- लोकसभा चुनाव के बाद होगा फैसला
- विनोद उपाध्याय
अब प्रदेश में नई सरकार बने हुए दो माह होने को है, लेकिन अब तक जिलों को प्रभारी मंत्री नहीं मिल सके हैं। जिस तरह से जिलों में संपर्क निधि की राशि जारी करने के अधिकार हाल ही में कलेक्टरों को दिए गए हैंं, उससे साफ हो गया है कि फिलहाल सरकार अपने मंत्रियों को जिलों का प्रभार देने की जल्दबाजी में नहीं है। इसकी वजह से अब प्रदेश सरकार के मंत्रियों को जिलों के प्रभार के लिए अभी इंतजार और करना होगा। माना जा रहा है कि अब लोकसभा चुनाव के बाद ही जिलों के प्रभार के मामले में फैसला किया जाएगा। इसकी वजह बताई जा रही है कि सरकार फिलहाल लोकसभा चुनाव को देखते हुए किसी को नाराज करने के मूड में नही है। उधर, सरकार का भी पूरा फोकस अब लोकसभा चुनाव पर हो गया है। इस चुनाव को लेकर राजनीतिक गतिविधियां तेज हो चुकी हैं, अगले पखवाड़े में चुनावी तारीखों की घोषणा होने की संभावनाएं हैं। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के मंत्रिमंडल ने 25 दिसंबर को सुशासन दिवस पर पद एवं गोपनीयता की शपथ ली थी। इसके 6 दिन बाद 31 दिसंबर 2023 को मंत्रियों के बीच विभागों का बंटवारा किया गया था। विभाग मिलने के बाद से ही मंत्री जिलों के प्रभार के लिए प्रयासरत हैं। किसी भी मंत्री को किसी भी जिले का प्रभार नहीं सौंपा है। हालांकि कद्दावर मंत्रियों के नाम बड़े जिलों के प्रभार के लिए चर्चा में जरुर बने हुए हैं, लेकिन इस मामले में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने प्रक्रिया शुरु करने के किसी को निर्देश नहीं दिए हैं। ऐसे में अब लोकसभा चुनाव से पहले जिलों का प्रभार मिलने की उम्मीद पाले बैठे मंत्रियों को फिलहाल और इंतजार करना पड़ेगा। दरअसल सरकार में प्रदेश के चारों प्रमुख नगरों से पार्टी के बड़े और कद्दावर नेता मंत्रिमंडल में शामिल हैं। इन सभी मंत्रियों को उनके कद के हिसाब से जिलों के प्रभार देने होंगे, हालांकि यह मंत्री अपने-अपने जिलों के प्रभार पाने की अधिक इच्छा रखते हैं, लेकिन माना जा रहा है कि इन्हें एक से अधिक जिलों के प्रभार दिए जाएंगे, जिनमें उनके गृह जिले शामिल नहीं होंगे।
कार्यकर्ताओं के काम अटके
जिलों का प्रभार मंत्रियों को नहीं मिलने की वजह से कार्यकर्ताओं के जिले स्तर के भी काम नहीं हो पा रहे हैं। जिन जिलों का मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व है, उन जिलों में तो फिर भी कार्यकर्ताओं की पूछ परख हो रही है, लेकिन जिन जिलों से कोई मंत्री नहीं हैं उन जिलों में कार्यकर्ता अपने काम के लिए परेशान हैं। उन्हें अपने कामकाज को लेकर भोपाल तक दौड़ लगानी पड़ रही है।
कलेक्टरों को दिए अधिकार
31 मार्च को खत्म हो रहे वित्त वर्ष के पहले सांसदों और विधायकों को मिलने वाली जनसंपर्क निधि के उपयोग को लेकर नया आदेश हुआ है। इसके लिए प्रभारी मंत्री की ओर से राशि जारी किए जाने का प्रावधान है। लेकिन, अब प्रभारी मंत्री के पॉवर कलेक्टरों को ट्रांसफर किए गए हैं। हर विधानसभा के लिए सांसदों और विधायकों को मिलने वाली जनसंपर्क निधि की राशि के वितरण के पावर सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) द्वारा कलेक्टरों को दिए गए हैं। जीएडी ने इसको लेकर जारी आदेश में कहा है कि वर्ष 2023-24 के जनसंपर्क निधि की राशि वितरण के अधिकार कलेक्टरों को दिए जाते हैं। आदेश के बाद अब कलेक्टर सांसदों और विधायकों की ओर से जनसंपर्क निधि के अंतर्गत राशि आवंटित करने को लेकर की जाने वाली अनुशंसा के आधार पर राशि वितरण का निर्णय ले सकेंगे।
प्रभारी मंत्रियों की यह होती है जिम्मेदारी
जिला स्तर पर डीएमएफ, जिला योजना समिति समेत अन्य जिला स्तरीय समितियों की अध्यक्षता प्रभारी मंत्री द्वारा की जाती है। इसके साथ ही जिला स्तर पर किए जाने वाले तबादले, कानून-व्यवस्था और बड़े निर्माण कार्यों से संबंधित प्रस्तावों को मंजूरी देने का काम भी प्रभारी मंत्री की अध्यक्षता में होने वाली जिला स्तरीय बैठकों में किया जाता है। इसके साथ ही संगठनात्मक बैठकों में भी प्रभारी मंत्री की अध्यक्षता महत्वपूर्ण रहमी है। प्रभारी मंत्री पर ही जिला स्तर पर आम जन जीवन से जुड़ी हर एक्टिविटी का ध्यान रखने और उसमें सरकार की भागीदारी करने की जिम्मेदारी होती है।
राज्य मंत्रियों के पास कोई काम नहीं
दो माह में राज्य मंत्रियों को कैबिनेट मंत्रियों ने काम का बंटवारा तक नहीं किया है। इसकी वजह से राज्य मंत्री बेकाम बैठे हुए हैं। स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्रियों की भी स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं है। वे सिर्फ स्वतंत्र प्रभार वाले विभाग तक सीमित हैं। जो विभाग कैबिनेट मंत्रियों के पास हैं, उनका कोई काम भी उन्हें अब तक नहीं दिया गया है। इसकी वजह से उनके पास भी अन्य विभागों की कोई फाइल नहीं आ रही है। सरकार में दो उपमुख्यमंत्री समेत 20 कैबिनेट मंत्री हैं। 6 राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार हैं। जबकि 4 राज्य मंत्री हैं। राज्यमंत्रियों को अभी तक कैबिनेट मंत्रियों ने काम का बंटवारा भी नहीं किया है। राज्यमंत्री नरेन्द्र शिवाजी पटेल के पास लोक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग है। उपमुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ल इस विभाग के मंत्री हैं। अभी तक शुक्ल ने पटेल को कोई अधिकृत काम नहीं सौंपा है। इसी तरह प्रतिमा बागरी को नगरीय प्रशासन एवं आवास विभाग का कोई काम नहीं मिला है। दिलीप अहिरवार को वन एवं पर्यावरण मंत्री नागर सिंह चौहान ने भी कोई काम नहीं दिया है। राज्यमंत्री राधा सिंह को भी पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के मंत्री प्रहलाद पटेल ने काम का बंटवारा नहीं किया है। इसकी वजह से उनके पास संबंधित विभागों की फाइलें तक नहीं आ रही हैं।