खनिज व वन संपदा भी नहीं दिला सकी गरीबी से मुक्ति

खनिज व वन संपदा
  • राजनैतिक व प्रशासनिक उपेक्षा से हाल बेहाल

    भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश के महाकौशल अंचल के तहत आने वाले शहडोल संभाग के तीनों जिले गरीबी और बेरोजगारी का दंश झेलने को मजबूर बने हुए हैं। यह हाल तब हैं जबकि इस संभाग से लगातार प्रदेश में सत्तारुढ़ दल के नेताओं को जिताया जा रहा है। अहम बात यह है कि यह संभाग खनिज और वन सम्पदा से भरपूर भी है, इसके बाद भी न तो यहां पर औद्योगिक विकास हो पा रहा है और न हीं अन्य इलाकों जैसा विकास। इसकी वजह है इस इलाके की राजनैतिक और प्रशासनिक स्तर पर की जाने वाली उपेक्षा। इसकी वजह से ही अब इस इलाके की जनता चाहती है कि प्रदेश में सरकार  उनकी उम्मीदों पर खरी उतरे। चुनाव में हर बार की तरह इस बार भी दोनों प्रमुख दलों भाजपा और कांग्रेस ने चुनावी वादे तो खूब किए हैं, लेकिन क्षेत्र की आवश्यकताओं पर किसी का फोकस नहीं रहा। शहडोल संभाग के तहत तीन जिले आते हैं। इनमें  शहडोल, अनूपपुर और उमरिया शामिल हैं। इन जिलों में अकूत कोयला के भंडार हैं। खदानों से निकालने वाला पूरा कोयला दूसरे प्रदेशों में भेजा जाता है, जिससे स्थानीय लोगों को न तो इसका लाभ मिलता है और न ही कोयला खदानों में रोजगार। ऐसे में यहां नई सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती युवाओं का रोजगार मुहैया कराकर पलायन जैसी गंभीर समस्या से निजात दिलाने की रहने वाली है।
    उद्योगों का भी अभाव
    वन संपदाओं से घिरे शहडोल जिले में बाहरी व्यापारी औने- पौने दाम पर यहां पाई जाने वाली 14 प्रकार की वन संपदाओं को खरीद कर उसे बाहर बेंच देते हैं।  वन संपदाओं के संवर्धन और इन्हें बाजार उपलब्ध कराने की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं होने से लोगों को इसका लाभ नहीं मिल पाता है। इसी तरह से शहडोल जिले में औद्योगिक गतिविधियां भी नही हैं। यहां पर जो दो बड़े उद्योग हैं, उनमें अमलाई ओपीएम व रिलायंस शामिल है। इनमें स्थानीय लोगों को समुचित रोजगार नहीं मिल रहा। मुख्यालय से लगे नरसरहा में लगभग 20 एकड़ में 19 से ज्यादा उद्योग स्थापित थे। अब एक दो ही बचे हैं। इसके अलावा दियापीपर में औद्योगिक केंद्र स्थापित करने की प्रक्रिया कई वर्ष से लंबित है।
    इस तरह के भी बन रहे हालात
    मां नर्मदा के उदग्म स्थल अमरकंटक की खूबसूरत वादियों में वेशकीमती औषधियों का अकूत भंडार है। शोध और पहचान के अभाव में इनका भी फज्ञयदा नहीं मिल पा रहा है। इसी तरह से अब मां नर्मदा का उद्ग्म स्थल के आसपास सीमेंट कंक्रीट का जंगल खड़ा होने और गंदे नालों का पानी मिलने से मां नर्मदा पर भी संकट मंडराने लगा है। हालात यह है कि रोजगार के साधन न होने से यहां के लोगों को पलायन करने पर मजबूर होना पड़ रहा है। इस अंचल के आदिवासी बाहुल इलाकों में तो हालत और भी दयनीय हैं। उनके पास रोजगार और आजीविका के साधन तक नहीं हैं। इसकी वजह से ही अन्य साधन नहीं हैं। ऐसे में तराई अंचल, सरई, पीपर टोला, बेनीबारी गांव के लोग काम की तलाश में पलायन करने पर मजबूर होते हैं।
    विस्थापन का दंश
    उमरिया जिले की राष्ट्रीय स्तर पर पहचान जिस बांधवगढ़ नेशनल पार्क से हैं। उसी पार्क की वजह से इस जिले के करीब एक दजर्न गांव वालों को मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है। इस पार्क से स्थानीय लोगों को रोजगार तो मिल नहीं रहा है, बल्कि परेशानी अलग से झेलनी पड़ रही है। सबसे बड़ी परेशानी विस्थापन का दंश झेल रहे हैं। इलाके में बाणसागर बांध बना तो पुराना रीवा मार्ग बंद कर दिया गया, जिससे होने के बाद चंसुरा, झाल, चितरांव, बटुरावाह, दमोय, इंदवार, पडखुरी, भरेवा आदि गांव के लोगों का आज भी परेशान बने हुए हैं। हालत यह है कि इन गांवों के लोगों को अब भी विकास की मुख्य धारा से जुडऩे का इंतजार बना हुआ है।

Related Articles