- 2 लाख 53 हजार करोड़ रुपए के कर्ज में डूब चुकी है सरकार
भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र की राज्य सरकार की माली हालत बेहद खराब नी हुई है। यही वजह है कि सरकार साल दर साल तेजी से कर्ज ले रही है। हालात अब यह बन चुके हैं कि बीते तीन सालों से सरकार द्वारा हर साल लगभग औसतन रुप से 25 हजार करोड़ रुपए का कर्ज लिया जा रहा है। इसकी वजह से प्रदेश सरकार पर अब तक 2 लाख 53 हजार करोड़ से अधिक का कर्ज हो चुका है। अगर इस कर्ज को आबादी के हिसाब से देखा जाए तो प्रदेश के हर व्यक्ति पर लगभग 36 हजार रुपए का कर्ज हो चुका है। वर्तमान में कर्ज का आंकड़ा अब सरकार के सालाना बजट से अधिक हो चुका है। इसके बाद भी अब सरकार इस वित्त वर्ष में पांचवीं बार नया कर्ज हालही में ले चुकी है।
इस बार सरकार द्वारा दो हजार करोड़ का नया कर्ज लिया गया है, जिसकी अवधि 20 साल की है। यह कर्ज बॉण्ड के माध्यम से लिया गया है। अगर विशेषज्ञों की माने तो लगातार कर्ज बढ़ने से योजनाओं पर इसका असर पड़ता है। बेहतर यह है कि सरकार अपनी आय बढ़ाने पर प्रयास करे, जिससे की अधिक कर्ज लेने की जरूरत न पड़े। यह बात अलग है कि कर्ज लेने के मामले में सरकार का दावा है कि कर्ज विकास कामों के लिए लिया जा रहा है। इस साल अब तक सरकार ने सर्वाधिक चार हजार करोड़ रुपए सिंतबर माह में दो बार में लिया है। इसके अलावा दो हजार करोड़ रुपए जुलाई और इतना ही कर्ज नवंबर में लिया जा चुका है। गौरतलब है कि केंद्रीय बजट में राज्यों के कर्ज की सीमा को बढ़ाए जाने की वजह से मध्यप्रदेश को अब राज्य सकल घरेलू उत्पाद यानि की जीडीपी का फीसदी तक तक कर्ज लेने की पात्रता मिली हुई है। इस प्रावधान से मप्र सरकार को इस वित्तीय वर्ष 2021-22 में 13 हजार करोड़ रुपए का अतिरिक्त कर्ज बाजार से लेने की पात्रता मिली हुई है। इसमें शर्त एक ही है कि यह कर्ज सिर्फ विकास कार्यों के लिए ही लिया जा सकता है। दरअसल इसके पहले तक कर्ज की सीमा 3 फीसदी थी। इस हिसाब से राज्य सरकार अब तक अधिकतम करीब 24 हजार करोड़ रुपए तक सालाना कर्ज ले सकती थी, लेकिन अब यह बढ़कर 37 हजार करोड़ रुपए है। फिलहाल प्रदेश सरकार ने जो दो हजार करोड़ का नया कर्ज लिया है उसकी अवधि 20 साल होने की वजह से इसका भुगतान 2042 में करना होगा। इसके लिए रिजर्व बैंक के मुंबई स्थित कार्यालय के माध्यम से निविदा आमंत्रित की गई थीं।
आय कम और खर्च अधिक
दरअसल राज्य के खजाने की आर्थिक हालत बीते कई सालों से खराब बनी हुई है। इसकी बड़ी वजह है आर्थिक कुप्रबंधन। इस बीच कोरोना महामारी ने खराब हालात को बेहद खराब स्थिति में पहुंचा दिया है। लॉकडाउन की वजह से तो प्रदेश की अर्थव्यवस्था को बेपटरी पूरी तरह से ही कर दिया है। राजस्व में कमी आने के साथ ही आय के साधनों में भी कमी आयी है। इसकी वजह से सरकार को कई विभागों के खर्चों में कटौती करते हुए कोरोना संक्रमण से बचाव और इलाज के लिए बजट की व्यवस्था करनी पड़ी। इसके बाद भी सरकार सरकारी महकमों में की जाने वाली फिजूलखर्ची कम करने में सफल नहीं रही है।
इस तरह से लिया जाता है कर्ज
कर्ज लेने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा एक बॉण्ड जारी किया जाता है। यह बॉण्ड रिजर्व बैंक माध्यम से जारी किया जाता है। इसके अलावा सरकार के पास खुले बाजार से कर्ज लेने का भी तरीका होता है। इसके तहत सरकार द्वारा प्रस्ताव बुलाए जाते हैं। इसके तहत बैंक और वित्तीय संस्थाओं सहित अन्य कोई भी कर्ज देने के लिए प्रस्ताव दे सकता है। इसके बाद तय दिनांक तक आने वाले प्रस्तावों को खोलकर देखा जाता है जिसके द्वारा भी सबसे कम ब्याज दर का उल्लेख किया जाता है सरकार उससे कर्ज लेती है।
कहां से लिया कितना कर्ज
मध्यप्रदेश सरकार पर अब तक 2 करोड़ 53 लाख 335 करोड़ का कर्ज हो चुका है। इसमें एक लाख 54 हजार करोड़ का कर्ज खुले बाजार का है। शेष कर्ज में सरकार को पावर बांड सहित अन्य बांड का कंपनशेसन के रूप में 7360 करोड़, वित्तीय संस्थाओं की देनदारी 10,901 करोड़, केन्द्र सरकार के ऋण एवं अग्रिम के 31 हजार 40 करोड़ सहित अन्य दायित्व 20 हजार 220 करोड़ रुपए शामिल हैं।
इनका कहना है
सरकार को चाहिए कि कर्ज एक सीमा में ही लें, वित्तीय अनुशासन के लिए कर्ज का मर्यादित होना जरूरी है। बजट से ज्यादा कर्ज होना अच्छा नहीं कहा जा सकता। सरकार अनावश्यक खर्चों में कटौती कर आय के स्रोत बढ़ा सकती है। इसके लिए और भी उपाय हैं। वित्त मंत्री रहते हुए मैंने हमेशा प्रयास किया कि राज्य की जीडीपी के तीन प्रतिशत से अधिक का कर्ज राज्य पर न हो। इसलिए मैंने कर्ज की सीमा दो से ढाई प्रतिशत ही रखी। वित्तीय अनुशासन बनाए रखने का प्रयास किया।
– राघवजी, वित्तीय मामलों के जानकार एवं पूर्व वित्त मंत्री