- सरकार की घोषणा के बाद भी श्रम कानूनों का पालन नहीं
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। सितंबर 2023 में तत्कालीन सरकार ने आदेश जारी किया था कि ठेका एवं आउटसोर्स पर कार्यरत कर्मचारियों को श्रम कानूनों के प्रावधानों के तहत मानदेय और अन्य सुविधाएं दी जाएंगी। श्रम विभाग ने संबंध में सभी विभागों को आदेश जारी का इसकी सख्ती से पालन कराने को कहा था। लेकिन उसके बाद भी आउटसोर्स कर्मचारियों का शोषण रूकने का नाम नहीं ले रहा है। न तो नियत समय पर मानदेय का भुगतान किया जा रहा है और न ही साप्ताहिक अवकाश के दिन ड्यूटी कराने पर दोगुने मानदेय का भुगतान किया जा रहा है। नियमों को ताक पर रखकर उनसे जमकर बेगारी कराई जा रही है।
सरकार के आदेश के बाद भी प्रदेश के 2.5 लाख आउटसोर्स कर्मचारियों की सरकार की अनुकंपा का इंतजार है। नियमित कर्मचारियों की तरह मिलने वाली सुविधाओं से दूर इन कर्मचारियों को जहां कलेक्टर दर से भी कम वेतन दिया जा रहा है, वहीं सरकार के बजट से मजदूरी के नाम पर निकला पैसा अधिकारियों की सह पर कमीशन के रूप में कंपनियों की जेब में जा रहा है। दरअसल, सरकार ने कार्यालयों में आवश्यक मानव संसाधन मुहैया कराने का काम निजी कंपनियों को सौंप दिया है। सीधे नियुक्ति देने से बचने की इस प्रशासनिक रणनीति का खामियाजा आउटसोर्स कर्मचारियों को भुगतना पड़ रहा है।
नौकरी का कोई भरोसा नहीं
आउटसोर्स कर्मचारियों की नौकरी और जान कभी की जा सकती है। विभागों में कार्यरत कर्मचारियों की मृत्यु और जब-तब नौकरी से निकाले जाने की घटनाएं यही बताती हंै। आंकलन इसी से किया जा सकता है कि विद्युत वितरण कंपनियों में काम करते हुए मात्र 40 दिनों में तीन से अधिक कर्मचारी जहां अलग-अलग दुर्घटनाओं में अपनी जान गवां चुके हैं। वहीं ग्वालियर नगर निगम में रखे गए 58 आउटसोर्स कर्मचारियों को नियोक्ता कंपनी राज सिक्योरिटी एजेंसी एक झटके में बाहर का रास्ता दिखा चुकी है। आउटसोर्स कर्मचारियों की मौजूदा स्थिति को देखते हुए हालांकि समय-समय पर कर्मचारी संगठन सरकार को चेताते रहे हैं, लेकिन अब भारतीय मजदूर संघ ने भी इस मामले में गंभीरता दिखाई है। उज्जैन में आज से आयोजित संघ के दो दिवसीय 23 वें त्रैवार्षिक सम्मेलन में यह मुख्य मुद्दा होगा। संगठन के पदाधिकारियों की माने तो इसके अलावा संविदा कर्मचारियों को लेकर चुनाव से पहले सरकार द्वारा बनाई गई नीति को लागू कराने को लेकर भी विमर्श किया जाएगा। कर्मचारी संगठनों की मांग है कि विभागों में कार्यरत आउटसोर्स कर्मचारियों की नियुक्ति कंपनी स्तर पर विद्युत के मामले में कंपनी की सोसायटी/संस्था में मर्ज की जाए। जिससे कंपनी का अनावश्यक व्यय बचेगा एवं कर्मचारियों की वेतन विसंगति व उन्हें अन्य सुविधाएं भी सुचारू रूप से मिलने लगेगी। मप एनएचएम आउटसोर्स कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष कोमल सिंह संविदा एवं ठेका श्रमिक कर्मचारी संघ इंटक संविदा कर्मचारियों को एनएचएम ने आउटसोर्स में कर दिया। समय पर वेतन नहीं मिलता और मांग करने पर नौकरी से निकाल दिया जाता है। कई बार ज्ञापन, प्रदर्शन किये गए, लेकिन सरकार ने ढाई लाख कर्मचारियों के हितों को दरकिनार ही किया है।
कलेक्टर दर से कम भुगतान
प्रदेश में ढाई लाख से अधिक संख्या में मौजूद यह श्रमिक कलेक्टर दर से भी कम वेतन पर काम करने को मजबूर है। जबकि सरकार इनके परिश्रमिक के नाम पर कंपनियों को करोड़ों रुपये का भुगतान प्रतिमाह करती है। बावजूद इसके इनकी मजदूरी के कमीशन पर फलने-फूलने वाली कंपनियों पर लगाम कसने की जरूरत अब तक नहीं समझी गई। वह भी तब जबकि मनमानी और महीनों वेतन लंबित रखने की शिकायतें बीते दिनों में बढ़ी हैं। सरकार के पास आउटसोर्स कर्मचारियों का हर तरह से शोषण किए जाने की शिकायतें सामने आ रही हैं। उनसे ड्यूटी के निर्धारित घंटों से ज्यादा काम कराया जा रहा है, उन्हें मनमर्जी से मानदेय दिया जाता है, कभी भी नौकरी से निकाल दिया जाता है। न तो उनका पीएफ काटा जाता है और न ही उन्हें ओवरटाइम व साप्ताहिक अवकाश दिया जाता है। हद तो यह है कि सरकार द्वारा आउटसोर्स कर्मचारियों के लिये मंजूर पारिश्रमिक का करीब 26 प्रतिशत राशि नियोक्ता कंपनी मानव संसाधन मुहैया कराने के नाम पर बतौर कमीशन हड़प लेती है। मप्र वेयर हाउसिंग कार्पोरेशन कर्मचारियों के मामले में यह सामने भी आ चुका है। संविदा से हटाते हुए आउटसोर्स के 2200 कर्मचारियों के पारिश्रमिक के लिये प्रबंधन ने निजी एजेंसी आरबी एसोशिएट्स को 13000 रुपये प्रति कर्मचारी के मान से भुगतान तय किया है। जबकि कर्मचारियों को मात्र 8400 रुपये प्रति माह दिये जा रहे हैं। इस तरह प्रति कर्मचारी 3560 रुपए कंपनी को कमीशन के रूप में जाने लगा है। यह राशि माह में 78.32 लाख रूपये तक पहुंच जाती है। जबकि सीधे भुगतान की व्यवस्था में इतनी ही राशि पर 928 कर्मचारी और रखे जा सकते हैं।