यह पूरा कर्ज 0 फीसदी ब्याज पर मिल जाता है।
कोर बैंकिंग ने बढ़ाई परेशानी
अब तक डिजिटल चार्ज करने का काम केवल सरकारी और निजी क्षेत्र के वाणिज्यिक बैंक ही कर रहे थे। सहकारी बैंक और पैक्स कोर बैंकिंग सॉल्यूशन (सीबीएस) से जुड़े नहीं थे इसलिए उनके पास चार्ज करने की सुविधा ही नहीं थी। लेकिन पिछले साल कोर बैंकिंग से जुड़ने के बाद सहकारी बैंक और समितियों में भी खसरों पर अपना बकाया चढ़ाना शुरू कर दिया। तहसीलदार और पटवारी इनके लिए ज्यादा तत्परता से काम कर रहे हैं, क्योंकि पैक्स भी जिला प्रशासन के अंतर्गत आते हैं। गौरतलब है कि प्रदेश में किसान क्रेडिट कार्ड के जरिए 94 हजार करोड़ का कर्ज दिया गया है। वहीं किसानों को बैंकों द्वारा 1.26 लाख करोड़ रुपए बांटे के कुल कर्ज दिए गए हैं। वहींं 39 लाख किसानों को सहकारी समितियों द्वारा 35 हजार करोड़ रुपए के कर्ज दिए गए हैं। जबकि 20 लाख किसानों का औसतन कर्ज 20 से 50 हजार के बीच का है।
समितियों से मांगा जा रहा नोड्यूज
उल्लेखनीय है कि आरबीआई और केंद्र सरकार की गाइडलाइन के तहत 1.60 लाख रुपए तक के कर्ज के लिए किसी गारंटी की जरूरत ही नहीं है। साथ ही समितियां खुद अधिकतम 3 लाख रुपए का कर्ज देती हैं। ऐसे में छोटे-छोटे कर्जों के लिए खसरे ऑनलाइन बंधक बनाए जाने के बाद जब किसान वाणिज्यिक बैंकों के पास कर्ज के लिए जा रहे हैं तो बैंक उन्हें समितियों से नो ड्यूज मांग रहे हैं। रबी की बुवाई में बड़ी संख्या में किसानों को साहूकारों से कर्ज लेकर बोवनी करनी पड़ गई।
डिजिटलाइजेशन से सारी हकीकत आ जाती है सामने
चार साल पहले मप्र में भू अभिलेख राजस्व विभाग ने प्रदेश के सारी कृषि योग्य जमीन का डिजिटलाइजेशन कर दिया है। इसके बाद जब बैंक कर्ज देते हैं तो यह सुनिश्चित करते हैं कि उसी खसरे पर दूसरे बैंक कर्ज न दे दें। पटवारी और तहसीलदार की मदद से उस जमीन को चार्ज कर देते हैं। किसान जब दूसरे बैंक के पास कर्ज लेने जाता है तो वह बैंक ऑनलाइन यह पता कर लेते हैं कि उसने किस खसरे पर किस बैंक से कितना कर्ज लिया है।

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