- कई कॉलेज संचालकों की भूमिका संदेह के घेरे में …
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। करीब 8 साल पहले गरीब छात्रों को पढ़ाई के लिए मिलने वाली छात्रवृत्ति में बड़ा घोटाला सामने आया था। इस घोटाले को लेकर लोकायुक्त संगठन ने तत्परता दिखाई थी और मुकदमा दर्ज किया था, लेकिन आज तक जांच अधर में लटकी हुई है।
बताया जाता है कि इस घोटाले में कई कॉलेज संचालकों की भूमिका पूरी तरह से संदेह के घेरे में है।
गौरतलब है कि अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के छात्रों को केंद्र सरकार और पिछड़ा वर्ग के छात्रों को मध्यप्रदेश सरकार की ओर से छात्रवृत्ति और शिक्षण शुल्क प्रदान की जाती है। ट्यूशन फीस कालेज प्रबंधन के पास जाती है और स्कालरशिप छात्रों को मिलती है। साल 2013 और 2014 में मध्यप्रदेश के बहुत सारे कालेजों और छात्रों ने केंद्र और राज्य सरकार से मिलने वाली फीस में गड़बड़ी की थी। घोटाला पकड़ में आने के बाद 2015 में लोकायुक्त संगठन पुलिस ने बहुत सारे मुकदमे दर्ज किए थे। लोकायुक्त संगठन पुलिस की भोपाल इकाई में भी तकरीबन डेढ़ दर्जन मुकदमे दर्ज हुए थे। पूरे प्रदेश में प्रकरणों की संख्या सौ के प्रकरण दर्ज हुए तकरीबन आठ साल हो गए हैं, लेकिन अभी तक एक भी प्रकरण में चालान, खात्मा और खारजी अदालत में पेश नहीं की गई है। ऐसा इसलिए कि जांच रफ्तार धीमी है।
ताबड़तोड़ मुकदमे दर्ज करने के बाद मामला दबा दिया गया
गरीब तबके के छात्रों को पढ़ाई के लिए मिलने वाली छात्रवृत्ति में घोटाला होने की जानकारी सामने आने के बाद लोकायुक्त संगठन पुलिस ने पूरे मध्यप्रदेश में ताबड़तोड़ मुकदमे दर्ज किए थे। एफआईआर हुए तकरीबन आठ साल होने वाले हैं, लेकिन जांच आगे नहीं बढ़ रही है। विवेचना के नाम पर पूरे घोटाले को दफन कर दिया गया है।
बताते हैं कि इस मामले में एक कालेज संचालक की भूमिका पूरी तरह संदिग्ध है। उनकी जांच जैसे आगे बढ़ती है, तो दबाव बढ़ जाता है। बताते हैं कि कालेज संचालक की पहुंच काफी ऊपर तक है। उनके नाम का भय इतना ज्यादा है कि अफसर जांच रोक कर बैठ गए हैं। जिन कालेजों में छात्रों ने छात्रवृत्ति हासिल की थी, उनमें ज्यादातर प्राइवेट कालेज हैं और वे पैरामेडिकल कोर्स संचालित करते हैं। कॉलेजों में नर्स, एक्स-रे और रेडियो ग्राफर से लेकर तमाम कोर्स शामिल हैं। मामले में असली भूमिका कॉलेज संचालकों की है।
कागजों पर ही कॉलेज संचालित
स्कॉलरशिप और ट्यूशन फीस लेने के मामले में छात्रों और कालेज प्रबंधन ने दो तरह की गड़बड़िय़ां की थीं। एक बहुत सारे ऐसे कालेज सामने आए हैं, जो सिर्फ कागज में संचालित हो रहे हैं। उन्होंने अपने अधिकारियों और कर्मचारियों को छात्र बताकर फर्जी तरीके से राशि हासिल की थी। ऐसा कर उन्होंने राशि का गबन किया है। दूसरा यह कि जो छात्र एक कालेज में पढ़ते थे, उन्होंने दूसरे कालेजों का विद्यार्थी बनकर भी राशि (दो से तीन बार) हासिल कर ली। नियम एक छात्र के लिए एक कालेज से छात्रवृत्ति लेने का है। पहले तरह की गड़बड़ी करने वाले कालेज संचालकों और छात्रों के खिलाफ कार्रवाई होना चाहिए। यानी मुकदमा दर्ज होने के बाद सबूत जुटाकर अदालत में चालान पेश करना है। दूसरी तरह की गड़बड़ी करने वाले छात्रों को केंद्र और राज्य सरकार ने राशि जमा कराने का नियम बनाया है, उनके खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज करने जैसी कार्रवाई नहीं होगी। केंद्र और राज्य का नियम है कि जिन छात्रों ने दो बार राशि ली है, उनसे राशि जमा कराई जाए और उन्हें जीवनभर के लिए, प्रतिबंधित किया जाए। उन्हें आगे कभी भी छात्र वृत्ति नहीं मिलेगी। दूसरे तरह के मामलों में अदालत में खात्मा पेश किया जाना चाहिए। एसडीएम की जांच रिपोर्ट में भी यही तथ्य सामने आए हैं। अभी दोनों तरह के मामले लंबित हैं। नियम साफ है, उसके बाद भी ठोस कार्रवाई नहीं हो रही है।