भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र ऐसा राज्य बन चुका है, जहां पर भले ही घपले और घोटालेबाजों पर कार्रवाई करने के लिए दो- दो जांच एंजेसियां हैं, लेकिन उन्हें इतना पंगु बना दिया गया है कि इस तरह के मामलों के आरोपियों पर कोई प्रभावी कार्रवाई होना मुश्किल बना हुआ है। यही वजह है कि प्रदेश में भ्रष्टाचार कम होने की जगह बढ़ता ही जा रहा है। इससे जहां आम आदमी निराश हो रहा है तो भ्रष्ट अफसरों के हौंसले बुलंद बने हुए हैं। खास बात यह है कि इन दोनों ही संस्थाओं में अब सरकार व आला अफसरों की पसंद के अफसरों को तैनात कर सरकार व प्रशासन अपने हिसाब से अप्रत्यक्ष रुप से जांच के मामलों की दिशा तय करवाते हैं। इसमें खास तौर पर आर्थिक अपराधों और भ्रष्टाचार के करीब दो सैकड़ा मामलों की जांच के दायरे में शामिल अफसरों व कर्मचारियों के लिए बड़ी राहत दी जा रही है। ईओडब्ल्यू ने उनके मामलों को बंद करने की तैयारी कर ली है। इनमें वे मामले हैं जो करीब एक दशक पुराने हैं।
2011 तक के ऐसे मामले जिनकी जांच अब तक भी जस की तस बनी हुई है। ऐसे मामलों की अब सूची तैयार करने का काम तेजी से किया जा रहा है। खास बात यह है कि इन मामलों में ईओडब्ल्यू ने मामला तो दर्ज किया, लेकिन अब तक उनकी जांच पूरी नहीं हो सकी है। हालांकि ऐसे मामलों में ईओडब्ल्यू सूत्रों का कहना है यह वे मामले हैं जिनमें जांच के दौरान आरोपी के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला है। दरअसल इस जांच एजेंसी के अफसरों का मानना है कि जिन मामलों में 10 साल से कोई प्रमाण नहीं मिला है उनमें अब सबूतों का मिलना नामुमकिन है। खास बात यह है कि अब तक ऐसे करीब तीन दर्जन मामलों को बंद किया जा चुका है। गौरतलब है कि इस एजेंसी के पास जरुरी स्टाफ का टोटा तो हमेशा से ही बना रहता है, साथ ही संबंधित विभागों से भी अपेक्षित सहयोग मिलना तो दूर जांच में रोड़े अटकाने का काम भी खूब किया जाता है। इसकी वजह से जांच बेहद सुस्त रफ्तार से हो पाती है। हालत यह है कि डीएसपी और इंस्पेक्टरों के पद लंबे समय से रिक्त पड़े हुए हैं। उल्लेखनीय है कि ईओडब्ल्यू के पास संपत्ति संबंधी अपराध, भ्रष्टाचार पद के दुरुपयोग और गबन के मामले जांच के लिए आते हैं। इनकी जांच का अधिकार इंस्पेक्टर और डीएसपी स्तर के अफसर के पास ही होता है, लेकिन मौजूदा समय में ईओडब्ल्यू में स्वीकृत 32 पदों में से आधे रिक्त चल रहे हैं। इसकी वजह है पहले तो इस पद के अफसर इस एजेंसी में आना ही नहीं चाहते हैं तो वहीं सरकार भी इसके रिक्त पदों को भरने में कोई रुचि नहीं लेती है।
दो बेहद अहम मामलों की जांच पड़ी मंद
बीते कुछ सालों में प्रदेश के साथ ही देशभर में हलचल मचाने वाले दो ऐसे मामले सामने आए हैं, जिन पर सभी की निगाहें लगी हुई हैं। इन मामलों की जांच का जिम्मा भी ईओडब्ल्यू के पास ही है। इन दोनों ही मामलों में अगर जांच जल्द ही अंजाम तक पहुंचती है तो प्रशासनिक और राजनैतिक रुप से बड़ी हलचल की संभावनाए बनी हुई हैं। यह दोनों मामले प्रदेश में चुनावों में काले धन का उपयोग और ई-टेंडरिंग घोटाला से संबंधित हैं। वर्तमान में यह दोनों ही मामले राजनीतिक विवाद की वजह भी बने हुए हैं। इसकी वजह से इन दोनों ही मामलों में ईओडब्ल्यू द्वारा जांच बेहद मंद गति से की जा रही है। तीन हजार करोड़ से अधिक का यह ई-टेंडरिंग घोटाला पूर्व की भाजपा सरकार के समय हुआ था। प्रदेश की सत्ता बदली तो इस मामले की जांच ने रफ्तार पकड़ ली थी, लेकिन जल्द ही सरकार बदल जाने से मामले की जांच को बेहद मंद गति पर लाकर जांच लगभग बंद सी ही कर दी गई है। खास बात यह है कि दो साल से अधिक समय बाद भी दिल्ली की लैब से टेक्निकल जांच रिपोर्ट तक नहीं मिल पाई है। इस जांच रिपोर्ट के अभाव में जांच आगे नहीं बढ़ पा रही है। दरअसल इस मामले की जद में राजनीतिक लोगों के अलावा कई बड़े अफसर भी आ रहे हैं। इसी तरह से चुनावों में काले धन के उपयोग के मामले में केन्द्रीय चुनाव आयोग के आदेश पर प्राथमिकी दर्ज होने के बाद से जांच लगभग बंद पड़ी हुई है। दरअसल जांच का जिम्मा उन पुलिस अफसरों के हाथ में है जो प्रतिनियुक्ति पर यहां पर पदस्थ हैं। यह मामला पुलिस अफसरों के खिलाफ ही दर्ज किया गया है। इसमें तीन आईपीएस संजय माने, सुशोभन बनर्जी, मधु कुमार और राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी अरुण मिश्रा का नाम शामिल है। खास बात यह है कि इस मामले की जांच के लिए ईओडब्ल्यू द्वारा कई बार रिमाइंडर भेजकर आयकर से संबंधित दस्तावेज मांगे जा चुके हैं, लेकिन वह उसे अब तक नहीं मिल सके हैं, जिसकी वजह से जांच जस की तस बनी हुई है।
इस मामले में जांच की रफ्तार हुई तेज
जल संसाधन विभाग में 850 करोड़ रुपए के अग्रिम भुगतान के मामले में ईओडब्ल्यू की जांच अचानक तेज रफ्तार पकड़ चुकी है। इस मामले में विभाग के एक बड़े अफसर राजीव कुमार सुकलीकर पर ब्यूरो का शिकंजा कसता ही जा रहा है। बताया जा रहा है कि इस मामले में एक सरकार विरोधी पूर्व आईएएस अफसर भी कार्रवाई की जद में आ सकता है। माना जा रहा है कि इस मामले की जांच एकाध माह में पूरी हो सकती है। जल संसाधन विभाग से मिले दस्तावेजों की पड़ताल में खुलासा हुआ है कि ईएनसी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ की अध्यक्षता में होने वाली कैबिनेट की बैठक में तय शर्तों को स्वयं ही बदलकर निजी कंपनियों को 850 करोड़ रुपए का अग्रिम भुगतान कर दिया था। ईओडब्ल्यू को वह नोटशीट मिल चुकी है। जिसमें ईएनसी ने लिखा था कि शासन के निर्देशों के आधार पर अग्रिम भुगतान की अनुमति दी जाती है।
इस तरह बनाया जा रहा पंगु
बीते साल ही प्रदेश की शिव सरकार ने इन एजेंसियों के हाथ बांधने के लिए इस तरह का प्रावधान कर दिया है कि किसी भी मामले में आरोपी शासकीय कर्मचारी को पूछताछ के लिए बुलाने से पहले संबंधित विभाग की अनुमति लेनी होगी। यही नहीं अब लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू बगैर सरकार या विभाग की अनुमति के कोई भी कार्रवाई नहीं कर सकते हैं। यही नहीं पूर्व में चालान पेश करने के लिए भी सरकार की अनुमति अनिवार्य की जा चुकी है। इसकी वजह से सैकड़ों मामले जांच पूरी होने के बाद भी अनुमति के अभाव में न्यायालय तक नहीं पहुंच पा रहे हैं।
23/07/2021
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