दो साल बाद भी बना हुआ है 483 बसों का इंतजार

बसों का इंतजार

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश की राजधानी के होने के बाद भी भोपाल के कई इलाकों के रहवासियों को लोक परिवहन की समस्या से दो चार होना पड़ रहा है। कई मार्ग तो ऐसे हैं, जहां पर इस तरह की कोई व्यवस्था नहीं है। अगर कहीं है भी तो वह नाम मात्र के लिए इसकी वजह से लोगों को आवागमन में हर दिन बेहद परेशानी का सामना करना पड़ता है। इसकी वजह है लोक परिवहन के लिए चलने वाली बसों का अभाव। संबंधित कंपनियां इन बसों की समय पर आपूर्ति नहीं कर रही हैं। हालत यह है कि कुल छह सौ बसों की खरीद के लिए किए गए टेंडर में से अब भी 483 बसों के आने का इंतजार बना हुआ है। दरअसल शहर की आबादी बढ़ने के साथ ही उसके क्षेत्रफल में भी लगातार इजाफा हो रहा है। एक अनुमान के अनुसार मौजूदा समय में शहर की आबादी 30 लाख के आसपास पहुंच चुकी है। लेकिन इतनी आबादी के हिसाब से लोक परिवहन की व्यवस्था ही नहीं है। नगर निगम द्वारा शहर में अच्छी लोक  परिवहन व्यवस्था के लिए दो साल पहले नगर निगम ने 300 डीजल और 300 सीएनजी बसों की खरीदी के लिए टेंडर बुलाए थे, लेकिन इतने लंबे समय बाद भी उनमें से महज 77 सीएनजी और 40 डीजल बसें ही आ सकी हैं। यदि सभी छह सौ बसें एक साथ चलने लगें तो शहर में यात्रियों को परेशानी से मुक्ति मिल जाएगी।  गौरतलब है कि अभी शहर में 22 मार्गों पर ही नगर निगम द्वारा बसों का संचालन किया जा रहा है। इनमें 291 डीजल और 77 सीएनजी बसें हैं। ये बसें उन्हीं मार्गों पर चलाई जा रही हैं, जहां यात्रियों का दबाव अधिक रहता है। इसकी वजह से ही सीमावर्ती कालोनियों तक पहुंचने के लिए लोगों को लोक परिवहन सुविधा  के अभाव में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। इनमें एस्सार्जी संपदा खजूरी कला, बीडीए कॉलोनी अवधपुरी, लांबाखेड़ा, बर्रई, कालापानी, कजलीखेड़ा समेत दो दर्जन से अधिक रहवासी इलाके शामिल हैं। इन इलाकों में लोगों को या तो निजी वाहनों का उपयोग करना होता है या फिर किराए का वाहन लेकर जाना पड़ता है। जो यात्रियों से कई गुना किराया वसूलते हैं। इंदौर में 32 लाख की आबादी के लिए शहर में 700 से अधिक और भोपाल की 30 लाख की आबादी के लिए महज 365 बसों का संचालन किया जा रहा है।
औद्योगिक क्षेत्र के लिए होती है परेशानी
गोविंदपुरा औद्योगिक क्षेत्र में लोकल परिवहन की सुविधा नहीं होने से कारखानों में काम करने वाले कर्मचारियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। इसमें भी सर्वाधिक परेशानी महिलाओं को होती है। रात के समय यह समस्या और बढ़ जाती है। लोकल परिवहन सेवा उपलब्ध नहीं होने से यहां काम करने वाले श्रमिकों को निजी वाहनों से आना-जाना करना पड़ता है या फिर 3 से 4 किलोमीटर पैदल चलकर मुख्य सड़क तक पहुंचना होता है। इमरजेंसी में आने-जाने पर निजी ऑटो चालकों को दोगुना किराया देना होता है। बता दें गोविंदपुरा औद्योगिक क्षेत्र में 1100 के करीब छोटे-बड़े कारखाने हैं, जिनमें करीब 30 हजार महिला-पुरुष कर्मचारी काम करते हैं।

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