दलबदल के बाद भी पुराने चेहरों में ही जंग

कार्यकर्ताओं

भोपाल/चिन्मय दीक्षित/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में ऐसी कई सीटें हैं, जहां दलबदल होने के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं को लग रहा था कि इस बार उन्हें मौका मिल सकता है, लेकिन पार्टी के आला नेताओं ने दलबदलुओं को टिकट थमा कर उनकी आशाओं पर पानी फेर दिया है। इसकी वजह से कई सीटों पर वहीं पुराने चेहरे एक बार फिर चुनावी जंग में आमने -सामने हैं और बेचारे कार्यकर्ता अब इन्ही विरोधी नेताओं की आलोचना करने की जगह बेमन से उनके गुणगान करने को मजबूर हैं।  इस मामले में दोनों प्रमुख दल कांग्रेस व भाजपा दोनों ही शामिल हैं। दरअसल जो नेता बीते चुनाव में भाजपा से चुनाव लड़े थे , वे अब कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। जो कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं । वे अब भाजपा के प्रत्याशी हैं। इस सियासी खेल में सबसे ज्यादा मुसीबत का सामना कार्यकर्ताओं को करना पड़ रहा है।
ऐसा इसलिए कि कल तक पार्टी का जो कार्यकर्ता अपने विरोधी को सियासी गाली देता था, वह अब उनके कसीदे पढ़ने और उनके लिए वोट मांगने को मजबूर है। इसी तरह के कुछ हाल हैं, धार जिले की बदनावर सीट का। साल 2013 और 2018 में कांग्रेस प्रत्याशी राज्यवर्धन सिंह दत्तीगांव और भाजपा उम्मीदवार भंवर सिंह शेखावत के बीच मुकाबला हो चुका है। इनमें से एक चुनाव में शेखावत और दूसरे चुनाव में दत्तीगांव ने जीत दर्ज की थी। शेखावत 2013 में 9812 मतों से जीते थे तो,  2018 के चुनाव में दत्तीगांव 41506 मतों के अंतर से जीते थे। इसके बाद वे श्रीमंत के साथ दलबदल कर भाजपाई बन गए। वर्तमान में प्रदेश सरकार में मंत्री दत्तीगांव अब बतौर भाजपा प्रत्याशी मैदान मे हैं, जिसके बाद शेखावत ने भी पीछे नहीं रहे और वे कांग्रेस में शामिल हो गए।
इस चुनाव में दोनों दलों ने दलबदलू इन नेताओं को टिकट थमा दिया। लिहाजा अब शेखावत कांग्रेस और दत्तीगांव भाजपा के टिकट पर चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं।  ऐसे में इन नेताओं के ल भले ही बदल गए हैँ , लेकिन चेहरा वही हैं। दूसरा मामला सुमावली विस का है। इस सीट पर भी इसी तरह का हाल है। इस सीट पर अजब सिंह कुशवाहा और एंदल सिंह कंसाना के बीच मुकाबला हो रहा है। कंसाना भी श्रीमंत के साथ भाजपाई बन गए थे, वे 2018 का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर जीते थे। उस समय उनके द्वारा भाजपा प्रत्याशी अजब सिंह कुशवाहा को 13,313 मतों से हराया गया था। इसके बाद के उपचुनाव में कंसाना भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े तो कुशवाहा कांग्रेस में शामिल होकर उसके टिकट पर प्रत्याशी बन गए। इस उपचुनाव में कुशवाहा ने 10947 मतों से जीत हासिल की। इस सीट पर अब इन दोनों ही नेताओं में चुनावी जंग चल रही है।  इसी तरह का कुछ मामला है ,दतिया जिले की डबरा सीट का है। डबरा में पूर्व मंत्री इमरती देवी और सुरेश राजे फिर से आमने-सामने हैं। दोनों करीबी रिश्तेदार भी हैं। इमरती देवी भी श्रीमंत के साथ भाजपा में चली गई थीं। उपचुनाव में भाजपा ने इमरती को टिकट थमा दिया ,तो सुरेश राजे भी दलबदल कर कांग्रेस से टिकट ले आए। इस चुनाव में राजे 7633 मतों से जीत गए। अब फिर चुनाव में दोनों एक- दूसरे के खिलाफ चुनावी जंग लड़ रहे हैं। इसके पहले भी 2013 के चुनाव में यह दोनों आमने सामने चुनाव लड़ चुके हैं। यह बात अलग है कि उस समय राजे भाजपा तो इमरती बतौर कांग्रेस प्रत्याशी मैदान में उतरी थीं। तब इमरती  33278 मतों से जीती थीं।
नागौद में यही स्थिति
सतना जिले की नागौद विधानसभा सीट में नागेंद्र सिंह नागौद और यादवेंद्र सिंह के बीच ही पारंपरिक रूप से मुकाबला होता रहा है। इस दौरान नागेंद्र  सिंह भाजपा और यादवेंद्र सिंह कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ते रहे हैं। इस बीच नागेंद्र सिंह ने तीन बार तो यादवेंद्र सिंह एक बार विधायक बने। यह बात अलग है कि बीते चुनाव में नागेन्द्र सिंह महज 1234 मतों से ही जीत सके थे। इस बार भाजपा ने उनका टिकट काट दिया, जिसकी वजह से वे बागी होकर बसपा से टिकट लेकर मैदान में कूद गए। जिसकी वजह से एक बार फिर उनका मुकाबला नागेन्द्र सिंह से हो रहा है।
मैहर में भी पुराने प्रतिद्वंदी आमने -सामने
सतना जिले की मैहर विधानसभा सीट पर भी पुराने चेहरों के ही बीच चुनावी जंग हैं, अंतर है तो सिर्फ दलों का। यहां पर नारायण त्रिपाठी ऐसे उम्मीदवार हैं, जो सपा, कांग्रेस और भाजपा से विधायक बन चुके हैं, लेकिन इस बार वे अपनी खुद की पार्टी विंध्य जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। उनका मुकाबला भाजपा के श्रीकांत चतुर्वेदी से हो रहा है। बीते चुनाव में चतुर्वेदी जहां कांग्रेस प्रत्याशी थे , तो वहीं त्रिपाठी भाजपा प्रत्याशी थे। चतुर्वेदी भी श्रीमंत के साथ भाजपा में चले गए थे।

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