दिग्विजय सिंह की शिकायत पर केंद्रीय मंत्री की जांच में हुई प्रमाणित
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में आर्गेनिक कॉटन के प्रमाणीकरण में की गई गड़बडिय़ों की केंद्र सरकार जांच करा रही है। केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह की शिकायत पर संज्ञान लेते हुए यह स्वीकार किया है कि मप्र में ऑर्गेनिक कॉटन के प्रमाणीकरण में गड़बड़ी की गई है। गड़बड़ी करने वाले मप्र के एक प्रमाणीकरण निकाय को एक साल के लिए निलंबित कर दिया गया है। एक उत्पादक समूह का राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम के तहत रजिस्ट्रेशन को निरस्त कर दिया गया है। जांच के आधार पर जल्द ही कुछ और प्रमाणन इकाइयों की पर कार्रवाई की जाएगी है। केंद्रीय मंत्री गोयल ने दिग्विजय सिंह को पत्र भेजकर इसकी जानकारी दी है। गौरतलब है कि दिग्विजय ने चार माह पहले 27 अगस्त को मप्र में बड़े स्तर पर ऑर्गेनिक कॉटन, उत्पादकों के फर्जी समूह बनाकर घोटाला किए जाने की मामला उठाया था। दिग्विजय ने इस संबंध में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान और सीएम डॉ. मोहन यादव से भी शिकायत कर जांच कराने की मांग की थी। गोयल ने मामले में संज्ञान लेने के बाद भेजे पत्र में यह भी कहा है कि प्रमाणन निकायों के अलावा उनके विभाग ने इस मामले को इंदौर के पुलिस आयुक्त, धार एसपी को मामले की जानकारी देकर एफआईआर दर्ज करने का अनुरोध किया है।
दरअसल, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इस मामले की शिकायत की थी। इसमें कहा गया था कि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक दुनिया भर के जैविक कपास के उत्पादन में भारत की भागीदारी 66 प्रतिशत है। उसमें भी मध्यप्रदेश प्रथम स्थान पर है तथा देश में सबसे ज्यादा जैविक भूमि का प्रमाणीकरण भी मध्यप्रदेश में किया गया है। जैविक उत्पादन के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत जैविक उत्पादन, प्रणालियों, मानकों और प्रमाणन निकायों के लिए प्रक्रिया तय है जिसे अन्य अंतर्राष्ट्रीय मानकों के साथ सामंजस्य में तैयार किया गया है। जैविक उत्पादों के आयात और निर्यात को इन्हीं मानकों के द्वारा विनियमित किया जाता है। इसके लिये गाइडलाइन तय है। किसानों द्वारा उत्पादित आर्गेनिक कॉटन का प्रमाणीकरण सरकारी एजेंसी की अधिकृत सर्टिफिकेशन बॉडी द्वारा किया जाता है। प्रदेश में कंट्रोल यूनियन नाम की एक सर्टिफिकेशन बॉडी को अधिकृत किया गया है। ऑर्गेनिक उत्पाद के उत्पादकों के लिये गाइडलाइन के अध्याय 5 के पैरा (5.1), (5.2) एवं (5.3) में आईसीएस बनाने का प्रावधान है। इसी के तहत ऑर्गेनिक कॉटन उत्पादकों के समूह का गठन किया जाता है। इन समूहों में न्यूनतम 25 और अधिकतम 500 किसान हो सकते है। सरकारी वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार प्रधानमंत्री कृषि विकास योजना के तहत सरकार द्वारा ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के लिये किसान को प्रति हेक्टेयर तीन वर्षों के लिए 50 हजार की वित्तीय सहायता दी जाती है। 16 नवंबर 2022 को 32,384 क्लस्टर्स, कुल 6.4 लाख हेक्टेयर क्षेत्र और 16.1 लाख किसानों को शामिल किया गया है। वर्ष 2022-23 तक योजना के तहत 1854.01 करोड़ की राशि जारी की गई है। उन्होंने पत्र में लिखा था कि प्रदेश के निमाड़ अंचल में ऑर्गेनिक कॉटन उत्पादकों के फर्जी समूह बनाये गये है तथा इन समूहों में ऐसे गांवों के किसानों के नाम भी शामिल किये गये है जो न किसी भी तरह के कॉटन का उत्पादन ही नहीं करते हैं और न पहले कभी उन्होंने किया है। ऑर्गेनिक कॉटन उत्पादकों के समूह में कई किसानों के नाम फर्जी तरीके से शामिल किये गये है और उन्हें ऑर्गेनिक कॉटन उत्पादक बताकर उनसे कॉटन क्रय करना दर्शाया गया है। कंट्रोल यूनियन नाम की सर्टिफिकेशन बॉडी द्वारा बगैर भौतिक सत्यापन के ऑर्गेनिक उत्पादन के सर्टिफिकेट दिए गये है जिसका खुलासा एक व्हिसल ब्लोअर द्वारा आयुक्त, वाणिज्यिक कर इन्दौर को की गई शिकायत से होता है। इस शिकायत में करोड़ों रुपये की जीएसटी चोरी भी सामने आई है।
व्यापारियों द्वारा साधारण बीटी कॉटन को बाहर से खरीदकर फर्जी तरीके से किसानों द्वारा उत्पादित ऑर्गेनिक कॉटन बताकर कंट्रोल यूनियन नामक सर्टिफिकेशन बॉडी से सर्टिफिकेट प्राप्त किया जा रहा है और उस कॉटन का विदेशों में निर्यात जा रहा है। ऐसी स्थिति में प्रश्न यह भी उठता है कि जिन किसानों द्वारा जैविक कपास का उत्पादन ही नही किया जा रहा है, उन्हें सरकारी योजना के तहत जैविक उत्पादन पर मिलने वाली सहायता कौन ले रहा है तथा यह कितना बड़ा भ्रष्टाचार है?
साधारण कॉटन को ऑर्गेनिक बताकर उसे ऑर्गेनिक सर्टिफिकेट देने के कारण एपीडा द्वारा अधिकृत कंट्रोल यूनियन नामक सर्टिफिकेशन बॉडी को यूरोपियन यूनियन द्वारा प्रतिबंधित किया जा चुका है। यह सिर्फ किसानों के साथ धोखा ही नहीं बल्कि भारत की अंतरराष्ट्रीय साख का भी सवाल है। अभी केन्द्रीय कृषि मंत्री मप्र के ही शिवराज सिंह चौहान हैं और वे लंबे समय तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं । सह मामला भी मप्र से ही उजागर हुआ है इसलिये कृषि मंत्री और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री होने के नाते इस मामले की जांच कराने का सरकार का दायित्व और अधिक बढ़ जाता है।