- रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के लिए में न तो जनता गंभीर है और न ही सरकार….
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। गर्मी आते ही राजधानी भोपाल में भूजल स्तर तेजी से नीचे चला जाता है और जल संकट बढ़ जाता है। गिरते भूजल स्तर को बनाए रखने में रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम कारगार तरीका है, लेकिन इस दिशा में न तो जनता गंभीर है और न ही सरकार। राजधानी के लगभग 75 फीसदी से ज्यादा भवनों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं लगे हैं। हैरत की बात तो यह है कि कोलार के गेहूं खेड़ा, पुलिस हाउसिंग कॉलोनी समेत उन क्षेत्रों के मकानों में भी सिस्टम नहीं है, जहां की आबादी ट्यूबवेल पर ही आश्रित है। गर्मी से पहले ही यहां पर पेयजल संकट खड़ा हो जाता है। गौरतलब है कि बीते कुछ वर्ष में शहर का दायरा काफी बढ़ गया है। कोलार, होशंगाबाद रोड, भोपाल-इंदौर रोड, विदिशा रोड, रायसेन रोड आदि क्षेत्रों में हजारों कॉलोनियां बस गई हैं। बिल्डरों ने कई गगनचुंबी इमारतें तान दीं तो दो-तीन मंजिला भवन भी बनाए हैं, लेकिन अधिकांश में पानी को सहेजने के लिए रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं लगाए। हां, कुछ कॉलोनी में लोग जागरूक हैं, जो खुद आगे आ रहे हैं। ऐसे लोग भी हैं, जो निगम से अनुमति तो लेते हैं, पर सिस्टम नहीं लगवाते। जल विशेषज्ञ का कहना है कि राजधानी के यदि सभी मकानों में रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लग जाता है तो गर्मी में राजधानीवासियों को पानी की किल्लत से नहीं जूझना पड़ेगा।
नियमों का पालन नहीं
पर्यावरण को बचाने के लिए बारिश का पानी सहेजने के लिए रूफ टॉप वॉटर हार्वेस्टिंग लगाना होगा, प्रत्येक बिल्डिंग परमिशन में पौधे लगाने अनिवार्य है, ऐसे कई नियम शासन ने बना रखे हैं। इन पर अमल कितना हुआ, यह देखने वाला कोई नहीं है। स्थिति यह है कि राजधानी के 75 फीसदी से अधिक मकानों में रूफ टॉप रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं लगा है। मकान या भवन निर्माण के दौरान पौधे लगाए या नहीं, बिल्डिंग परमिशन के इंजीनियर शायद ही यह कभी देखते हैं। नतीजा, बारिश का पानी बेकार जा रहा है और ग्रीन कवर लगातार कम हो रहा है। प्रदेश में बारिश के पानी से ग्राउंड वॉटर की रिचार्जिंग के लिए 140 वर्गमीटर या उससे अधिक बड़े भवनों के लिए वर्ष 2009 में रूफ टॉप हार्वेस्टिंग सिस्टम अनिवार्य किया गया था। इसके लिए बिल्डिंग परमिशन के साथ ही सात से 15 हजार रुपए तक सुरक्षा निधि तौर पर जमा कराया जा रहा था। सिस्टम लगाने के लिए दो विकल्प दिए गए थे। पहला यह कि भू स्वामी खुद भवन में यह लगाएगा। फिर निगम इंजीनियर निरीक्षण कर सिस्टम लगा होने की रिपोर्ट देंगे और सुरक्षा निधि लौटा दी जाएगी। दूसरा विकल्प यह दिया गया कि भू स्वामी के न लगाने पर निगम में एम्पैनल्ड विशेषज्ञों से सिस्टम इंस्टॉल कराया जाएगा। इसकी राशि सुरक्षा निधि में से काट ली जाएगी। वहीं नगरीय निकायों की ओर से जो बिल्डिंग परमिशन जारी की जाती है, उसमे मकान के क्षेत्रफल के हिसाब से पौधे लगाए जाने की शर्त होती है। इस पर अमल नहीं होता था। फिर जून, 2021 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसे अनिवार्य कर दिया। बिल्डर्स के लिए प्रोजेक्ट में बनाए जा रहे मकानों के बराबर पौधे लगाना जरूरी कर दिया गया। केंद्र व राज्य सरकार के हाउसिंग फॉर ऑल प्रोजेक्ट में भी इसे लागू किया गया। कुछ इंजीनियरों की मानें तो मकान या प्रोजेक्ट का पूर्णता प्रमाण पत्र जारी करते समय शायद ही यह कभी देखा जाता है कि पौधे लगाए या नहीं। खास तौर से छोटे मकानों में इस पर ध्यान नही जाता है और न ही इनके मालिक कंप्लीशन सर्टिफिकेट लेते है।
एक लाख से ज्यादा संपत्तियां बढ़ गई
राजधानी में वर्ष 2018-2023 की पांच साल की अवधि में ही एक लाख से ज्यादा संपत्तियां बढ़ गई। इस तरह कुल प्रॉपर्टी की संख्या बढ़ कर 5.11 लाख पहुंच गई। नगर निगम के अधिकारियों के मुताबिक हर साल तीन से चार हजार भवन अनुज्ञा जारी की जाती है। इस हिसाब से देखा जाए तो वॉटर हार्वेसस्टिंग का नियम लागू होने के करीब 15 साल में 45 से 60 हजार बिल्डिंग परमिशन दी गई। इसमे से अधिकांश 140 वर्गमीटर से ज्यादा की होती है। यानी इन मकानो, भवनों मे रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाना जरूरी है। ऐसा हो नहीं रहा है। भू स्वामी भवन अनुज्ञा के आवेदन के साथ सिस्टम के लिए सुरक्षा निधि जमा करा देते है, लेकिन लगवाता नहीं है। इसका अंदाजा ऐसे लगाया जा सकता है कि भोपाल समेत 16 नगर निगमो में सुरक्षा निधि का 150 करोड़ रुपए से अधिक जमा है।