- अब तक चुनाव प्रचार में नहीं दिखे साथ…
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। दशकों बाद राजगढ़ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने अपना पूरा दमखम जीत के लिए लगा रखा है। कई चुनाव बाद राजगढ़ में भाजपा और कांग्रेस के बीच जोरदार मुकाबले की स्थिति दिख रही है। ऐसे में दिग्विजय सिंह मजबूत स्थिति में नजर आ रहे हैं। लेकिन जिस तरह राघौगढ़ राजपरिवार का पारिवारिक कलह देखने को मिल रहा है उससे दिग्गी राजा मुश्किल में पड़ सकते हैं। गौरतलब है कि मप्र की सियासत में राघौगढ़ रियासत का दबदबा माना जाता है। दिग्विजय सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। अब वे राज्यसभा सांसद हैं। दिग्विजय के बेटे जयवर्धन सिंह राघौगढ़ से विधायक हैं और छोटे भाई लक्ष्मण सिंह चाचौड़ा से विधायक रहे हैं। लेकिन राघौगढ़ राजपरिवार में दरार पड़ती दिखाई दे रही है, क्योंकि दिग्विजय सिंह को उनके छोटे भाई लक्ष्मण सिंह लगातार घेरते रहे हैं।
दिग्विजय सिंह के प्रचार में यूं तो सैकड़ों समर्थक जुटे हैं, लेकिन परिवार के सदस्यों में विधायक बेटा जयवर्धन सिंह ताबड़तोड़ सभाएं कर रहे हैं। पत्नी अमृता सिंह भी जनसंपर्क में उतर आई हैं। वहीं दादा के लिए पोता भी पिता जयवर्धन के साथ लोगों के बीच जनसंपर्क में पहुंच जाते हैं।
चुनावी प्रचार से लक्ष्मण सिंह नदारद
राघौगढ़ राजपरिवार के सदस्यों के बीच विधानसभा चुनाव के बाद उपजा मनमुटाव अब लोकसभा चुनाव में साफ दिखाई दे रहा है। राजगढ़ लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर बड़े भाई दिग्विजय सिंह चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन उनके प्रचार से छोटे भाई लक्ष्मण सिंह नदारद दिख रहे हैं। जो क्षेत्र में चर्चा का विषय बना है। लक्ष्मण सिंह की चुनाव में निष्क्रियता को दोनों भाइयों के बीच चल रहे मनमुटाव और पारिवारिक कलह से जोडक़र देखा जा रहा है? पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने पिछले महीने 31 मार्च को आगर जिले के नलखेड़ा में माता पूजन के बाद अपने प्रचार अभियान को शुरू कर दिया था। उन्होंने 8 दिन तक राजगढ़ लोकसभा क्षेत्र की सभी विधानसभा सीटों पर पदयात्रा निकाली थी, लेकिन लक्ष्मण सिंह एक भी दिन यात्रा में नहीं पहुंचे। न ही वे दिग्विजय सिंह की किसी चुनावी सभा या रैलियों में पहुंच रहे हैं। खास बात यह है कि चुनाव को लेकर वे सोशल मीडिया पर भी सक्रिय नहीं दिख रहे हैं। राजगढ़ संसदीय क्षेत्र में आम लोगों के बीच यह अब चर्चा का विषय बन चुका है कि आखिरी क्या कारण है कि लक्ष्मण सिंह बड़े भाई को जिताने के लिए प्रचार के लिए नहीं जा रहे हैं। इस संबंध में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता लक्ष्मण सिंह से दूरभाष पर चर्चा कराने की कोशिश की, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया। हालांकि गुना कांग्रेस जिलाध्यक्ष मेहरवान सिंह धाकड़ ने बताया कि लक्ष्मण सिंह जी पार्टी के प्रचार के लिए आ तो रहे हैं। आज ही वे कार्यक्रम में शामिल हुए थे। चाचौड़ा सीट से करीब 35 हजार मतों से विधानसभा चुनाव हारने के बाद लक्ष्मण सिंह ने बड़े भाई दिग्विजय सिंह को लेकर तीखी बयानबाजी की थी। बताते हैं कि हार की वजह से वे दिग्विजय सिंह से नाराज है। यही वजह है कि उन्होंने दिग्विजय सिंह पर गंभीर आरोप लगाए थे। खास बात यह है जिस चाचौड़ा विधानसभा सीट से लक्ष्मण सिंह भारी अंतर से हारे थे, वह सीट राजगढ़ लोकसभा क्षेत्र में भी आती है। ऐसे में दिग्विजय सिंह के सामने चाचौड़ा में बड़ी जीत दर्ज करने की चुनौती है।
कांटे का मुकाबला
राजगढ़ लोकसभा सीट पर मप्र के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह 33 साल बाद मैदान में उतरे हैं। उनके चुनाव लडऩे से चुनाव दिलचस्प हो गया है, वहीं भाजपा के लिए ये सीट चुनौती बनती जा रही है। राजगढ़, दिग्विजय का गढ़ है। भाजपा ने रोडमल नागर को फिर से टिकट दिया है, लेकिन उनके खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी का माहौल देखते हुए बीजेपी ने अपनी रणनीति बदल दी है। बीजेपी अब यहां पीएम मोदी की लोकप्रियता, राष्ट्रवाद, हिंदुत्व और राम मंदिर जैसे मुद्दों को आगे कर रही है। भाजपा की इस बदली हुई रणनीति को लेकर जानकार कहते हैं कि हिंदुत्व के मुद्दे पर भाजपा शुरू से ही दिग्विजय सिंह पर हमलावर रही है। ऐसा कर भाजपा दिग्विजय सिंह को हिंदू और राम मंदिर विरोधी बताने की कोशिश कर रही है। वहीं, कांग्रेस लाड़ली बहना को 3 हजार रु. देने और किसानों के समर्थन मूल्य को मुद्दा बना रही है। दिग्विजय सिंह भी चुनाव लड़ने की रस्म अदायगी नहीं कर रहे हैं। यही वजह है कि भाजपा उन्हें गंभीरता से ले रही है, लेकिन वो ऐसा जता नहीं रही है। इसलिए मुकाबला एकतरफा नहीं माना जा सकता है। दिग्विजय सिंह, भाजपा के हर उस मुद्दे का जवाब दे रहे हैं जो वो उठा रही है।