- सहकारिता विभाग की लचर व्यवस्था …
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मानसून की दस्तक से किसानों ने अपने खेतों में बोवनी का काम भी शुरू कर दिया है। किसान सहकारी समितियों की जगह बाजारों से ही खाद और बीज खरीदने को मजबूर हो गए हैं। समितियों से किसानों को खाद और बीज उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। दरअसल सहकारिता विभाग की लचर व्यवस्था के कारण समितियों को समय पर और पर्याप्त खाद उपलब्ध नहीं कराया गया।
ग्रामीण क्षेत्र के किसान खेती-किसानी छोड़कर सोसायटी में खाद के लिए भटक रहे हैं। खरीफ सीजन में जितनी आवश्यकता होती हैं, उतना खाद उपलब्ध नहीं हो रहा है। ऐसे में महंगा बीज खरीद कर बोने के बाद किसानों चितिंत हो रहे हैं। मक्का, कपास, गन्ना, पपीता जैसी फसल बोने के बाद अब किसान पोटॉश, डीएपी, और दानेदार खाद के लिए भटक रहे हैं। कृषि विभाग से मिली जानकारी के अनुसार मालवा-निमाड़ में 50 फीसदी से ज्यादा बोवनी हो चुकी है। बुंदेलखंड, विन्ध्य और चंबल- ग्वालियर संभागों में बोवनी की गति धीमी है। इन्हीं क्षेत्रों में खाद की डिमांड ज्यादा है लेकिन किसानों को परेशान होना पड़ रहा है। अप्रैल माह में किसानों को खाद नहीं मिलने से निजी दुकानों से महंगे दामों पर खरीदना पड़ा। इस सबके पीछे सहकारिता विभाग की लचर व्यवस्था सामने आई है।
डिफॉल्टर समितियों को देर से मिली खाद
जानकारी मिली है कि समितियों को अप्रैल में उठाव करना था परन्तु, कई सहकारी समितियां डिफॉल्टर हो चुकी हैं। इससे उन्हें खरीफ फसल के लिए खाद की उपलब्धता नहीं कराई गई। बाद में कृषि उत्पादन आयुक्त ने समीक्षा बैठक में निर्देश दिए कि हर डिफॉल्टर समिति को कम से कम एक ट्रक खाद उपलब्ध कराई जाए ,जिससे वे किसानों को बेचकर अपना घाटा पूरा कर सकें। इसके बाद समितियों में खाद पहुंचाने का काम हुआ। संयुक्त आयुक्त सहकारिता बीएस शुक्ला का कहना है कि प्रदेश में खाद पर्याप्त है। डिफॉल्टर समितियों को अलग से एक ट्रक खाद उपलब्ध कराने के निर्णय के बाद किसानों को समस्याएं नहीं आई हैं। हम बराबर निगरानी कर रहे हैं।
रकबा बढ़ा, व्यवस्था नहीं
कृषि विभाग की जानकारी के अनुसार इस साल 147 लाख हेक्टेयर में खरीफ फसल की बोवनी का टारगेट है। यह पिछले साल से दो लाख हेक्टेयर अधिक है। इस मान से विभाग ने यूरिया और डीएपी की मांग केंद्र सरकार से की है। केंद्र से मांग से ज्यादा खाद उपलब्ध करा दी है। कृषि विभाग ने खाद मंगाकर गोदामों में रख दिया परन्तु उठाव में देरी होने से कई इलाकों में हंगामा हो गया। गुना जिले में तो नारेबाजी और प्रदर्शन करने तक की नौबत आ गई। किसानों का आरोप है कि उन्हें अधिक कीमत पर खाद खरीदना पड़ रही है। कृषि विभाग के अपर संचालक बीएम सहारे का कहना है कि इस साल प्रदेश में पिछले साल से दो लाख हेक्टेयर अधिक, 147 लाख हेक्टेयर में खरीफ फसल बोवनी कालक्ष्य रखा है। खाद पर्याप्त है। दलहन और तिलहन वाले खेतों के लिए यूरिया की ज्यादा जरूरत होती है। इससे पौधों में चमक आती है। इसी तरह धान, दलहन और तिलहन के लिए डीएपी ज्यादा उपयोगी होती है। इससे पौधों का अंकुरण अच्छा होता है। धान वाले खेतों में बोवनी और उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए एनपीके यानी नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की ज्यादा जरूरत होती है। इसी तरह सुपर फास्फेट का उपयोग भी धान वाले खेतों में उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए किया जाता है।
सोयाबीन का प्रमाणित बीज नहीं
खरीफ फसलों की बोवनी शुरू हो चुकी है। इसके बाद भी बीज निगम और कृषि विभाग के पास सोयाबीन का प्रमाणित बीज उपलब्ध नहीं है। किसान सोयाबीन का प्रमाणित बीज खरीदने के लिए चक्कर लगा रहे हैं लेकिन उन्हें बीज उपलब्ध नहीं हो रहा है। बाजार में जो बीज मिल रहा है, वह अमानक स्तर का है। अमानक बीज भी 10 हजार रुपए क्विंटल तक बिक रहा है। अमानक बीज के उगने की कोई गारंटी नहीं रहती है। ऐसे में किसानों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। किसानों की चिंता यह है कि समय पर बीज नहीं मिला तो आखिर खरीफ फसलों की बोवनी कैसे करेंगे। किसानों को प्रमाणित बीज उपलब्ध करवाने के लिए सरकार ने बीज ग्राम योजना और नेशनल फूड सिक्योरिटी मिशन योजना लागू की है। लेकिन इन दोनों योजनाओं का लाभ भी किसानों को नहीं मिल पा रहा है। बीज ग्राम योजना में कुछ चुनिंदा किसानों को प्रमाणित बीज बनाकर किसानों को दिया जाता है ताकि अगली बार वे 10 अन्य किसानों को प्रमाणित बीज उपलब्ध करवाएं। लेकिन वास्तव में ऐसा हो नहीं रहा है। किसानों का कहना है कि हमें इस योजना का लाभ नहीं मिल रहा है।