सरकार की सख्ती के बाद भी पढ़ाई जा रही प्राइवेट पब्लिशर्स की किताब

-निजी स्कूलों की मनमानी पर कैसे लगेगी लगाम…?

भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। हर साल जब नया शिक्षा सत्र शुरू होते ही सरकार निजी स्कूलों को एनसीईआरटी की किताबें पढ़ाने का निर्देश देती है, लेकिन राज्य सरकार के आदेश के बावजूद निजी स्कूल मनमानी कर रहे हैं। न तो अनावश्यक फीस वसूली पर लगाम कस पाई है। न ही निजी प्रकाशक और स्कूल संचालकों के बीच का तिलिस्म टूटा है। पालक महासंघ भी  सरकार से इस पर हस्तक्षेप की मांग करता रहता है। इस बीच आधा सत्र बीतने के बाद कलेक्टर ने जिला शिक्षा अधिकारी से स्कूलों में चलने वाली किताबों की जानकारी मांगी है। हालांकि, अप्रैल में पालक छात्र-छात्राओं के लिए किताबें खरीद चुके हैं।  कमीशन के इस खेल में प्रकाशक, स्कूल संचालक, विक्रेता चांदी कूट रहे हैं। निजी स्कूलों में निजी प्रकाशकों की किताबें भी हर वर्ष बदल दी जाती हैं। इस कारण पुरानी  किताबें लेने का विकल्प भी धरा रह जाता है। निजी स्कूल प्रबंधन की मनमानी का आलम यह है कि अभिभावकों को चुनिंदा दुकानों पर किताबें और ड्रेस खरीदने के लिए भेजा जाता है। अभिभावकों की परेशानी यह है कि जो किताबें स्कूल प्रबंधन तय करता है , वह केवल कुछ ही दुकानों पर मिलती हैं। इस कारण स्कूल प्रबंधन के इशारों पर चलना उनकी मजबूरी हो गई है।
हर साल बदल जाता है कोर्स और किताबें
पुरानी पुस्तकों का प्रयोग न हो पाए इसलिए प्रत्येक वर्ष प्रकाशन या कोर्स बदल दिया जाता हैं। यही नहीं किताबों के दाम बीते वर्ष के मुकाबले 10 से 15 प्रतिशत तक बढ़ जाते हैं। कॉपियों के मामले में भी स्कूल ही लाभ की स्थिति में हैं। स्टेशनरी संचालकों ने स्कूल के आदेश पर कॉपियां किताबों के साथ ही मार्केट से दो गुना दाम पर मिलती है। पालक महासंघ के प्रदेश महासचिव प्रबोध पंड्या का कहना है कि स्कूलों में यदि समय से एनसीइआरटी की किताबें लागू हो जातीं तो पालकों के 37 करोड़ 7 लाख रुपए बच सकते थे। अब आधा सत्र बीतने के बाद जानकारी मंगवाने का क्या फायदा। सरकार के आदेश के बाद भी स्कूलों में निजी प्रकाशन की एनसीइआरटी से 10 गुना महंगी हैं।
स्कूलों से मांगी जा रही किताबों की जानकारी
राजधानी के प्राइवेट स्कूलों में एक से आठवीं तक प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें चल रही हैं।  इन स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र- छात्राओं की संख्या करीब डेढ़ लाख है।  इस आंकड़े के अनुसार पालकों की जेब पर करीब 37 करोड़ का भार आता है। एनसीईआरटी के मुकाबले प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें 10 गुना तक महंगी हैं।  एनसीपीसीआर ने मार्च में ही स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें चलाने के आदेश जारी किए थे।  तीन साल पहले कैबिनेट के निर्णय के अनुसार एनसीईआरटी की गणित, कक्षा 6 से 8 में विज्ञान व कक्षा 3 से 5 में पर्यावरण , 11वीं व 12वीं में एनसीईआरटी की गणित, विज्ञान व वाणिज्य की पुस्तकें और कक्षा 9वीं व 10वीं में एनसीइआरटी की गणित व विज्ञान की पुस्तकें चलाने का प्रस्ताव पास हुआ था।
निजी प्रकाशकों की किताबें 10 गुना महंगी
प्राइवेट स्कूल की नर्सरी की किताबों का सेट 1413 रुपए, पांचवीं का पूरा में देते हैं। सेट 4 हजार 525 रुपए और कक्षा आठवीं की किताबों का सेट 5 हजार 480 रुपए में आता है। इसी तरह किताबों की कीमत कक्षावार बढ़ती जाती है। जबकि एनसीइआरटी की कक्षा आठवीं तक की पुस्तकें बाजार में अधिकतम 500 रुपए की हैं। इन किताबों में केवल प्रिंटिंग क्वालिटी में अंतर होता है। यह सभी किताबें फिक्स दुकानों पर ही मिलती हैं।

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